अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग
उतरा रंग
चमकने लगा
शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली
जिंदगी ने अंगड़ाई ली
शमशान
की खामोशी नहीं
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज
फिर से
आबाद होने को है
आबाद होने को है
उसका घरौंदा
कल तक
रोटी कपडे़ के लिये
मोहताज हाथों में
दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है
होंठो पे लाली भी है
लेकिन
कहीं ना कहीं
कहीं ना कहीं
कुछ छूटा हुवा सा लगता है
चेहरे पे
जो नूर था
जो नूर था
रंगत थी आंखों में
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है
बच्चों के
चीखने की आवाज
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है
बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है
शायद
किसी आधीं ने
उड़ा दिया सब कुछ
अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह
पर कुछ तो हुआ है
ना जाने
जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।