बहुत
कुछ बता गया
कुछ बता गया
बहुत
कुछ सिखा गया
कुछ सिखा गया
याद
नहीं है सब कुछ
नहीं है सब कुछ
पर
बहुत कुछ
लिखा गया एक साल
बहुत कुछ
लिखा गया एक साल
और
आते आते
आते आते
सामने से साफ साफ
दिख रहा है अब
सीटी बजाता जाता हुआ एक साल
सीटी बजाता जाता हुआ एक साल
पिछले
सालों की तरह
सालों की तरह
हौले हौले से
जैसे मुस्कुरा कर
अपने ही
जैसे मुस्कुरा कर
अपने ही
होंठों के अन्दर अन्दर कहीं
अपने ही
हाथ का अँगूठा
अपने ही
हाथ का अँगूठा
दिखा गया एक साल
अच्छे दिन
आने के सपने
सपनों के सपनों में भी
बहुत
अन्दर अन्दर तक कहीं
अन्दर अन्दर तक कहीं
घुसा गया एक साल
असलियत
भी बहुत ज्यादा खराब
नहीं दिख रही है
अच्छे अच्छे हाथों में
एक नया साफ सुथरा
सरकारी कोटे से थोक में खरीदे गये
झाड़ुओं में से एक झाडू
थमा गया एक साल
लिखने को
इफरात से था
बहुत कुछ खाली दिमाग में था
शब्द चुक गये लिखते लिखते
पढ़ने वालों की
पढ़ने की आदत छुड़ा गया एक साल
ब्लाग बने कई नये
पुराने ब्लागों के पुराने पन्नों को
थूक लगा लगा कर
चिपका गया एक साल
अपनी अपनी अपने घर में
सबके घर की सब ने कह दी
सुनने वालों को ही बहरा
बना गया एक साल
खुद का खाना खुद का पीना
खुद के चुटकुल्लों पर
खुद ही हंस कर
बहुत कुछ
समझने समझाने की किताबें
खुद ही लिखकर
अनपढ़ों को बस्ते भर भर कर
थमा गया एक साल
खुश रहें आबाद रहें
हिंदू रहें मुसलमान रहें
रहा सहा आने वाले साल में कहें
गिले शिकवे बचे कुचे
आने वाले साल में
और भी अच्छी तरह से लपेटने के नये तरीके
सिखा गया एक साल ।
चित्र साभार: shirahvollmermd.wordpress.com