उलूक टाइम्स: चूना
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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

क्यों खो रहा है चैन अपना पाँच साल के बाद उसके कुँभ के आने में

दिखना
शुरु हो
चुकी हैं
सजने
सवरने
कलगियाँ
मुर्गों की
रंग बिरंगी

मुर्गियाँ
भी
लगी है
बालों में
मेहंदी
लगाने में

आने ही
वाला जो
है त्योहार
अगले महीने
एक बार
फिर से
पाँच साला

चहल पहल
होना शुरु
हो चुकी है
सभी
मयखानो में

आ चुके
हैं वापिस
सुबह
के भूले
लौट कर
शाम को
घर
कहीं दुबारा
कहीं तिबारा
शर्मा शर्मी
बेशर्मी को
त्याग कर

लग गये हैं
जश्न जीत
हार के
मनाने में

कुछ लाये
जा रहे हैं
उधर
से इधर
कुछ भगाये
जा रहे हैं
इधर से
उधर

कुछ
समझदार
हैं बहुत
समझ
चुके हैं
भलाई है
घर छोड़
कर पड़ोसी
के घर को
चले जाने में

तिकड़में
उठा पटक
की हो
रही हैं
अंदर
और बाहर
की बराबर

दिख नहीं
रही हैं
कहीं भी
मगर

मुर्गा
झपट के
उस्ताद
हैं मुर्गे
ही नहीं
मुर्गियाँ भी
अब तो

साथ साथ
आते हैं
दिखते हैंं
डाले हाथ
में हाथ
एक से
बड़कर
एक

माहिर हो
चुके हैं
चूना
लगाने में

करना है
अधिकार
को अपना
प्रयोग
हर हाल में

लगे हैं कुछ
अखबार
नबीस भी
पब्लिक
को बात
समझाने में

डाल
पर बैठा
देखता
रहेगा
“उलूक”
तमाशा
इस बार
का भी
हमेशा
की तरह

उसे
पता है
चूहा
रख कर
खोदा जायेगा
पहाड़ इस
बार भी

निकलेगा
भी वही
क्या
जाता है
एक शेर
निकलने
की बात
तब तक
हवा में
फैलाने में।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पक्का हो गया चोर भी

लिखता गया
लिखते लिखते
शायद
लिखना आ जाये सोच कर

पढ़ता गया
पढ़ते पढ़ते
शायद
पढ़ना आ जाये मान कर

लिखने पढ़ने का
कुछ हुवा या नहीं खुदा जाने
मक्कारी में जरूर उस्ताद हो गया हूँ

निरक्षरों को
अब साक्षर बना रहा हूँ
खाली बिलों में
दस्तखत करना सिखा रहा हूँ

बुद्धिजीवी का प्रमाण पत्र
जब से मिला है
लाल बत्ती गाड़ी पर लगा रहा हूँ

पढ़ाई लिखाई के
और भी हैं फायदे
उठा रहा हूँ

अनपढ़
दो चार
विधान सभा में पहुंचाने की
जुगत
लगा रहा हूँ

आप भी
कुछ नसीहत लेते हुवे जाईये
खुद पढ़िये और औरों को भी पढ़ाईये

कम से कम
इतना काबिल तो बनाईये
पूरा ना भी समेंट सकें
बीस तीस हिस्सा ही गोल करवाईये

बहुत मौके होते हैं
अनपढ़ की समझ में नहीं आ पाते हैंं
पढ़े लिखे होते हैं आसानी से चूना लगाते हैं
साथ में
राज्य रत्न का मेडल
बोनस की तरह मुफ्त में पाते हैं।