"चिट्ठे ‘उलूक टाइम्स’ तक पहुँचे 18 लाख कदमों के लिये दर्शकों पाठकों और टिप्पणीकारों को दिल से आभार"
किसी को लग रहा है
कबड्डी चल रही है
जी नहीं
ये एक जगह की
बात नहीं है जनाब
देश में
हर गली मोहल्ले में
ध्यान से देखिये जनाब
कान खोलिये नाक खोलिये
आँख खोलिये जनाब
बस एक हड्डी
और
बस हड्डी
चल रही है जनाब
हड्डी चलती है
उसके चल जाने के बाद
कबड्डी चलती है जनाब
कबड्डी किस के बीच में चल रही है
बस यही मत देखिये जनाब
कबड्डी के मैदान के आस पास ढूँढिये
जरूर दिखेगी
कोई ना कोई आपको
हड्डी जनाब
जमाना हड्डियों का है
इशारे से हो रही हैं
छोटे बड़े सारे मैदानों में
कबड्डियाँ जनाब
और
आप का ध्यान
भटक रहा है
बस राजधानी की कबड्डी पर
जा कर अपने आप
हो सकता है
शौक रहा हो आपको भी कभी
कबड्डी का बेहिसाब
खेलने की इच्छा हो रही हो
हो सकती है
भड़क रही हो इसलिये
क्या पता अन्दर की आग
इसीलिए बन भी रही हो
सोचते सोचते सोच की भाप
पकड़ने वाले कर रहे हैं
पकड़ पकड़
खेतों के बीच घुसे हुऐ हैं
बहुत बड़ी बड़ी उगा कर घास
छूट जा रहे हैं
इस सब में नेवलों के हाथों से
पकड़े हुऐ जहरीले साँप
जमाना बदल रहा है
इन्द्रियों बेचारी रह गयी
आप के पास अभी तक पाँच
जागृत करिये छटी इन्द्री
हो सके तो सातवीं और आठवीं भी
बन सको आप भी संजय महाभारत के
माहिर हो कर घर बैठे बैठे लो पैंतरे भाँप
‘उलूक’ क्या देखता है
रात को उठा हुआ
दिन में सोया हुआ
रहने भी दो जनाब
हड्डी हो या चड्डी या कबड्डी
कोई मेल नहीं दिखता
चलने दीजिये
मान कर उसकी
आखें कान नाक हो गयी हैं
बहुत ज्यादा खराब
छोटी सी बात को
करने लगा है बड्डी बड्डी और बड्डी
खेलने के लिये खुद
बातों की कबड्डी जनाब ।
चित्र साभार: http://www.clipartguide.com