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रविवार, 1 सितंबर 2019

कभी खरीदने आना होता है कभी बेचने जाना होता है आना जाना बना कर ही संतुलन बनाना होता है


कुछ
शब्दों को
इधर

कुछ
शब्दों को
उधर

ही तो
लगाना होता है

बकवास
करने में
कौन सा
किसी को

व्याकरण
साथ में
समझाना
होता है

कौमा
हलन्त चार विराम
अशुद्धि
चंद्र बिंदू
सीख लेना
बोनस
बनाना होता है

उनके लिये
जिन्हें
एक ही बात से
दो का मतलब
निकलवाना होता है

रोज का रोज
उगल दिया जाना

जमाखोरों
की
जमात में जाने से
खुद को
बचाना होता है

केवल
संडे मार्केट में
दुकान
लगाने वाले के लिये

एक
बड़ी मुश्किल
माल को
ठिकाने
लगाना होता है

लोकतंत्र में
कुछ भी
बेच लेने वाले
के
बोलबाले
का
दिवाना
सारा जमाना होता है

‘उलूक’
खाली
हो जायेगी
दुकान
कहना छोड़

सपने में
भी
खाली
देख लेने
वाले को

सबसे पहले
अन्दर
जाना होता है ।

चित्र साभार: https://www.ttu.ee

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

इस घर को उस घर से निकाल किसी और घर में मिलाने का जल्दी ही कमाल होगा

दैनिक हिन्दुस्तान 15/01/2019
नये साल

जरूर

फिर से
कोई
बबाल होगा

बिकेगा
एक बार और
बिका घर

अलग
धमाल होगा

उस घर से
उठाया था
घर कभी

सोचे बिना
कोई
सवाल होगा

इस घर में
मिलाया था
सोच कर

कल सब
अपना ही
माल होगा

घर बेच
कर बना
घर का
मालिक

कितना
निहाल होगा

कफन
तीसरे साल
बदल
देने वाला

कितना
खुशहाल होगा

पाँच साल में
निकलेगा
फिर जनाजा

क्या
सूरते
हाल होगा

किसका मरा
कुछ नहीं होगा

सबसे आगे
सिर मुँडाया

वही
माई का
लाल होगा

बेवकूफ
‘उलूक’
दौड़ेगा

छोड़ कर
चलना
घुटनों के बल

देखना
बेमिसाल होगा

समझदारों
के गिरोह में
खिल उठेंगे
चेहरे सभी

इस
नये साल
पक्का

बेवकूफों का
फिर
इन्तकाल होगा।
 

चित्र साभार: दैनिक हिंदुस्तान, मंगलवार, 15/01/2019 पृष्ठ 11

सोमवार, 21 सितंबर 2015

दुकान के अंदर एक और दुकान को खोला जाये


जब दुकान खोल ही ली जाये 
तो फिर क्यों देखा जाये इधर उधर 
बस बेचने की सोची जाये 

दुकान का बिक जाये तो बहुत ही अच्छा 
नहीं बिके अपना माल किसी और का बेचा जाये 

रोज उठाया जाये शटर एक समय 
और एक समय आकर गिराया भी जाये 

कहाँ लिखा है जरूरी है 
रोज का रोज कुछ ना कुछ बिक बिका ही जाये 

खरीददार 
अपनी जरूरत के हिसाब से 
अपनी बाजार की अपनी दुकान पर आये और जाये 

दुकानदार 
धार दे अपनी दुकानदारी की तलवार को 
अकेला ना काट सके अगर बीमार के ही अनार को 

अपने जैसे लम्बे समय के 
ठोके बजाये साथियों को साथ में लेकर 
किसी खेत में जा कर हल जोत ले जाये 

कौन देख रहा है क्या बिक रहा है 
किसे पड़ी है कहाँ का बिक रहा है 
खरीदने की आदत से आदतन कुछ भी कहीं भी खरीदा जाये 

माल अपनी दुकान का ना बिके 
थोड़ा सा दिमाग लगा कर पैकिंग का लिफाफा बदला जाये 

मालिक की दुकान के अंदर खोल कर एक अपनी दुकान 
दुकान के मालिक का माल मुफ्त में 
एक के साथ एक बेचा जाये 

मालिक से की जाये मुस्कुरा कर मुफ्त के बिके माल की बात 

साथ में बिके हुऐ दुकान के माल से 
अपनी और ठोके पीटे साथियों की पीछे की जेब को 
गुनगुने नोटों की गर्मी से थोड़ा थोड़ा रोज का रोज 
गुनगुना सेका जाये । 

चित्र साभार: www.fotosearch.com

रविवार, 12 जनवरी 2014

मिर्ची क्यों लग रही है अगर तेरी दुकान के बगल में कोई नयी दुकान लगा रहा है

माना कि
नयी
दुकान एक

पुरानी
दुकानों के 
बाजार में
घुस कर

कोई
खोल बैठा है

पुराना ग्राहक
इतने से में ही
पता नहीं
क्यों आपा
खो बैठा है

खरीदता है
सामान भी
अपनी ही
दुकान से
धेले भर का

नयी
दुकान के
नये ग्राहकों को

खाली पीली

धौंस
पता नहीं

क्यों
इतना देता है


अपने
मतलब
के समय

एक दुकानदार
दूसरे
दुकानदार को

माल
भी
जो चाहे दे देता है


ग्राहक
एक का

बेवकूफ जैसा

दूसरे के
ग्राहक से

खाली पीली
में
ही
उलझ लेता है


पचास साठ
सालों से

एक्स्पायरी
का सामान

ग्राहकों को
भिड़ा रहे हैं


ऐसे
दुकानदारों के

कैलेण्डर

ग्राहक

अपने अपने
घर पर

जरूर लगा रहे हैं

माल सारा
दुकानदारों

के खातों में ही
फिसल के जा रहा है

बाजार
चढ़ते चढ़ते

बैठा दिया
जा रहा है


नफा ही नफा
हो रहा है


पुरानी
दुकानों को

थोड़ा बहुत
कमीशन


ग्राहकों में
अपने अपने

पहुंचा दिया
जा रहा है


ग्राहक
लगे हैं
अपनी
अपनी
दुकानो के

विज्ञापन
सजाने में


कोई
अपने घर का

कोई
बाजार का
माल
यूं ही
लुटा रहा है


क्या फर्क
पड़ता है

ऐसे में

अगर कोई

एक नई दुकान
कुछ दिन के
लिये
ही सही
यहाँ लगा रहा है


खरीदो
आप अपनी
ही
दुकान का
कैसा भी सामान


क्यों
चिढ़ रहे हो

अगर कोई
नयी दुकान

की तरफ
जा रहा है


बाजार
लुट रही है

कब से
पता है तुम्हें भी


फिर
आज ही
सबको

रोना सा
क्यों आ रहा है


बहुत जरूरी
हो गया है

अब इस बाजार में

एक
अकेला कैसे

सारी बाजार
को लूट कर


अपनो में ही
कमीशन

बटवा रहा हैं

तुम करते रहो धंधा 

अपने इलाके में
अपने हिसाब से

एक नये
दुकानदार की

दुकानदारी

कुछ दिन

देख लेने में
किसी का क्या
जा रहा है ?

शनिवार, 9 जून 2012

उल्लू की रसोई

रोज
कोशिश
करता हूँ

कुछ
ना कुछ
पका ही
ले जाता हूँ

खुद
खाने के
लिये नहीं
यहाँ परोसने
के लिये
ले आता हूँ

कुछ
खाने वाले
खीर को
आईसक्रीम
बताते हैं

चीनी
डाली है
कहने पर
नमक तेज
डाल दिया
तक
कह जाते हैं

अब
रसोईया
वही तो
पका पायेगा

जिस
चीज का
कच्चा माल
अपने आस पास
उसे मिल जायेगा

खाने
वाले को पसंद
आये तो ठीक
नहीं भी आये
तब भी परोस तो
दिया ही जायेगा

कोई
थोड़ा खायेगा
कोई पूरा
खा जायेगा

कोई कोई
थाली को
सरका कर के
किनारे से
निकल जायेगा

किसी के मन
बहुत ज्यादा
भा गया
खाना मेरा
तो रोटियाँ
अपनी थाली
के लिये भी
उठा ले जायेगा
मेरा क्या जायेगा?