उलूक टाइम्स: चेहरे
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रविवार, 20 सितंबर 2020

खाली लिखने लिखाने से कुछ नहीं होना है गिरोह खुद ही होना होगा या किसी गिरोह में शामिल होना ही पड़ेगा

 


आसान
नहीं होता है
एक गिरोह हो जाना

बहुत
मुश्किल है
बिना गिरोह में शामिल हुऐ
कुछ
अपने मन से
सही कुछ
कहीं कर ले जाना

जमाना
आज गिरोहों का है

सरदार कौन है
कौन सदस्य है
किसे पूछना है

अपनी इच्छा से हो सके
कोई
अपने फायदे का काम बस यही सोचना है

गिरोह
हो जाने के
कोई नियम कायदे नहीं होते हैं

क्रमंचय या संचय का
प्रयोग करना होता है
काम कैसे हो जायेगा
बस यही सोचना और यही देखना होता है

बाहर से चेहरे में लिखा
बहुत कुछ नजर आये तब भी
आँख बंद कर
उससे कहीं पीछे की ओर देखना होता है

दल
दल बदल
झंडा डँडा सब दिखाने के होते हैं
काम कराने के तरीके के रास्तों के
अलग कुछ फसाने होते हैं

अकेला आदमी
कुछ अच्छी सोच लिये
अच्छे काम कर पाने के सपने खोदता है

उसी आदमी की
अच्छाई की तस्वीर को
कहीं एक गिरोहबाज
तेल पोत लेने के फसाने ढूंढता है

अच्छे अच्छा और अच्छाई
अभिशाप हो लेते हैं
तेल पोतने वाला
किसी और गिरोह का सहारा ले कर
अच्छाई की कबर खोदता है

जमाना गिरोह
और
गिरोहबाजों का चल रहा है

समझदार
कोई भी
अपने हिसाब के किसी गिरोह के
पैर धोने के लिये
उसके
आने जाने के ठिकाने ढूंढता है

‘उलूक’ कुछ करना कराना है तो
गिरोह होना ही 
पड़ेगा

खुद ना कर सको कुछ
कोई गल नहीं
किसी गिरोहबाज को
करने कराने के लिये
कहना कहाना ही 
पड़ेगा

हो क्यों नहीं लेता है
कुछ दिन के लिये बेशरम
सोच कर अच्छाई 

हमाम में
सबके साथ नहाना है  
खुले आम कपड़े खोल के
सामने से तो आना ही पड़ेगा।


चित्र साभार: https://clipart-library.com/
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Alexa Traffic Rank World: 121703 इंडिया: 11475 20/09/2020 08:31 पीएम 
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शनिवार, 1 अगस्त 2020

कलाकारों पर क्यों नहीं छोड़ देता है वो बना लेंगे पेंटिंग हूबहू


तू लिख
लेकिन चेहरे मत लिख
मुखौटे लिखना तेरे बस में नहीं है

चित्र सब सोच सकते हैं
उकेरने का लाइसेंस होना चाहिये
है तेरे पास ?
 फिर किसलिये प्रयास करता है?

 हाथ लिख पैर लिख अंगुलियाँ लिख
पेट लिख माँस लिख  हड्डियाँ लिख
 कौन रोकता है?
 बस चेहरे मत लिख

हर चेहरे के साथ एक मुखौटा होता है
हर मुखौटे के साथ एक चेहरा होता है
मुखौटे होना  बहुत जरूरी है भी

चेहरा हर समय मुखौटे के साथ हो
या
मुखौटा हर समय चेहरे के साथ हो
जरूरी नहीं भी होता है

मुखौटे लिखने की महारत
हर किसी के पास होती है

चेहरा लिखना किसी के बस में
होता भी है या नहीं होता है
इस पर ना किसी ने कभी कुछ कहा होता है
ना कुछ कहीं लिखा होता है

मुखौटे
एक चेहरे के कई हो सकते हैं
कई चेहरों पर
एक मुखौटा कभी हो ही नहीं सकता है

सारा लिखा लिखाया
मुखौटा ओढ़ कर ही लिखा जाता है

कोई हो
तुलसी हो कबीर हो सूर हो
सबके मुखौटे की छाया
लिखा लिखाया साफ साफ दिखा जाता है

लिखने वाले ने लिखा होता है
मुखौटा ओढ़ कर जो कुछ भी
‘उलूक’

हर किसी को मुखौटा उतार कर
लिखे लिखाये का मुखौटा उतारना
बड़ी सफाई के साथ आता है

तू लिखता रह
मुखौटा लगाये आँखें छुपाये
अंधेरे की बातें

पढ़ने वाले को कौन सा पढ़ना होता है
मुखौटा लगा कर

लिखते समय याद रहता है

पढ़ते समय मुखौटा लगाना
भूला ही जाता है।

चित्र साभार:
https://www.newsgram.com/

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

लिखे पर चेहरा और चेहरे पर लिखा हुआ दिखता

कभी किसी दिन
चेहरे लिखता तो कहीं कुछ दिखता 
बिना चेहरे के लिखा भी क्या लिखा 

गर्दन से कटा
बचा कुचा
बाकी शरीर के नीचे का बेकार सा हिस्सा 

चेहरा लिखने का मतलब
चेहरा और बस चेहरा 
आईने में देखी हुई शक्ल नहीं 

छोटे कान नहीं ना ही बहुत लम्बी नाक
ना पतली गर्दन ना काली आँख 
ना वैसा ना वैसे जैसा कुछ 
कुछ नहीं तो पैमाना लिखता 

कहीं
नपता पैमाना सुनता
मदहोश होता 
कुछ कभी
कहीं किसी के लिये 
क्या पता अगर मयखाना लिखता 

लिखना और नहीं लिखना
बारीक सी रेखा
बीच में लिखने वालों और नहीं लिखने वालों
के बीच की

लिखे के बीच में से
झाँकना शुरु होता हुआ चेहरा लिखता 

चेहरे के दिखते 
पीछे का धुँधलाना शुरु होता
लिखा और लिखाया दिखता

अच्छा होता
पहाड़ी नदी से उठता हुआ सुबह सवेरे का कोहरा लिखता 

स्याही से शब्द लिखते लिखते छोड़ देता लकीर 
उसके ऊपर लिख कर देखता चेहरे बस चेहरे
चेहरे पर चेहरे लिखता 

देखता
लिखा हुआ किसे दिखता और किसे नहीं दिखता ।

शुक्रवार, 30 मई 2014

चेहरे का चेहरा



एक खुश चेहरे को देख कर
एक चेहरे का बुझ जाना

एक बुझे चेहरे का
एक बुझे चेहरे पर खुशी ले आना

एक चेहरे का बदल लेना चेहरा
चेहरे के साथ
बता देता है चेहरा मौन नहीं होता है

चेहरा भी कर लेता है बात

चेहरे दर चेहरे 
चेहरों से गुजरते हुऐ चेहरे
माहिर हो जाते हैं समय के साथ
कोशिश कोई चेहरा नहीं करता है
जरूरत भी नहीं होती है

चेहरा कोई नहीं पढ़ता है
कोई किताब जो क्या होती है

चेहरे काले भी होते हैं चेहरे सफेद भी होते हैं
बहुत बहुत लम्बे समय तक साथ साथ भी रहते हैं

चेहरे कब चेहरे बदल लेते हैं
चेहरे चेहरे से बस यही तो कभी नहीं कहते हैं
चेहरे चेहरों के कभी नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://pngtree.com/

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

क्या करे कोई गालिब खयाल वो नहीं हैं अब

होते होंगे कुछ कहीं
इस तरह के खयाल
तेरे पास जरूर गालिब
दिल बहल जाता होगा
बहुत ही आसानी से
उन दिनो तेरे जमाने में
अब ना वो दिल
कहीं नजर आता है
ना ही कोई खयाल
सोच में उतरता है कभी
ना ही किसी गालिब की
बात कहीं दूर बहुत दूर
तक सुनाई देती है
ठंडे खून के दौरों से
कहाँ महसूस हो पाती है
कोई गरमाहट
किसी तरह की
चेहरे चेहरे में पुती
हुई नजदीकियां
उथले पानी की गहराई
सी दिखती है जगह जगह
मिलने जुलने उठने बैठने
के तरीकों की नहीं है
कोई कमी कहीं पर भी
वो होती ही नहीं है
कहीं पर भी बस
बहुत दूर से आई
हुई ही दिखती है
जब भी होता है कुछ
लिख देना सोच कर कुछ
तेरे लफ्जों में उतर कर
बारिश ही बारिश होती है
बस आँख ही से नमी
कुछ दूर हो आई सी
लगती है अजनबी सी
कैसे सम्भाले कोई
दिल को अपने
खयाल बहलाने के
नहीं होते हों जहाँ
जब भी सोचो तो
बाढ़ आई हुई सी
लगती है गालिब ।

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

चेहरे को खुद ही बदलना आखिर क्यों नहीं आ पाता है

घर के चेहरे
की बात करना 
फालतू
हो जाता है
रोज देखने की
आदत जो
पड़ जाती है
याद जैसा
कुछ कुछ
हो ही जाता है
किस समय
बदला हुआ है
थोड़ा सा भी
साफ नजर में
आ जाता है
मोहल्ले से
होते हुऐ
एक चेहरा
शहर की
ओर चला
जाता है
भीड़ के
चेहरों में
कहीं जा
कर खो
भी अगर
जाता है
फिर भी
कभी दिख
जाये कहीं
जोर डालने
से याद
आ जाता है
चेहरे भी
चेहरे
दर चेहरे
होते हुऐ
कहीं से
कहीं तक
चले जाते हैं

कुछ टी वी
कुछ अखबार
कुछ समाचार
हो जाते हैं
उम्र का
असर
भी हो
तब भी
कुछ कुछ
पहचान ही
लिये जाते हैं
समय के
साथ
कुछ चेहरे
बहुत कुछ
नया भी
करना
सीख ही
ले जाते हैं
पहचान
बनाने
के लिये
हर चौराहे
पर
चेहरा अपना
एक टांक
कर आते हैं
कुछ चेहरों
को
चेहरे बदलने
में महारथ
होती है
एक चेहरे
पर
कई कई
चेहरे
तक लगा
ले जाते हैं
'उलूक'
देखता है
रोज ऐसे
कई चेहरे
अपने
आस पास
सीखना
चाहता है
चेहरा
बदलना
कई बार
रोज
बदलता है
इसी क्रम में
घर के
साबुन
बार बार
रगड़ते
रगड़ते
भी कुछ
नहीं हो
पाता है

सालों साल
ढोना एक
ही चेहरे को
वाकई
कई बार
बहुत बहुत
मुश्किल सा
हो जाता है !

रविवार, 29 सितंबर 2013

मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

समय के साथ बहुत सी
आदतें आदमी की
बदलती चली जाती हैं
सड़क पर चलते चलते
किसी जमाने में
गर्दन पीछे को
बहुत बार अपने आप
मुड़ जाती है
कभी कभी दोपहिये पर
बैठे हुऐ के साथ
दुर्घटनाऐं तक ऐसे
में हो जाती हैं
जब तक अकेले होता है
पीछे मुड़ने में जरा सा
भी नहीं हिचकिचाता है
उम्र बढ़ने के साथ
पीछे मुड़ना कम
जरूर हो जाता है
सामने से आ रहे
जोड़े में से बस
एक को ही
देखा जाता है
आदमी आदमी को
नहीं देखता है
महिला को भी
आदमी नजर
नहीं आता है
अब आँखें होती हैं
तो कुछ ना कुछ
तो देखा ही जाता है
चेहरे चेहरे पर
अलग अलग भाव
नजर आता है
कोई मुस्कुराता है
कोई उदास हो जाता है
पर कौन क्या देख रहा है
किसी को कभी भी
कुछ नहीं बताता है
सब से समझदार
जो होता है वो
दिन हो या शाम
एक काला चश्मा
जरूर लगाता है ।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

चेहरे पर भी लिखा होता है

चेहरे
पर भी तो
कुछ कुछ
लिखा होता है

ना कहे
कुछ भी
अगर कोई
तब भी
थोड़ा थोड़ा सा
तो पता होता है

अपना चेहरा
सुबह सुबह ही
धुला होता है

साफ होता है
कुछ भी कहीं
नहीं कहता है

चेहरा चेहरे
के लिये एक
आईना होता है

अपना चेहरा
देखकर कुछ
कहाँ होता है

बहुत कम
जगहों पर ही 
एक आईना
लगा होता है

अंदर बहुत
कुछ चल
रहा होता है

चेहरा कुछ
और ही तब
उगल रहा
होता है

दूसरे चेहरे
के आते ही
चेहरा रंग
अपना बदल
रहा होता है

चेहरे पर
कुछ लिखा
होता है
ऎसा बस
ऎसे समय
में ही तो
पता चल
रहा होता है ।

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

मत परेशां हुआ कर

मत परेशां हुआ कर
क्या कुछ हुआ है कहीं
कुछ भी तो नहीं
कहीं भी तो नहीं
देख क्या ये परेशां है
देख क्या वो परेशां है
जब नहीं कोई परेशां है
तो तू क्यों परेशां है
सबके चेहरे खिले जाते हैं
तेरे माथे पे क्यों
रेशे नजर आते हैं
तेरी इस आदत से
तो सब परेशां है
वाकई परेशां है
तुझे देख कर ही तो
सबके चेहरे इसी
लिये उतर जाते हैं
कुछ कहीं कहाँ होता है
जो होता है सब की
सहमति से होता है
सही होता होगा
इसी लिये होता है
एक तू परेशां है
क्यों परेशां है
अपनी आदत को बदल
जैसे सब चलते हैं
तू भी कभी तो चल
कविता देखना तेरी
तब जायेगी कुछ बदल
सब फूल देखते हैं
सुंदरता के गीत
गाते हैं सुनाते हैं
तेरी तरह हर बात पर
रोते हैं ना रुलाते हैं
उम्रदराज भी हों अगर
लड़कियों की
तरफ देख कर
कुछ तो मुस्कुराते हैं
मत परेशां हुआ कर
परेशां होने वाले
कभी भी लोगों
में नहीं गिने जाते हैं
जो परेशांनियों
को अन्देखा कर
काम कर ले जाते हैं
कामयाब कहलाते हैं
परेशानी को अन्देखा कर
जो हो रहा है
होने दिया कर
देख कर आता है
कविता मत लिखा कर
ना तू परेशां होगा
ना वो परेशां होगा
होने दिया कर
जो कर रहे हैं कुछ
करने दिया कर
मत परेशां हुआ कर ।

गुरुवार, 22 मार्च 2012

चेहरे


चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे

कुछ
बदलते हैं 
मौसम के साथ

बारिश में 
होते हैं
गीले
धूप में हो 
जाते हैं
पीले

चेहरे चेहरे 
देखते हैं

छिपते हुवे
चेहरे
पिटते हुवे
चेहरे

चेहरों
को कोई 
फर्क पढ़ना 
मुझे नजर 
नहीं आता है

मेरा चेहरा 
वैसे भी 
चेहरों को 
नहीं भाता है

चेहरा शीशा 
हो जाता है 

चेहरा
चेहरे को 
देखता तो है
चेहरे में चेहरा 
दिखाई दे जाता है

चेहरे
को चेहरा 
नजर नहीं आता है
चेहरा अपना 
चेहरा देख कर
ही
मुस्कुराता है 
खुश हो जाता है

सबके 
अपने अपने 
चेहरे हो जाते हैं

चेहरे
किसी के
चेहरे को 
देखना कहाँ 
चाहते हैं

चेहरे बदल 
रहे हैं रंग 
किसी 
को दिखाई 
नहीं देते हैं

चेहरे
चेहरे को 
देखते जा रहे हैं
चेहरे अपनी 
घुटन मिटा रहे हैं

चेहरे
चेहरे को 
नहीं देख पा रहे हैं
चेहरे पकड़े 
नहीं जा रहे हैं
चेहरे चेहरे 
को
भुना रहे हैं

चेहरे दर चेहरे
कुछ
लाल होते हैं
कुछ होते हैं
हरे

कुछ
बदलते हैं 
मौसम के साथ

बारिश में 
होते हैं गीले
धूप में हो 
जाते हैं पीले।