होते होंगे कुछ कहीं
इस तरह के खयाल
तेरे पास जरूर गालिब
दिल बहल जाता होगा
बहुत ही आसानी से
उन दिनो तेरे जमाने में
अब ना वो दिल
कहीं नजर आता है
ना ही कोई खयाल
सोच में उतरता है कभी
ना ही किसी गालिब की
बात कहीं दूर बहुत दूर
तक सुनाई देती है
ठंडे खून के दौरों से
कहाँ महसूस हो पाती है
कोई गरमाहट
किसी तरह की
चेहरे चेहरे में पुती
हुई नजदीकियां
उथले पानी की गहराई
सी दिखती है जगह जगह
मिलने जुलने उठने बैठने
के तरीकों की नहीं है
कोई कमी कहीं पर भी
वो होती ही नहीं है
कहीं पर भी बस
बहुत दूर से आई
हुई ही दिखती है
जब भी होता है कुछ
लिख देना सोच कर कुछ
तेरे लफ्जों में उतर कर
बारिश ही बारिश होती है
बस आँख ही से नमी
कुछ दूर हो आई सी
लगती है अजनबी सी
कैसे सम्भाले कोई
दिल को अपने
खयाल बहलाने के
नहीं होते हों जहाँ
जब भी सोचो तो
बाढ़ आई हुई सी
लगती है गालिब ।
इस तरह के खयाल
तेरे पास जरूर गालिब
दिल बहल जाता होगा
बहुत ही आसानी से
उन दिनो तेरे जमाने में
अब ना वो दिल
कहीं नजर आता है
ना ही कोई खयाल
सोच में उतरता है कभी
ना ही किसी गालिब की
बात कहीं दूर बहुत दूर
तक सुनाई देती है
ठंडे खून के दौरों से
कहाँ महसूस हो पाती है
कोई गरमाहट
किसी तरह की
चेहरे चेहरे में पुती
हुई नजदीकियां
उथले पानी की गहराई
सी दिखती है जगह जगह
मिलने जुलने उठने बैठने
के तरीकों की नहीं है
कोई कमी कहीं पर भी
वो होती ही नहीं है
कहीं पर भी बस
बहुत दूर से आई
हुई ही दिखती है
जब भी होता है कुछ
लिख देना सोच कर कुछ
तेरे लफ्जों में उतर कर
बारिश ही बारिश होती है
बस आँख ही से नमी
कुछ दूर हो आई सी
लगती है अजनबी सी
कैसे सम्भाले कोई
दिल को अपने
खयाल बहलाने के
नहीं होते हों जहाँ
जब भी सोचो तो
बाढ़ आई हुई सी
लगती है गालिब ।
्खयाल अच्छा है..सोचने के लिए.. बढिया.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (12-12-13) को होशपूर्वक होने का प्रयास (चर्चा मंच : अंक-1459) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गूढ़ार्थ लिए पंक्तियाँ-
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी-
ठुमरी पर ठुमके लगा, ख्याली पके पुलाव |
राम राज्य आने लगा, बस इक और चुनाव |
बस इक और चुनाव, मुसल्लसल बस इमान है |
बे-इमान यह जगत, आप की बढ़ी शान है |
पानी बिजली मुफ्त, मुफ्त में कुरता चुनरी |
मुफ्त मिले आवास, मुफ्त में सुनिये ठुमरी |||
बहुत सुन्दर एवं गूढ़ भाव.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : रोग निवारण और संगीत
कल 13/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)