अचानक
उन टूटी खिड़कियों का
उतरा रंग
उतरा रंग
चमकने लगा
शायद
जिंदगी ने अंगड़ाई ली
जिंदगी ने अंगड़ाई ली
शमशान
की खामोशी नहीं
की खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज
फिर से
आबाद होने को है
आबाद होने को है
उसका घरौंदा
कल तक
रोटी कपडे़ के लिये
मोहताज हाथों में
दिखने लगी हैं
चमकती चूड़ियां
जुल्फें संवरी हुवी हैं
होंठो पे लाली भी है
होंठो पे लाली भी है
लेकिन
कहीं ना कहीं
कहीं ना कहीं
कुछ छूटा हुवा सा लगता है
चेहरे पे
जो नूर था
जो नूर था
रंगत थी आंखों में
आज वो उतरा हुवा सा
ना जाने क्यों लगता है
बच्चों के
चीखने की आवाज
चीखने की आवाज
अब नहीं आती है
बूड़े माँ बाप
के चेहरों पे
के चेहरों पे
खामोशी सी छाई है
शायद
किसी आधीं ने
उड़ा दिया सब कुछ
अपनी जगह
पर ही है हर एक चीज
पर ही है हर एक चीज
हमेशा की तरह
पर कुछ तो हुआ है
ना जाने
जो
महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं है।
bahut marmik kavita !
जवाब देंहटाएंअगर सब महसूसा दिखने लगे
जवाब देंहटाएंतो दिख रहा सारा महसूस करेंगे कैसे
महसूस करने वाली बात है-उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंभाई वाह क्या बात है, बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह...वाह....उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंआपको पढ़कर अच्छा लगा
शुभकामनाएं
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बेहतरीन भाव बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंlage raho munna bhai
जवाब देंहटाएंकविता जब इस बिंदू पर पहुँचती है तो सब कुछ कह देती है "करवट" का सबब :-
जवाब देंहटाएंआज वो
उतरा हुवा सा
ना जाने
क्यों लगता है
एक चिंता जगाती कविता, बहुत सार्थक लेखन, बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
फिर से
जवाब देंहटाएंआबाद
होने को है
उसका घरौंदा...
मुझे आशा की किरण दिख रही है.
रचना भावपूर्ण है!
bahut khubsurat bhav ,bahut achhca laga padna.
जवाब देंहटाएंइतनी उम्दा रचना निगाहों से छूट गयी थी ....बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
शमशान
जवाब देंहटाएंकी खामोशी नहीं
शहनाईयां बज रही हैं आज
फिर से
आबाद होने को है
उसका घरौंदा
पुनर्विवाह!!!!
बहुत ही भावपूर्ण उत्कृष्ट सृजन।