बरसों
लकीर पीटना
सीखने
के लिये लकीरें
समझने
के लिये लकीरें
कहाँ
से शुरु
और
कहाँ
जा कर खतम
समझ लेना
नहीं समझ पाना
बस लकीरें
समझते हुऐ
शुरु होने और
खतम होने का है
बस वहम और वहम
जो घर में है
जो मोहल्ले में है
जो शहर में है
वही सब
हर जगह में है
और
वही हैं
सब के
रहम-ओ-करम
सबके
अपने अपने
झूठ हैं जो सच हैं
सबके
अपने सच हैं
जरूरत नहीं है
बताने की
सबने
खुद को दी है
खुद की ही कसम
लिखना लिखाना
चाँद सूरज तारे दिखा ना
जरूरत
नहीं होती है
देखने की
दर्द-ए-लकीर पीट चल
मत किया कर रहम
पिटती लकीर है
मजे में फकीर है
सो रहा जमीर है
अमीर अब और अमीर है
कलम
लिखती नहीं है
निकलता है
उसका दम
कविता कहानी
शब्दों की जवानी
कितने
दिलाती है ईनाम
कौन है
भगवान
इधर का
और कौन है
उधर का
इन्तजार कर
भक्ति में
कहीं किसी की
कुछ तो रम
बड़े बड़े
तीरंदाज हैं
दिखाते हैं
समझाते हैं
नबाब हैं
हरकतें
दिख जाती हैं
टिप्पणी में
किस जगह से
किस सोच
के आप हैं
शोर
करते चलिये
नंगों के लिये
हमाम हर जगह हैं
नहीं होते हैं कम
अंधा ‘उलूक’ है
देखता बेवकूफ है
ना जाने क्या क्या
शरम बेशरम
लिखता
जरूर है
कविता
कहानी
लिखने का
नहीं उसे
सहूर है
पता नहीं
कौन पाठक है
पाँच हजार
पाँवों के निशान
रोज दिखते
जरूर हैं
उनको नमन ।
चित्र साभार: www.clipartof.com
लकीर पीटना
सीखने
के लिये लकीरें
समझने
के लिये लकीरें
कहाँ
से शुरु
और
कहाँ
जा कर खतम
समझ लेना
नहीं समझ पाना
बस लकीरें
समझते हुऐ
शुरु होने और
खतम होने का है
बस वहम और वहम
जो घर में है
जो मोहल्ले में है
जो शहर में है
वही सब
हर जगह में है
और
वही हैं
सब के
रहम-ओ-करम
सबके
अपने अपने
झूठ हैं जो सच हैं
सबके
अपने सच हैं
जरूरत नहीं है
बताने की
सबने
खुद को दी है
खुद की ही कसम
लिखना लिखाना
चाँद सूरज तारे दिखा ना
जरूरत
नहीं होती है
देखने की
दर्द-ए-लकीर पीट चल
मत किया कर रहम
पिटती लकीर है
मजे में फकीर है
सो रहा जमीर है
अमीर अब और अमीर है
कलम
लिखती नहीं है
निकलता है
उसका दम
कविता कहानी
शब्दों की जवानी
कितने
दिलाती है ईनाम
कौन है
भगवान
इधर का
और कौन है
उधर का
इन्तजार कर
भक्ति में
कहीं किसी की
कुछ तो रम
बड़े बड़े
तीरंदाज हैं
दिखाते हैं
समझाते हैं
नबाब हैं
हरकतें
दिख जाती हैं
टिप्पणी में
किस जगह से
किस सोच
के आप हैं
शोर
करते चलिये
नंगों के लिये
हमाम हर जगह हैं
नहीं होते हैं कम
अंधा ‘उलूक’ है
देखता बेवकूफ है
ना जाने क्या क्या
शरम बेशरम
लिखता
जरूर है
कविता
कहानी
लिखने का
नहीं उसे
सहूर है
पता नहीं
कौन पाठक है
पाँच हजार
पाँवों के निशान
रोज दिखते
जरूर हैं
उनको नमन ।
चित्र साभार: www.clipartof.com