माहौल पर नहीं लिखेंगे
कुछ भी
कुछ इधर की लिखेंगे कुछ उधर की लिखेंगे
कुछ इधर की लिखेंगे कुछ उधर की लिखेंगे
वो कुछ अपनी लिखेंगे हम कुछ अपनी लिखेंगे
लिखेंगे और रोज कुछ लिखेंगे
लिखेंगे और रोज कुछ लिखेंगे
धूप बहुत तेज है हो लू से मरे आदमी मरे
हम पेड़ पर लिखेंगे उसकी छाँव पर लिखेंगे
हम पेड़ पर लिखेंगे उसकी छाँव पर लिखेंगे
आंधी से उड़ गयी हो छतें गरीबों की रहने दें
हम ठंडी हवा लिखेंगे और गाँव लिखेंगे
हम ठंडी हवा लिखेंगे और गाँव लिखेंगे
कोई झूठ बोले बोलता रहे हम सच पर लिखेंगे
सच की वकालत पर लिखेंगे हम पड़ताल लिखेंगे
सच की वकालत पर लिखेंगे हम पड़ताल लिखेंगे
मर रहे हैं लोग बीमारियों से मरें और मरते रहें
हम लिखे में अपने सारे हस्पताल लिखेंगे
हम लिखे में अपने सारे हस्पताल लिखेंगे
तीन बंदरों की नयी बात लिखेंगे
गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे
गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे
तीन बंदरों को खुद ही सुधार लेने को
उनकी औकात लिखेंगे उनकी जात लिखेंगे
उनकी औकात लिखेंगे उनकी जात लिखेंगे
लिखेंगे दिखेंगे पढेंगे
दो चार पांच को ले जाकर रोज सुबह
बेरोकटोक सूबेदार लिखेंगे
दो चार पांच को ले जाकर रोज सुबह
बेरोकटोक सूबेदार लिखेंगे
‘उलूक’ लगा रहेगा आदतन बकवास करने यहाँ
गोदी पर बैठे उधर सारे यार लिखेंगे
गोदी पर बैठे उधर सारे यार लिखेंगे
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