उलूक टाइम्स: खरीदने
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बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

कूड़ा लिख ‘उलूक’ परेशानी एक है साथ में डस्टबिन क्यों नहीं ले कर के आता है






लिखे की गिनती करने के चक्कर मे हमेशा
क्या लिखना है भूला जाता है
कूड़े के ऊपर कहीं के
कहीं और का कूड़ा आ कर बादलों सा छा जाता है


कूड़ा कोई नहीं लिखता है
ना ही किसी को कूड़ा पढ़ लेना ही आता है
कूड़ा फेकने वाला भी नहीं देखता है कभी
कूड़ा बस उठाता है और फेंक आता है


सकारात्मकता बेचने खरीदने के खेल से कमाने वालों के बटुवे में
कूड़ा कभी नहीं पाया जाता है
कूड़ा बेचने खरीदने वालों की हमेशा विजय होती है
नीरमा की सफेदी एक विज्ञापन होता है रह जाता है


कूड़े की राजनीति एक सफल राजनीति होती है बल
ऐसा कहा लेकिन कभी नहीं जाता है
कूड़ा ढक कर सफेद कपड़े से लेकिन
उजाले का आभास कराने वाले को मेडल दिया जाता है


सारे कूड़े पर बैठे हुऐ कूड़े
अपने अपने दाँत निपोर कर दिखाते हैं
कूड़ा समेटने वाला हमेशा घबराता है शर्माता है
पर्यावरण के पाठ में और उसी विषय की किताब में
कूड़ा ही होता है
जो गालियाँ कई सारी हमेशा खाता है


‘उलूक’ कूड़ा सोचा मत कर
कूड़ा किया कर फैलाया कर
समझा कर
कूड़ा नियामत है हजूर की
वो हजूर जो कूड़े की ही खाता है
लिख जितना लिख सकता है कूड़ा
सफाई लिखने वाला
सफाई लिखने वाले के यहाँ ही दिखाई देता है
और
झाड़ू साफ़ सफाई कहता हुआ भी पाया जाता है ।


चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



रविवार, 1 सितंबर 2019

कभी खरीदने आना होता है कभी बेचने जाना होता है आना जाना बना कर ही संतुलन बनाना होता है


कुछ
शब्दों को
इधर

कुछ
शब्दों को
उधर

ही तो
लगाना होता है

बकवास
करने में
कौन सा
किसी को

व्याकरण
साथ में
समझाना
होता है

कौमा
हलन्त चार विराम
अशुद्धि
चंद्र बिंदू
सीख लेना
बोनस
बनाना होता है

उनके लिये
जिन्हें
एक ही बात से
दो का मतलब
निकलवाना होता है

रोज का रोज
उगल दिया जाना

जमाखोरों
की
जमात में जाने से
खुद को
बचाना होता है

केवल
संडे मार्केट में
दुकान
लगाने वाले के लिये

एक
बड़ी मुश्किल
माल को
ठिकाने
लगाना होता है

लोकतंत्र में
कुछ भी
बेच लेने वाले
के
बोलबाले
का
दिवाना
सारा जमाना होता है

‘उलूक’
खाली
हो जायेगी
दुकान
कहना छोड़

सपने में
भी
खाली
देख लेने
वाले को

सबसे पहले
अन्दर
जाना होता है ।

चित्र साभार: https://www.ttu.ee