उलूक टाइम्स: मकान
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शनिवार, 31 अगस्त 2024

सब कुछ इसी हमाम से तो था


फिर से फिसल गया एक महिना ही तो था
खुशफहमी क्या बुरी है अपने ही हाथ में तो था
हाथ अपना ही तो था
कितना कुछ पकड़ कर रखा था
वहम ही सही सारा अपने पास में तो था

अभी कौन सा कहां कुछ फिसलना था
बारिश उस पहाड़ में थी
और दूर समुंदर ही तो उफान में था
आंखें कमजोर नहीं हुई थी
देखने का जुनून ही तो खत्म हुआ था
सपना तो अपनी ही उड़ान में था

शर्म तब भी कौन सा आती थी
जब सुनाई देता था
उजड़ गया अपना नहीं उसका ही मकान तो था
शहर उजड़ रहे हैं कोई और सुन रहा था
अच्छा हुआ सुनाई नहीं देता बंद है अपना ही कान तो था

बहुत कह दिया अब तक
जुबान से निकला था तीर जो भी निकला था
कौन सा कुछ किसी की दुकान से था
जुबान भी अब नहीं फिसलती
ना ही कहने को कुछ मचलती
मनचला था
कौन यहां कुरुक्षेत्र के मैदान से था

अभी और फिसलना था
बहुत कुछ बिना चबाए निगलना था
सभी कुछ किसी गांधी के एक बंदर की
नजदीकी पहचान से तो था
‘उलूक’ फिर फिर पलट कर के आएंगे
गलतफहमी के दौरे तुझे भी
पता है वो भी जानता है
सब कुछ इसी हमाम से तो था

चित्र साभार: https://depositphotos.com/


सोमवार, 12 अगस्त 2019

तेरे जैसे कई हैं ‘उलूक’ बिना धागे के बनियान लिखते हैं


तारे
कुछ 
रोशनी के 
सामान 
लिखते हैं 

चाँद 
लिखते हैं 
आसमान 
लिखते हैं 

मिट्टी
पत्थर 
कुछ 
बेजुबान 
जमीन के 

सोच 
बैठते हैं 
वही
एक हैं 

जो 
जुबान 
लिखते हैं 

सिलवटें 
लिखते हैं 

सरेआम 
लिखते हैं 

कुछ 
लकीरें 
सोच कर 

तीर
कमान 
लिखते हैं 

कितना 
लिखते हैं
कुछ 

कई 
पन्नों में
बस 

हौले से 
मुस्कुराता
हुआ 
उनवान
लिखते हैं 

कुछ 
घर का 
लिखते हैं 

कुछ 
शहर का 
लिखते हैं 

थोड़े 
से
कुछ 

बस
मकान 
लिखते हैं 

अन्दर 
तक 

घुस के 
चीर 
देता है 

किसी 
का लिखना 

थोड़े से 
कुछ
बेशरम 

नुवान
लिखते हैं 

दाद देना 
बस में 
नहीं है 

दिखाते 
जरूर
हैं 

हिंदुस्तान 
लिखते हैं 

क्यों 
नहीं
लिखता 
कुछ नया 

लिखने जैसा 

तेरे जैसे 
कई हैं 
 ‘उलूक’ 

बिना 
धागे के 

बनियान 
लिखते हैं ।

 चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

सेब को अनार है कह देने वालों की भर्ती गिरोह का सरदार करवा रहा है

गिरोह

पर्दे के
पीछे से

जल्दी ही

कुछ उल्टा
करने
जा रहा है

सामने से
हो रही

अच्छी 

सीधी
बातों से

समझ
आ रहा है

अखबार

सरदार की
भेजी खबर को 


सजा कर
दिखा रहा है

जरूरत मंदों
के लिये

संवेदना
देख कर

सब गीला
हो जा रहा है

शहर में
कुछ नया
अजूबा होने
के आसार

मौसम विभाग
सुना रहा है

आंकड़े
बगल के देश
के मेलों में बिके

गधों के
ला ला कर
दिखा रहा है

जमीने
किस की
खरीदी हुई हैं

किस के
हैं मकान
मैदान के
शहर में

जायजा
लिया
जा रहा है

पहाड़
से उतार
मैदान में

राजा के
दरबार को
ले जाने का

आदेश
जल्दी ही
आने जा रहा है

पहाड़ों
को वीरान
करने की
एक नयी
कोशिश है

किसी
को बहुत
मजा
आ रहा है

गिरोह
पढ़ा रहा है 


सेब को
अनार
कहलवाना
किसी को 

कोई
‘उलूक’ को

अनार है
अनार है
कह कर

एक सेब
रोज
दिखा रहा है । 


चित्र साभार: www.kisspng.com

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

दीपावली हो गई उस पर कुछ शब्द लिखने को कहा गया ‘उलूक’ से आदतन ऐसा वैसा ही कुछ कहा गया

कान फोड़ शोर
ऐसा क्या हो गया
एक दिन अगर
रात भर रोता
भी रहा मोर
 तेज रोशनी में
शर्माते रहे गरीब
कुछ मिट्टी के दिये
 किसने कहा था
पहुँच जायें
बिन बुलाये मेहमान
की तरह एक बड़े शहर
बिना कुछ पिये
नींद नहीं आई रात भर
बहुत देर में हुई जैसे भोर
मगर सपने दिखे
बहुत दिखे और
दिखे घनघोर
 घमासान युद्ध
का आभास हुआ
हर तरफ था
दम घोंटता हुआ धुआँ
बंद होती लगी
एक बूढ़े बीमार
को अपनी साँस
पता भी नहीं चला
किसी को रात भर
रहा है कोई बगल
के मकान में खाँस
गायब हो चुकी
नींद रात भर
के लिये खुद ही
खोज रही हो जैसे
कहीं शांत दो चार आँख
सोने के लिये
पल भर के लिये
डरे हुऐ पक्षी
और जानवर
देर से उठा सूरज
भी जैसे पूछ रहा हो
ठीक ठाक तो
हो ना आप
मान्यवर
लक्ष्मी बम पर
चिपके हुऐ
लक्ष्मी के चित्र
फूटते रहे रातभर
उड़ती रही लक्ष्मी
भी टुकड़े टुकड़े होकर
दीपावली मंगलमयी
रही हमेशा रहती है
अखबार में रहती है
हमेशा कुछ
अच्छी खबर और
दूरदर्शन पर
अच्छी बात की
अच्छी रिपोर्टिंग
भी होती है
‘उलूक’ की आदत है
अच्छी बात की
जेब में भी
कुछ ना कुछ बुरा
संभालना
उससे पूछ्ते
ही क्यों हैं
पता होता है जब
उसको आता ही है
बस कुछ में से
कुछ नहीं हमेशा
निकालना ।

चित्र सभार गूगल




मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

अपनी अक्ल के हिसाब से ही तो कोई हिसाब किताब लगा पायेगा

सोचता हुआ
आ रहा था
शायद आज
कुछ अच्छा सा
लिखा जायेगा
क्या पता कहीं
कोई फूल सुंदर
एक दिख जायेगा
कोई तो आकर
भूली हुई एक
कोयल की याद
दिला जायेगा
मीठी कुहू कुहू से
कान में कुछ
नया सा रस
घुल के आयेगा
किसे पता था
किराये का चूहा
उसका फिर से
मकान की नींव
खोदता हुआ
सामने सामने
से दिख जायेगा
जंगली होता तो भी
समझ में आता
समझाने पर कुछ
तो समझ जायेगा
पालतू सिखाये हुऐ से
कौन क्या कुछ
कहाँ कह पायेगा
पढ़ाया लिखाया हुआ
इतनी आसानी से
कहाँ धुल पायेगा
बताया गया हो
जिसको बहुत
मजबूती से
खोदता खोदता
दुनियाँ के दूसरे
छोर पर वो
पहुँच जायेगा
उतना ही तो
सोच सकता है कोई
जितना उसकी
सोच के दायरे
में आ पायेगा
भीड़ की भेड़ को
गरडिये का कुत्ता
ही तो रास्ते पर
ले के आयेगा
‘उलूक’ नहीं तेरी
किस्मत में कहना
कुछ बहुत अच्छा
यहाँ तेरे घर को
खोदने वाला ही
तुझे तेरे घर के
गिरने के फायदे
गिनवायेगा
और अपना
खोदता हुआ
पता नहीं कहाँ से
कहाँ पहुँच जायेगा ।