मानना
तो
पड़ेगा ही
इसको
उसको
ही नहीं
पूरे
विश्व को
तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री
टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को
और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को
जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री
एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी
उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है
उस
बात को
जिसको
उसके
आसपास
हो रहे पर
जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को
कहीं भी
नहीं जा री
चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया
समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार
क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री
समझ तो
मैं भी रहा हूँ
बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ
तू भी
मत कह
तेरे कहने
करने से
मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री
कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री
‘उलूक’
बेवकूफ
उजड़ने के
कगार पर
किसलिये
और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के
जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये
एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।
चित्र साभार: https://store.skeeta.biz
तो
पड़ेगा ही
इसको
उसको
ही नहीं
पूरे
विश्व को
तुझे
किसलिये
परेशानी
हो जा री
टापू से
दूरबीन
पकड़े
कहीं दूर
आसमान में
देखते हुऐ
एक गुरु को
और
बाढ़ में
बह रहे
मुस्कुराते हुऐ
उस गुरु के
शिष्य को
जब
शरम नहीं
थोड़ा सा
भी आ री
एक
बुद्धिजीवी
के भी
समझ में
नहीं आती हैंं
बातें
बहुत सारी
उसे ही
क्यों
सोचना है
उसे ही
क्यों
देखना है
और
उसे ही
क्यों
समझना है
उस
बात को
जिसको
उसके
आसपास
हो रहे पर
जब
सारी जनता
कुछ भी
नहीं कहने को
कहीं भी
नहीं जा री
चिढ़ क्यों
लग रही है
अगर
कह दिया
समझ में
आता है
डी ए की
किश्त इस बार
क्यों और
किसलिये
इतनी
देर में आ री
समझ तो
मैं भी रहा हूँ
बस
कह कुछ
नहीं रहा हूँ
तू भी
मत कह
तेरे कहने
करने से
मेरी तस्वीर
समाज में
ठीक नहीं
जा पा री
कहना
पड़ता है
तेरी
कही बातें
इसीलिये
मेरी समझ
में कभी भी
नहीं आ री
‘उलूक’
बेवकूफ
उजड़ने के
कगार पर
किसलिये
और
क्यों बैठ
जाता होगा
किसी शाख
पर जाकर
गुलिस्ताँ के
जहाँ बैठे
सारे उल्लुओं
के लिये
एक आदमी
की सवारी
राम जी की
सवारी हो जा री ।
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