तारे
कुछ
कुछ
रोशनी के
सामान
लिखते हैं
चाँद
लिखते हैं
आसमान
लिखते हैं
मिट्टी
पत्थर
पत्थर
कुछ
बेजुबान
जमीन के
सोच
बैठते हैं
वही
एक हैं
एक हैं
जो
जुबान
लिखते हैं
सिलवटें
लिखते हैं
सरेआम
लिखते हैं
कुछ
लकीरें
सोच कर
तीर
कमान
लिखते हैं
कितना
लिखते हैं
कुछ
कुछ
कई
पन्नों में
बस
बस
हौले से
मुस्कुराता
हुआ
हुआ
उनवान
लिखते हैं
लिखते हैं
कुछ
घर का
लिखते हैं
कुछ
शहर का
लिखते हैं
थोड़े
से
कुछ
कुछ
बस
मकान
लिखते हैं
अन्दर
तक
घुस के
चीर
देता है
किसी
का लिखना
थोड़े से
कुछ
बेशरम
बेशरम
नुवान
लिखते हैं
दाद देना
बस में
नहीं है
दिखाते
जरूर
हैं
हैं
हिंदुस्तान
लिखते हैं
क्यों
नहीं
लिखता
लिखता
कुछ नया
लिखने जैसा
तेरे जैसे
कई हैं
‘उलूक’
बिना
धागे के
बनियान
लिखते हैं ।
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