उलूक टाइम्स: बेजुबान
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मंगलवार, 1 सितंबर 2020

लिख ही लें थोड़ा सुकून इधर से लेकर उधर तक फैल चुके हों जहाँ जर्रा जर्रा बेजुबान

 

डा० कफ़ील खान

भगवान जी और अल्ला मियाँ
का तो पता नहीं 
पर सुबह अच्छी खबर मिली और अच्छा लगा

पता नहीं किसे सुनाई दी
किसे कुछ भी
अब भी पता नहीं चला 

आदमी के आदमी ने आदमी पर
लगा कर इल्जाम बता कर गुनाहगार 

बोल कर कुछ
दिखा कर कर गया जैसे कोई
शब्दों से कत्लेआम 

कर दिया गया अन्दर
बिना पूछे बिना देखे हथियार और कत्ल का सामान 

लगा दी गयी धारायें
एक आदमी पर सारी सभी भीड़ की 
मानकर उसे एक नहीं कई कई आदमी एक साथ
जैसे हो एक जगह उगाये खुद की ही हजारों जुबान 

फ़िर आदमी ने ही कर दिया इन्कार
देने से सजा झूठ की
कुछ बचा हुआ होगा वहाँ शायद इंसान 

‘उलूक’ काट लिये दिन सैकड़ों
काल कोठरी में बेगुनाह ने

सजा कौन देगा यंत्रणा देने वाले गुनहगार को
कौन सा अल्ला या कौन सा भगवान ?


चित्र साभार: https://www.gograph.com/
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सोमवार, 12 अगस्त 2019

तेरे जैसे कई हैं ‘उलूक’ बिना धागे के बनियान लिखते हैं


तारे
कुछ 
रोशनी के 
सामान 
लिखते हैं 

चाँद 
लिखते हैं 
आसमान 
लिखते हैं 

मिट्टी
पत्थर 
कुछ 
बेजुबान 
जमीन के 

सोच 
बैठते हैं 
वही
एक हैं 

जो 
जुबान 
लिखते हैं 

सिलवटें 
लिखते हैं 

सरेआम 
लिखते हैं 

कुछ 
लकीरें 
सोच कर 

तीर
कमान 
लिखते हैं 

कितना 
लिखते हैं
कुछ 

कई 
पन्नों में
बस 

हौले से 
मुस्कुराता
हुआ 
उनवान
लिखते हैं 

कुछ 
घर का 
लिखते हैं 

कुछ 
शहर का 
लिखते हैं 

थोड़े 
से
कुछ 

बस
मकान 
लिखते हैं 

अन्दर 
तक 

घुस के 
चीर 
देता है 

किसी 
का लिखना 

थोड़े से 
कुछ
बेशरम 

नुवान
लिखते हैं 

दाद देना 
बस में 
नहीं है 

दिखाते 
जरूर
हैं 

हिंदुस्तान 
लिखते हैं 

क्यों 
नहीं
लिखता 
कुछ नया 

लिखने जैसा 

तेरे जैसे 
कई हैं 
 ‘उलूक’ 

बिना 
धागे के 

बनियान 
लिखते हैं ।

 चित्र साभार: https://www.shutterstock.com