रात को सोया कर
कुछ सपने वपने हसीन देखा कर
सुबह सूर्य को जल चढ़ाने के बाद ही
कुछ लिखने और लिखाने की कभी कभी सोचा कर
देखेगा
सारा बबाल ही चला जायेगा
दिन भर के कूड़े कबाड़ की कहानियाँ
बीन कर जमा करने की आदत से भी बाज आ जायेगा
छोड़ देगा सोचना
बकरी कब गाय की जगह लेगी
कब मुर्गे को राम की जगह पर रख दिया जायेगा
कब मुर्गे को राम की जगह पर रख दिया जायेगा
कब दिया जायेगा राम को फिर वनवास
कब उसे लौट कर आने के लिये मजबूर कर दिया जायेगा
ऐसा देखना भी क्या
ऐसे देखे पर कुछ लिखना भी क्या
राजा के
अपने गिनती के बर्तनों के साथ
अराजक हो जाने पर अराजकता का राज होकर भी
ना दिखे किसी भी अंधे बहरे को
इससे अच्छा मौसम लगता नहीं ‘उलूक’
तेरी जिंदगी में फिर कहीं आगे किसी साल में दुबारा आयेगा
छोड़ भी दे देख कर लिखना सब कुछ
और कुछ लिख कर देख बिना देखे भी
कुछ तो जरूर लिखा जायेगा ।
चित्र साभार: altamashrafiq.blogspot.com