सब के पास होती है
अपनी कविता
अपनी कविता
सबही कवि होते हैं
कुछ लिख लेते हैं
कुछ बस सोच लेते हैं कविता
कुछ बो देते हैं
कुछ इन्तजार करते हैं
खेत के सूख लेने का
कुछ कविता के सपने देखते हैं
कुछ बिना कविता भी कवि हो लेते हैं
कुछ महाकवि के ताज पा जाते हैं
कुछ सदी के कवि हो जाते हैं
कुछ एक दिन की एक कविता कर चुक जाते हैं
कुछ बस कविता जी लेते हैं कुछ कविता सी लेते हैं
कुछ कविता उड़ा ले जाते हैं पतँग की डोर से
कुछ कविता जिता ले जाते हैं कविता दौड़ में
कुछ कविता जिता ले जाते हैं कविता दौड़ में
कुछ
अपनी कविता को
पड़ोसी की कविता से मिलाते हैं
कुछ
अपने घर की कविता बाजार में दे आते हैं
अपने घर की कविता बाजार में दे आते हैं
बहुत हैं
कविता बेच भी लेते हैं
कुछ उधार की कविताएं यूं ही सड़क पर बिखेर जाते हैं
अदभुद है
कविताओंं का सँसार
गृह भी हैं यहाँ ब्लैक हॉल यही हैं
सूरज भी यहीं है पृथ्वी भी है
एस्टरोइड भी घूमते नजर आ जाते हैं
पूरा ग्रँथ तैयार हो जायेगा
अगर कोई बैठ के कविताओं के
गिरह खोलने के लिये कहीं बैठ जायेगा
कविताओं में
चुम्बक भी होते हैं
उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव
कविताओं को खींचने और प्रतिकर्षित करने के काम आते हैं
दाऊद भी है यहां कश्मीर भी है आतंकवादी भी हैं
देशभक्ती पुलिस सेना और बंदूक भी
शब्दों के ऊपर मिलेगी भूनते मूँगफली और चना थोथा ही सही
बजते चलता रहता है साथ में थोथा घना
कविता को कतार में लगाना भी यहीं दिखाई देता है
शब्दों के ऊपर मिलेगी भूनते मूँगफली और चना थोथा ही सही
बजते चलता रहता है साथ में थोथा घना
कविता को कतार में लगाना भी यहीं दिखाई देता है
कविता का बाजार सजाना भी यहीं दिखाई देता है
कविता एक लिखता है
कविता एक लिखता है
कविता दूसरा पढ़ता है
तीसरा कविता पर मुहर लगाता है
तीसरा कविता पर मुहर लगाता है
चौथा दस्तखत कर ले जाता है
पाँचवा कविता अग्रसारित करता है
छटा कविता पर ही कविता कह जाता है
कविता की नदियाँ बहती हैं दूर नहीं जाना होता है
लिखी दिखी नहीं कविता के समुन्दर में तरतीब से रखी होती हैं
'उलूक’
कविता में बकवास और बकवास में कविता से उबर नहीं पाता है
कवि
कविता और कविता की किताबों को
कविता और कविता की किताबों को
उलटता पलटता बाजार में आता है
और चला जाता है
और चला जाता है
किसने कितनी कविता बेची किसने कितनी कविता खरीदी
हिसाब कहीं से भी नहीं मिल पाता है
सारे कवि लगे हुऐ दिखते हैं
मुफ्त की कविता खोदने में जहां
वहां उसे अपनी कविता की कब्र के लिये
दो गज जमीन ढूँढना भी बहुत मुश्किल हो जाता है।
चित्र साभार: https://owlcation.com/humanities/Poems-about-Animals-Represtning-Death
कविताओं के वृहद संसार का विस्तृत विवेचन... अलग तो है सबसे।
जवाब देंहटाएंकविता की कब्र के लिए दो गज़ ज़मीन गज़ब की उपमा लगी।
लिखते रहा करिये सर,महीने में एक या दो की बंदिश क्यों?
प्रणाम सर
सादर
"छटा कविता पर ही कविता कह जाता है" बहुत सही!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2022) को चर्चा मंच "मौसम नैनीताल का" (चर्चा अंक-4434) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
वाह! कविताओं पर कविता! रोचक लिखी है.
जवाब देंहटाएंकविता का संसार वृहद से वृहदतम है ,और आपका विश्लेषण अद्भुत।
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन।
कविता में बकवास और बकवास में कविता ..... सही है । न जाने कितनी कविता बिना कब्र के दफन हुईं और न जाने कितनी कब्र में .... विचारणीय रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह!निशब्द करता सृजन।
जवाब देंहटाएंकिसी को भी नहीं बख्शा आपने... सभी की अपनी अपनी कविता है... वाह!
ज़बर्दस्त
जवाब देंहटाएंक्या बात है। बहुत ही बढ़िया एक्सरे। सारी हड्डियों को गिनवा दिया है। आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंअद्भुत विश्लेषण किया है आपने कविता का ।
जवाब देंहटाएंइतनी विस्तृत और सटीक अभिव्यंजना।मन को छू गई ।बधाई सर।
शानदार सृजन।
जवाब देंहटाएंकविता के विशाल संसार की प्रभावी खोजखबर
जवाब देंहटाएंबेहद अर्थपूर्ण सृजन
साधुवाद आपको
सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंअदभुद है
जवाब देंहटाएंकविताओंं का सँसार
और आपकी कविता
बहुत ही अद्भुत लेखन,कविता में अनंत कविता,
जवाब देंहटाएंप्रणाम उलूक को सादर
जवाब देंहटाएंकसम टूटता रहे
जवाब देंहटाएंकविता रची जाती रहे
'कविता में बकवास और बकवास में कविता'
–सही बात नहीं है... आपकी व्यंग्य शैली बहुत सुन्दर कविता लिखी जाती है
अद्भुत, अतुलनीय ... Thanks for sharing :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,आशा करता हु आप हमारी साइट Hindi Talks में भी थोड़ा योगदान दे
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंVery Nice
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जून 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी ने जो पंक्तियाँ उद्धृत की थीं, उन्होंने चुंबक की तरह खींच लिया !
जवाब देंहटाएंकविता पढ़ते भी हैं सब अपने-अपने दृष्टिकोण और अनुभव से । जिसका तार जहाँ जुङ जाए । कौनसी बात किसके मन भाए । किसकी समझ क्या समझाइए । खुला मैदान है । अनंत संभावनाएं हैं । जहाँ तक सोच का परचम लहराए !
जोशी जी, आपके सबसे अलग अंदाज़े बयाँ को सलाम!
कविता का बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंयानि बोले तो -
जवाब देंहटाएंसबकी अपनी-अपनी कविता, अपना-अपना कविता संसार
जिसका न कोई छोर -छोर, न दिखता कोई अपना घर-द्वार