उलूक टाइम्स: कसम
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सोमवार, 16 मई 2022

महीने की एक बकवास की कसम को कभी दो कर के भी तोड़ दिया जाता है



सब के पास होती है
अपनी कविता
सबही कवि होते हैं
कुछ लिख लेते हैं
कुछ बस सोच लेते हैं कविता

कुछ बो देते 
हैं
कुछ इन्तजार करते 
हैं
खेत के सूख लेने का

कुछ कविता के सपने देखते हैं
कुछ बिना कविता भी कवि हो लेते हैं
कुछ महाकवि के ताज पा जाते हैं
कुछ सदी के कवि हो जाते हैं

कुछ एक दिन की एक कविता कर चुक जाते हैं
कुछ बस कविता जी लेते हैं कुछ कविता सी लेते हैं
कुछ कविता उड़ा ले जाते हैं पतँग की डोर से
कुछ कविता जिता ले जाते हैं 
कविता दौड़ में  

कुछ
अपनी कविता को
पड़ोसी की कविता से मिलाते हैं
कुछ
अपने घर की कविता बाजार में  दे आते 
हैं

बहुत हैं
कविता बेच भी लेते हैं
कुछ उधार की कविताएं यूं ही सड़‌क पर बिखेर जाते हैं

अदभुद है
कविताओंं  का सँसार
गृह भी हैं यहाँ ब्लैक हॉल यही हैं
सूरज भी यहीं है पृथ्वी भी है
एस्टरोइड भी घूमते नजर आ जाते हैं

पूरा ग्रँथ तैयार हो जायेगा
अगर कोई बैठ के कविताओं के
गिरह खोलने के लिये कहीं बैठ जायेगा

कविताओं में
चुम्बक भी होते हैं
उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव
कविताओं को खींचने और प्रतिकर्षित करने के काम आते हैं

दाऊद भी है यहां कश्मीर भी है आतंकवादी भी हैं
देशभक्ती पुलिस सेना और बंदूक भी
शब्दों के ऊपर मिलेगी 
भूनते मूँगफली और चना थोथा ही सही
बजते चलता रहता है 
साथ में थोथा घना

कविता को कतार में लगाना भी यहीं दिखाई देता है
कविता का बाजार सजाना भी यहीं दिखाई देता है

कविता एक लिखता है
कविता दूसरा पढ़‌ता है
तीसरा कविता पर मुहर लगाता है
चौथा दस्तखत कर ले जाता है
पाँचवा कविता अग्रसारित करता है
छटा कविता पर ही कविता कह जाता है

कविता की नदियाँ बहती हैं दूर नहीं जाना होता है
लिखी दिखी नहीं कविता के समुन्दर में तरतीब से रखी होती हैं

'उलूक’
कविता में बकवास और बकवास में कविता से उबर नहीं पाता है
कवि
कविता और कविता की किताबों को
उलटता पलटता बाजार में आता है
और चला जाता है
किसने कितनी कविता बेची किसने कितनी कविता खरीदी
हिसाब कहीं से भी नहीं मिल पाता है

सारे कवि लगे हुऐ दिखते 
हैं
मुफ्त की कविता खोदने में जहां
वहां उसे अपनी कविता की कब्र के लिये
दो गज जमीन ढूँढना भी बहुत मुश्किल हो जाता है।

चित्र साभार: https://owlcation.com/humanities/Poems-about-Animals-Represtning-Death

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी



फिर 
एक साल निकल लिया 

संकेत 
होनी के होने के 
नजर आना शुरु हुए 

अपनी ही सोच में 
खुद की सोच का ही 
कुछ गीला हिस्सा 
शायद फिर से 
आग पकड़ लिया 

धुआँ नहीं दिखा 
बस जलने की खुश्बू आती हुयी 
जैसा कुछ महसूस हुआ 

निकल लिया उसी ओर को 
सोचता हुआ देखने के लिये 
अगर हुआ है कुछ तो क्या हुआ 

लेकिन इस सब के बीच 
बस इतना सा संतोष हुआ 

कि खुश्बू सोच लिया 
अच्छा किया 
सकारात्मकता की रेखा को छूता रहा 
सोच को अपना पैर 
बाहर को नहीं रखने दिया 

इससे पहले बदबू की सोचती 
सोच 
टाँग पकड़ कर 
अन्दर का 
अन्दर को ही खींंच लिया 
समझाकर दिमाग को खुद के 

अपनी ही मुट्ठी बनाकर 
अपने ही हाथ की 
जोर से ठोक लिया 

हौले से हो रहे जोर के शोर से 
कुछ हिलने का 
जैसा अनुभव किया 

फिर झिझक कर याद किया 
जमाने पहले 
गुरुजी का पढ़ाया शिष्टाचार का पाठ 

और वही अपने आप 
बड़बड़ाते हुऐ 
खुद ही खुद के लिये बोल लिया

अभी सोच में आया ही था 
कि 
सभी तो लिख दिया 

और अभी अभी फिर से 
लिखने लिखाने को 
कोने से 
कलम दबा कर खिसक लिया 

एक पुरानी किताब को 
फिर बेमन से खोल लिया

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रहने दे 
मत खाया कर कसम ‘उलूक’ 
नहीं लिखने की 
लिख भी देगा तब भी 
साल इसी तरह गुजरते चले जायेंगे 

करने वालों की ताकत और सक्रियता में 
वृद्धि चक्रवृद्धि होती रही है 

लिखने लिखाने की कलमें घिसेंगी 
घिसती चली जायेंगी 

अखबार रोज का रोज 
सबेरे दरवाजे पर टंका मिलेगा 
खबरें छपवाने वालों की ही छपेंगी 

साल भर की समीक्षा की किताब के हर पन्ने पर 
वही चिपकी हुई नजर आयेंगी

हर साल इसी तरह 
दिसम्बर की विदाई की जायेगी ।। 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/