एक
बहुत बड़ी सोच
बहुत बड़ी सोच
रख दी गयी है
बहुत ऊँचाई पर ले जाकर
बहुत दूर से अब
अंधे को भी
अंधे को भी
कुछ कुछ सोचता एक
बड़ा सा सिर दिखाई दे रहा है
दीवारों में
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है
खर्चा
बहुत हो गया है कह रहे हैं कुछ लोग
जिनकी सोच शायद छोटी है
हिसाब किताब
थोड़े से हजार थोड़े से करोड़ों का
अच्छी तरह से कोई उन्हें
समझा ही क्यों नहीं दे रहा है
सोच का
भूख गरीबी या बदहाली से
भूख गरीबी या बदहाली से
कोई रिश्ता नहीं होता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है
खिलाना कौन सा है
सपने ही
कुछ बड़ी सी रोटियों के
दिखा ही क्यों नहीं दे रहा है
कुछ भरे पेट
कुछ भी सोचना शुरु कर देते हैं
कुछ बड़ा सोचने के लिये
कुछ बड़े लोगों के बड़े प्रमाण पत्र
पास में होना बहुत जरूरी होता है
इतनी छोटी सी बात है
किसी भाषण के बीच में
बता ही
क्यों नहीं दे रहा है
क्यों नहीं दे रहा है
कुछ बड़ा ही नहीं
बहुत बड़ा बनाने के लिये
बहुत बड़ा बनाने के लिये
बड़ा दिल पास में होना ही होता है
रामवृक्ष बेनीपुरी के लिखे निबन्ध का
गेहूँ भी और गुलाब भी
इतना पुराना हो गया होता है
कि
सड़ गया होता है
सड़ा कुछ
बहुत बड़ा सा ला कर
बहुत बड़ा सा ला कर
सुंघा ही क्यों नहीं दे रहा है
अच्छा किया ‘उलूक’
तूने टोपी पहनना छोड़ कर
गिर जाती जमीन पर पीछे कहीं
इतनी ऊँचाई देखने में
टोपी पहनाना शुरु कर चुका है जो सबको
उसके लिये
बहुत बड़ी सी कुछ टोपियाँ
तू किसी से
खुद सिलवा ही क्यों नहीं दे रहा है ।
चित्र साभार: https://wonderopolis.org/wonder/who-is-the-tallest-person-in-the-world