‘उलूक’ की 2017 की सौवीं बकवास गालिब के नाम :
दो सौ के ऊपर से और बीस बीत गये साल
कोई दूसरा नहीं गालिब हुआ
अब तो समझा भी दे गालिब
गालिब हुआ भी तो कोई कैसे गालिब हुआ
बहुत शौक है दीवानों को
गालिब हो जाने का आज भी
जैसे आज ही गालिब हुआ
लगता है
कभी तो हुआ कुछ देर को ये भी गालिब हुआ
कभी तो हुआ कुछ देर को ये भी गालिब हुआ
और वो भी गालिब हुआ
समझ में किसे आता है पता भी कहाँ होता है
अन्दाजे गालिब हुआ तो क्या हुआ
बयाने गालिब पढ़ लिया बस
उसी समय से सारा सब कुछ ही गालिब हुआ
ये हुआ गालिब कुछ नहीं हुआ
फिर भी इस साल का ये सौवाँ हुआ
तेरे जन्मदिन के दिन भी कोई नयी बात नहीं हुई
वही कुछ रोज का धुआँ धुआँ हुआ
अब तो एक ही गालिब रह गया है जमाने में गालिब
कुछ भी कहना उसी का शेरे गालिब हुआ
‘उलूक’ की नीयत ठीक नहीं हैं गालिब
क्या हुआ अगर कोई इतना भी गालिब हुआ ।
चित्र साभार: http://youthopia.in/irshaad-ghalib/