उलूक टाइम्स: करवट
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रविवार, 24 अक्टूबर 2021

ग़ाँधी को लगी गोली को आज सलाम मिल रहा है

 


सब कुछ ठीक है बस कुछ बुलबुले हैं कुछ भी कहीं नहीं उबल रहा है
सूरज सुबह और चाँद शाम को ही हमेशा की तरह निकल रहा है

सब खुश हैं सब ही मौज में हैं दिल भी सुना यूँ ही बहुत बहल रहा है
चेहरों की चमक देखिये गालों का रंग भी जरा सा नहीं बदल रहा है

चारों तरफ चैन है बैचेन एक भी कहीं ढूँढे नहीं मिल रहा है
संत हो गये हैं सारे इतना संतोष है सम्भाले नहीं सम्भल रहा है

लिखा हुआ बोरों के हिसाब से गोदामों में लाईन लगा तुल रहा है
कुछ पढ़ दिया जा रहा है कुछ इंतजार में है करवट बदल रहा है

कुछ लिखने को कहीं कुछ बकने को कहीं कुछ ईनाम मिल रहा है
‘उलूक’ अच्छा है कम कर दिया बकना तूने
ग़ाँधी को लगी गोली को आज सलाम मिल रहा है ।


चित्र साभार: https://indianexpress.com/

बुधवार, 23 सितंबर 2009

करवट

अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग 
चमकने लगा 

शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली

शमशान
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज

फिर से
आबाद होने को है 
उसका घरौंदा

कल तक 
रोटी कपडे़ के लिये 
मोहताज हाथों में 

दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां 
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है

लेकिन
कहीं ना कहीं 
कुछ छूटा हुवा सा लगता है

चेहरे पे
जो नूर था
रंगत थी आंखों में 
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है

बच्चों के
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है

बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है 

शायद
किसी आधीं ने 
उड़ा दिया सब कुछ

अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह 

पर कुछ तो हुआ है
ना जाने 

जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।