उलूक टाइम्स: पन्नों
पन्नों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पन्नों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 29 जनवरी 2014

पुरानी किताब में भी बहुत कुछ दबा होता है खोलने वाले को पता नहीं होता है

एक
बहुत पुरानी 
सी किताब पर 
पड़ी धूल को झाड़ते ही

कुछ 
ऐसा लगा
जैसे 

कहीं किसी पेज 
पर
कोई चीज 
है अटकी हुई 

जिससे लग रही है 
किताब कुछ पटकी पटकी हुई 

चिपके हुऐ पन्नों के 
खुलने में बहुत ध्यान रखना पड़ा 

सोचना ये पड़ा 

फट ना जाये कहीं 
थोड़ा सा भी रखा हुआ कुछ विशेष 
और
हाथ से निकल 
ना जाये कोई खजाना बरसों पुराना 
या
उसके 
कोई भी अवशेष 

या
शायद
कोई 
सूखा हुआ
गुलाब 
ही दिख जाये 
किसी जमाने की किसी की
प्रेम 
कहानी ही समझ में आ जाये 

ऐसा भी मुमकिन है 
कुछ लोग रुपिये पैसे भी कभी किताबों में 
सँभाला करते थे 

हो सकता है 
ऐतिहासिक बाबा आदम के जमाने का कोई पैसा 
ऐसा निकल जाये 
अपनी खबर ना सही 
फटे नोट की किस्मत ही कुछ सुधर जाये 

किसी शोध पत्र में 
कोई उसपर कुछ लिख लिखा ले जाये 
धन्यवाद मिले नोट पाने वाले को 
नाम पत्र के अंतिम पेज में ही सही 
छप छपा जाये 

शेखचिल्ली के सपने 
इसी तरह के मौकों में समझ में आते होंगे 
किताबों के अंदर बहुत से लोग 
बहुत कुछ रख रखा कर भूल जाते होंगे 

परेशानी की बात
तो 
उसके लिये हो जाती होगी
जिसके 
हाथ
इस तरह की 
पुरानी किताब कहीं से पड़ जाती होगी 

बड़ी मेहनत और 
जतन से
चाकू 
स्केल की मदद से 
बहुत देर में जब सफलता हाथ में आ ही जाती है 

जो होता है अंदर से 
उसे देख कर खुद झेंप आ जाती है 
अपने ही लेख में लिखी
एक इबारत 
पर जब
नजर 
पड़ जाती है 

लिखा होता है 

"इसे इसी तरह से 
चिपका कर उसी तरह रख दिया जाये 
'उलूक' अपनी बेवकूफी किसी को बताई नहीं जाती है" ।