उलूक टाइम्स: ऊँचाई
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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

समझ में नहीं आ रही है ऊँचाई एक बहुत ऊँची सोच की किसी से खिंचवा के ऊँची करवा ही क्यों नहीं ले रहा है

एक
बहुत बड़ी सोच 
रख दी गयी है 
बहुत ऊँचाई पर ले जाकर 

बहुत दूर से अब
अंधे को भी 
कुछ कुछ सोचता एक 
बड़ा सा सिर दिखाई दे रहा है 
दीवारों में
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है 

खर्चा
बहुत हो गया है कह रहे हैं कुछ लोग 
जिनकी सोच शायद छोटी है 

हिसाब किताब 
थोड़े से हजार थोड़े से करोड़ों का 
अच्छी तरह से कोई उन्हें 
समझा ही क्यों नहीं दे रहा है 

सोच का
भूख गरीबी या बदहाली से 
कोई रिश्ता नहीं होता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है 

खिलाना कौन सा है 

सपने ही 
कुछ बड़ी सी रोटियों के 
दिखा ही क्यों नहीं दे रहा है 

कुछ भरे पेट 
कुछ भी सोचना शुरु कर देते हैं 

कुछ बड़ा सोचने के लिये 
कुछ बड़े लोगों के बड़े प्रमाण पत्र 
पास में होना बहुत जरूरी होता है 

इतनी छोटी सी बात है 
किसी भाषण के बीच में 
बता ही
क्यों नहीं दे रहा है 

कुछ बड़ा ही नहीं
बहुत बड़ा बनाने के लिये 
बड़ा दिल पास में होना ही होता है 

रामवृक्ष बेनीपुरी के लिखे निबन्ध का 
गेहूँ भी और गुलाब भी 
इतना पुराना हो गया होता है 
कि 
सड़ गया होता है 

सड़ा कुछ
बहुत बड़ा सा ला कर 
सुंघा ही क्यों नहीं दे रहा है 

अच्छा किया ‘उलूक’ 
तूने टोपी पहनना छोड़ कर 

गिर जाती जमीन पर पीछे कहीं 
इतनी ऊँचाई देखने में 

टोपी पहनाना शुरु कर चुका है जो सबको 
उसके लिये 
बहुत बड़ी सी कुछ टोपियाँ 

तू किसी से 
खुद सिलवा ही क्यों नहीं दे रहा है ।

चित्र साभार: https://wonderopolis.org/wonder/who-is-the-tallest-person-in-the-world

बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

ऊपर जाने के रास्ते समझो जरा नीचे से निकल कर जाने हो रहे हैं

डूबते हुऐ जहाज
में बहुत तेजी
से हो रहे हैं
एक नहीं एक
साथ हो रहे हैं
सारे हो रहे हैं
सारे के सारे
काम ही हो रहे हैं
काम का दिखना
जरूरी नहीं है
जरूरी है देखना
किनारे से
भोंपुओं के सहारे
सहारे से कई
इशारे हो रहे हैं
हो रहें हैं कि
नहीं हो रहे हैं
इतनी गजब की
बातें हो रही है
ये सब कुछ
जल्दी ही गिन कर
गिनीज बुक को
बताने हो रहे हैं
जहाज की सैल्फी
डूबती हुई जनता
खुद ही ले रही है
किस्मत बहुत ही
खराब है कुछ
लोगों की जहाँ
जहाज चलाने वाले
के लोगों के शोर
नगाड़ों के शोर
में खो रहे हैं
किसी के होश
उड़ रहे हैं जहाज
के डूबने की
सोच सोच कर
पैंट के पाँयचे
ना जाने किस डर
से गीले हो रहे हैं
बेवकूफ का बेवकूफ
रह गया ‘उलूक’
उसे तो हमेशा
दिखा है सोचने
समझने के
लाले हो रहे हैं
वादा किया भी है
ऊँचाईयों में ले
जाने का जहाज
वादा निभाने के
लिये ही तो काम
सारे हो रहे हैं
किसने कह दिया
ऊपर को ही जाना
जरूरी है ऊँचाईयाँ
छूने के लिये
मन लगा कर
इच्छा से डूब कर
भी ऊपर को ही
जाने के रास्ते
जब बहुत
आसान और
बहुत सारे हो रहे हैं ।

चित्र साभार: blogs.21rs.
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