अंगूठे के
निशान
की तरह
किसी
की भी
एक दिन
की कहानी
किसी
दूसरे की
उसी दिन
की कहानी
जैसी
नहीं हो पाती है
सब तो
सब कुछ
बताते नहीं है
कुछ की
आदत होती है
आदतन
लिख दी जाती है
अब
अपने रोज
की कथा
रोज लिखकर
रामायण
बनाने की
कोशिश
सभी करते हैं
किसी
को राम
नहीं मिलते हैं
किसी
की सीता
खो जाती है
रोज
लिखता हूँ
रोज पढ़ता हूँ
कभी
अपने लिखे
को उसके लिखे के
ऊपर भी रखता हूँ
कभी
अपना
लिखा लिखाया
उसके
लिखे लिखाये से
बहुत लम्बा हो जाता है
कभी उसका
लिखा लिखाया
मेरे लिखे लिखाये की
मजाक उड़ाता है
जैसे
छिपाते छिपाते भी
एक छोटी चादर से
बिवाईयाँ
पड़ा पैर
बाहर
निकल आता है
फिर भी
सबको
लिखना
पड़ता ही है
किसी को
दीवार पर
कोयले से
किसी को
रेत पर
हथेलियों से
किसी को
धुऐं और
धूल के ऊपर
उगलियों से
किसी को
कागज पर
कलम से
कोई
अपने
मन में ही
मन ही मन
लिख लेता है
रोज का
लेखा जोखा
सबका
सबके पास
जरूर
कुछ ना कुछ
होता है
बस
इसका लिखा
उसके लिखे
जैसा ही हो
ये जरूरी
नहीं होता है
फिर भी
लिखे को लिखे
से मिलाना भी
कभी कभी
जरूरी होता है
निशान से
कुछ ना भी
पता चले
पर उस पर
अंगूठे का पता
जरूर होता है ।
चित्र साभार: raemegoneinsane.wordpress.com
निशान
की तरह
किसी
की भी
एक दिन
की कहानी
किसी
दूसरे की
उसी दिन
की कहानी
जैसी
नहीं हो पाती है
सब तो
सब कुछ
बताते नहीं है
कुछ की
आदत होती है
आदतन
लिख दी जाती है
अब
अपने रोज
की कथा
रोज लिखकर
रामायण
बनाने की
कोशिश
सभी करते हैं
किसी
को राम
नहीं मिलते हैं
किसी
की सीता
खो जाती है
रोज
लिखता हूँ
रोज पढ़ता हूँ
कभी
अपने लिखे
को उसके लिखे के
ऊपर भी रखता हूँ
कभी
अपना
लिखा लिखाया
उसके
लिखे लिखाये से
बहुत लम्बा हो जाता है
कभी उसका
लिखा लिखाया
मेरे लिखे लिखाये की
मजाक उड़ाता है
जैसे
छिपाते छिपाते भी
एक छोटी चादर से
बिवाईयाँ
पड़ा पैर
बाहर
निकल आता है
फिर भी
सबको
लिखना
पड़ता ही है
किसी को
दीवार पर
कोयले से
किसी को
रेत पर
हथेलियों से
किसी को
धुऐं और
धूल के ऊपर
उगलियों से
किसी को
कागज पर
कलम से
कोई
अपने
मन में ही
मन ही मन
लिख लेता है
रोज का
लेखा जोखा
सबका
सबके पास
जरूर
कुछ ना कुछ
होता है
बस
इसका लिखा
उसके लिखे
जैसा ही हो
ये जरूरी
नहीं होता है
फिर भी
लिखे को लिखे
से मिलाना भी
कभी कभी
जरूरी होता है
निशान से
कुछ ना भी
पता चले
पर उस पर
अंगूठे का पता
जरूर होता है ।
चित्र साभार: raemegoneinsane.wordpress.com