उलूक टाइम्स: करवट

बुधवार, 23 सितंबर 2009

करवट

अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग 
चमकने लगा 

शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली

शमशान
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज

फिर से
आबाद होने को है 
उसका घरौंदा

कल तक 
रोटी कपडे़ के लिये 
मोहताज हाथों में 

दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां 
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है

लेकिन
कहीं ना कहीं 
कुछ छूटा हुवा सा लगता है

चेहरे पे
जो नूर था
रंगत थी आंखों में 
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है

बच्चों के
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है

बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है 

शायद
किसी आधीं ने 
उड़ा दिया सब कुछ

अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह 

पर कुछ तो हुआ है
ना जाने 

जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. अगर सब महसूसा दिखने लगे
    तो दिख रहा सारा महसूस करेंगे कैसे

    जवाब देंहटाएं
  2. महसूस करने वाली बात है-उम्दा रचना.

    जवाब देंहटाएं
  3. भाई वाह क्या बात है, बहुत-बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह...वाह....उम्दा रचना
    आपको पढ़कर अच्छा लगा
    शुभकामनाएं


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  5. कविता जब इस बिंदू पर पहुँचती है तो सब कुछ कह देती है "करवट" का सबब :-

    आज वो
    उतरा हुवा सा
    ना जाने
    क्यों लगता है

    एक चिंता जगाती कविता, बहुत सार्थक लेखन, बधाईयाँ।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  6. फिर से
    आबाद
    होने को है
    उसका घरौंदा...

    मुझे आशा की किरण दिख रही है.

    रचना भावपूर्ण है!

    जवाब देंहटाएं
  7. इतनी उम्दा रचना निगाहों से छूट गयी थी ....बहुत ही सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  8. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  9. शमशान
    की खामोशी नहीं
    शहनाईयां बज रही हैं आज

    फिर से
    आबाद होने को है
    उसका घरौंदा

    पुनर्विवाह!!!!
    बहुत ही भावपूर्ण उत्कृष्ट सृजन।

    जवाब देंहटाएं