उलूक टाइम्स: कबड्डी
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गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

आज कुछ हड्डी की बात थोड़ा चड्डी की बात कुछ कबड्डी की बात

"चिट्ठे ‘उलूक टाइम्स’ तक पहुँचे 18 लाख कदमों के लिये दर्शकों पाठकों और टिप्पणीकारों को दिल से आभार" 



किसी को लग रहा है 
कबड्डी चल रही है 

जी नहीं 
ये एक जगह की 
बात नहीं है जनाब 

देश में 

हर गली मोहल्ले में 
ध्यान से देखिये जनाब 

कान खोलिये नाक खोलिये 
आँख खोलिये जनाब 

बस एक हड्डी 
और 
बस हड्डी 

चल रही है जनाब 

हड्डी चलती है 
उसके चल जाने के बाद 
कबड्डी चलती है जनाब 

कबड्डी किस के बीच में चल रही है 
बस यही मत देखिये जनाब 

कबड्डी के मैदान के आस पास ढूँढिये 
जरूर दिखेगी 
कोई ना कोई आपको 
हड्डी जनाब 

जमाना हड्डियों का है 
इशारे से हो रही हैं 
छोटे बड़े सारे मैदानों में 
कबड्डियाँ जनाब 

और 

आप का ध्यान 
भटक रहा है 
बस राजधानी की कबड्डी पर 
जा कर अपने आप 

हो सकता है 
शौक रहा हो आपको भी कभी 
कबड्डी का बेहिसाब 

खेलने की इच्छा हो रही हो 

हो सकती है 
भड़क रही हो इसलिये 
क्या पता अन्दर की आग 

इसीलिए बन भी रही हो 
सोचते सोचते सोच की भाप 

पकड़ने वाले कर रहे हैं 
पकड़ पकड़ 
खेतों के बीच घुसे हुऐ हैं 
बहुत बड़ी बड़ी उगा कर घास 

छूट जा रहे हैं 
इस सब में नेवलों के हाथों से 
पकड़े हुऐ जहरीले साँप 

जमाना बदल रहा है 
इन्द्रियों बेचारी रह गयी 
आप के पास अभी तक पाँच 

जागृत करिये छटी इन्द्री 
हो सके तो सातवीं और आठवीं भी 

बन सको आप भी संजय महाभारत के 
माहिर हो कर घर बैठे बैठे लो पैंतरे भाँप 

‘उलूक’ क्या देखता है 
रात को उठा हुआ 
दिन में सोया हुआ 

रहने भी दो जनाब 

हड्डी हो या चड्डी या कबड्डी 
कोई मेल नहीं दिखता 

चलने दीजिये 
मान कर उसकी 
आखें कान नाक हो गयी हैं 
बहुत ज्यादा खराब 

छोटी सी बात को 
करने लगा है बड्डी बड्डी और बड्डी 
खेलने के लिये खुद 
बातों की कबड्डी जनाब । 

चित्र साभार: http://www.clipartguide.com

बुधवार, 31 अगस्त 2016

मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर

अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
दिख रही थी
घिरी हुई
राष्ट्रीय
खबरों से
सुन्दरी का
ताज पहने हुऐ
मेरे ही घर की
मेरी ही
एक खबर

हंस रही थी
बहुत ही
बेशरम होकर
जैसे मुझे
देख कर
पूरा जोर
लगा कर
खिलखिलाकर

कहीं पीछे के
पन्ने के कोने में
छुप रही थी
बलात्कार की
एक खबर
इसी खबर
को सामने
से देख कर
घबराकर
शरमाकर

घर के लोग सभी
घुसे हुऐ थे घर में
अपने अपने
कमरों के अन्दर
हमेशा की तरह
आदतन
इरादातन
कुंडी बाहर से
बंद करवाकर

चहल पहल
रोज की तरह
थी आँगन में
खिलखिलाते
हुऐ खिल रहे
थे घरेलू फूल
खेल रहे थे
खेलने वाले
कबड्डी
जैसे खेलते
आ रहे थे
कई जमाने से
चड्डी चड़ाये हुए
पायजामों के
ऊपर से
जोर लगाकर
हैयशा हैयशा
चिल्ला चिल्ला कर

खबर के
बलात्कार
की खबर
वो भी जिसे
अपने ही घर
के आदमियों
ने अपने
हिसाब से
किया गया
हो कवर
को भी कौन सा
लेना देना था
किसी से घर पर

‘उलूक’
खबर की भी
होती हैं लाशें
कुछ नहीं
बताती हैं
घर की घर में
ही छोड़ जाती हैं
मरी हुई खबर
को देखकर
इतना तो
समझ ही
लिया कर ।

चित्र साभार: worldartsme.com

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

दूर कहीं जा अपने घर से जिसके भी घर जितना चाहे खेल कबड्डी

कौन
देख रहा
किस ब्रांड की
किसकी चड्डी

रहने दे
खुश रह
दूर कहीं
अपने घर
से जाकर

जितना
मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

अपने
घर की
रेलमपेल

खेलने वाले
तेरे ही अपने
उनके खेल
तेरे ही खेल

मत बन
अपने ही
घर के
अपनों के

कबाब की
खुद ही तू हड्डी

दूर कहीं
अपने घर
से जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

खबर छाप
फोटो खींच

दिखा दूर
कहीं जंगल में
जहरीला सांप

घर में बैठा
एक नहीं
हर कोई
लागे जब

अपना ही
मुहँबोला बाप

बातें सुन
घर की घर में
बड्डी बड्डी

मत कर
ताँक झाँक
रहने दे
झपट्टा झपट्टी

मालूम होता
है खुद का
खुद को

सब कुछ
कहाँ से

कितनी
अंदर की

कहाँ से
कहाँ तक
फटी हुई है
अपनी खुद
की ही चड्डी

दूर कहीं
अपने घर से
जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

लेकर हड्डी
दूर निकल कर

बहुत
दूर से
नहीं नजर
पड़े जहाँ से
अपने घर की
शराब की भड्डी

इसके उसके
सबके घर में

जा जा कर
झंडे लहराकर

सबको समझा
इसके उसके
घर की
फड्डा फड्डी

दूर कहीं
अपने घर से
जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी ।

चित्र साभार: www.vidhyalya.in

सोमवार, 18 जून 2012

नयी कबड्डी

पता ही नहीं
लग पा रहा है
मेरे घर में क्या
होने जा रहा है
हर महीने विपक्ष
से एक पक्ष में
आ कर मिल
जा रहा है
वोटर तेरे वोट
का ये सिलसिला
तेरे को दिया
जा रहा है
क्या तेरी समझ में
ये सब साफ साफ
आ रहा है
तेरा नेता तेरे को
कोई धोखा सीधे
सीधे दिये जा रहा है
सुना है तीन महीने
के अंदर विपक्ष भी
पक्ष के अंदर सेंध
लगाने के लिये
जा रहा है
बड़ा छेद करके
खुद सरकार अपनी
बनाने जा रहा है
वोटर तेरे को
सांप क्यों सूंघ
जा रहा है
तू कुछ क्यों नहीं
बोल पा रहा है
मेरी समझ में
तेरा इस
तरह शर्माना
बिल्कुल भी नहीं
आ पा रहा है
आइडियोलोजी के
कालर खडे़ करने
वालों को पसीना
क्यों आ रहा है
मुझे तो किसी पर
क्या कमेंट करूंं
कुछ कहना ही
नहीं आ रहा है
पर क्या
यह व्यवहार
वेश्यावृति से
सौ प्रतिशत मेल
नहीं खा रहा है।