कलम अपनी
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है
एक लम्बे समय से
आँखें निकाल कर बैठा है
कान खुले हैं मगर
कटोरा भर तेल डाल कर बैठा है
बड़बड़ाना जारी है
मुँह में रुमाल डाल कर बैठा है
सारे पूछ कर
कुछ करने वालों को
सलाम मार कर बैठा है
पूछने वालों के
कुछ अलग ही होते काम हैं
मान कर बैठा है ।
सब पूछते हैं
सबके पास कुछ है पूछने के लिये
खुद भी पूछना है
कुछ ठान कर बैठा है
किसी के लिये
पूछने में भी लगा है
सुबह से लेकर शाम पूछने की दुकान पर
कुँडली मार कर बैठा है
मोटी खाल
समझने में लगा है आजकल
मोटी खाल का मोटी खाल के साथ
संगत
कमाल कर बैठा है
शरम बेच कर
मोटी खाल बेशरम
मोटी खालों के संगम के प्रबंधन का
बेमिसाल इंतजाम कर बैठा है
बैठने बिठाने के चक्कर में बैठा
कोई कहीं जा बैठा है
कोई कहीं जा बैठा है
‘उलूक’
अभी बहुत कुछ
सिखायेगी तुझे जिंदगी
इसी तरह बैठा रह
शाख पर किसी टूटी
श्मशान के सूखे पेड़ की
शरम करना
छोड़ दे अभी भी
देख और मौज ले नंगई के
और कह
अट्टहास के साथ
नंगा एक
नंगों के साथ मिलकर
कितनी शान से
हमाम लूट कर बेमिसाल बैठा है ।
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