बिन पैंदी के लोटों के बीच
बहुत बार लुढ़कते लुढ़कते भी कुछ नहीं सीख पाता हूँ
लोटों के बीच रहकर भी
क्यों नहीं लोटों की तरह व्यवहार कर पाता हूँ
क्यों नहीं लोटों की तरह व्यवहार कर पाता हूँ
सामने सामने जब बहुत से लोटों को
एक लोटे के लिये
लोटों के चारों ओर लुढ़कता हुआ देखता जाता हूँ
लोटों के चारों ओर लुढ़कता हुआ देखता जाता हूँ
वैसे समझता भी हूँ
पैंदी का ना होना वाकई में कई बार
खुदा की नैमत हो जाती है
लुढ़कते हुऎ लोटों द्वारा लुढ़कते लुढ़कते
कहाँ जा कर किन लोटों को कब
कौन सी टोपी पहना दी जाती है
ये बात लोटों के समझ में नहीं कभी आ पाती है
लोटों में से एक अन्धे लोटे के लिये रेवड़ी बन के बहार ले आती है
लोटों की और भी बहुत सी लोटागिरी
कायल कर घायल कर ले जाती है
जब कहानी कभी गलती से समझ में आ जाती है
बहुत दिन से लोटा
लोटा एक जी के चारों और लुढ़कने का
कार्यक्रम चला रहा था
सारे लोटों को नजर ये सब साफ साफ आ रहा था
उधर लोटा दो
अपनी पोटली कहीं खोल बाट आ रहा था
अपनी दुकान के प्याज का
भाव चढ़ गया करके अखबार में रोज छपवा रहा था
भाव चढ़ गया करके अखबार में रोज छपवा रहा था
तुरंत ही लोटा अपना लुढ़कना
साम्यावस्था बनाने की तरफ झुका रहा था
सीन बदलने में समय ही नहीं लगता है
ये बाकी लोटों का
लोटे की ओर लोटे के पीछे लुढ़कता हुआ चला जाना
लोटे की ओर लोटे के पीछे लुढ़कता हुआ चला जाना
साफ साफ दिखा रहा था
'उलूक'
बहुत से अच्छे भले लोग
जो हमेशा हमारे लोटा हो जाने पर आँख दिखा रहे थे
इन लुढ़कते हुऎ लोटों के बीच में कब लोटे हो जा रहे थे
उनकी सोच भी लोटा सोच है करके
जबकि कहीं नहीं दिखाना चाह रहे थे
पता नहीं क्या मजबूरी उनकी हो जा रही थी
जो लोटे के लिये लोटे के साथ लोटों की भीड़ में
ताली बजाने वाला एक लोटा हो कर रह जा रहे थे ।
चित्र साभार: https://www.redbubble.com/
बेहतरीन ......
जवाब देंहटाएंलोटे के साथ
जवाब देंहटाएंलोटों की भीड़ में
ताली बजाने वाला
एक लोटा हो कर
रह जा रहे थे !,,,,बढ़िया....
Recent post: होरी नही सुहाय,
लोटा होना बिना पेंदी का .... अपनी खासियत रखता है . लुढकते हुए ताली बजानेवाले चेहरों में बहुत कुछ देखता है
जवाब देंहटाएंआदरणीय -
जवाब देंहटाएंलौटे को लोटे कर लें-
बिलौटे भी पढ़ ले रहे हैं-
सावधान महाराजधिराज लक्ष्मीवाहन-
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!सर ,लोटे की लोटा कथा ....वाह!! वैसे यहाँ बिना पेंदे के लोटों की कमी नहीं ,एक ढूँढों ,हजार मिल जाते है । लाजवाब सृजन !
जवाब देंहटाएंपेट में बल पड़ गए जोशी जी, इतना गजब व्यंग्य लिखा है ... लोटे ...वाह
जवाब देंहटाएंकई बार रीडिंग लिस्ट पर ना जाकर सीधे चर्चामंच या पाँच लिंक खोलती हूँ। अब ऐसा होता है कि रचना का शीर्षक पढ़कर ही समझ आ जाता है कि आपकी ही रचना है।
जवाब देंहटाएंमैंने तो पढ़ लिया, और कितने लोटों ने पढ़ा, पता नहीं । उम्मीद है कि इस तीखी व्यंग्य रचना को पढ़ने बहुत से 'लोटे' भी लौटेंगे और बाल्टी, ग्लास, चम्मच भी दर्शन दे सकते हैं। मुझे जिसमें आप स्थान दें, कबूल है ।
सादर।