आदमी
खुद में ही
जब
आदमी
कुछ कम
हो गया है
किसलिये
कहना है
रंग
इस बार
कहीं गुम
हो गया है
खुदाओं
में से
किसी
एक का
घरती
पर जनम
हो गया है
तो
कौन सा
किस पर
बड़ा
भारी
जुलम
हो गया है
मन्दिर
जरूरी नहीं
अब
वो भी
तुम
और हम
हो गया है
समझो
भगवान
तक को
इन्सान
होने का
भ्रम
हो गया है
झूठ
खरपतवार
खेतों में
सच के
सनम
हो गया है
काटना
मुश्किल
नहीं है
रक्तबीज
होने का
उसके
वहम
हो गया है
होली
के जाने का
क्यों रे
‘उलूक’
तुझे
क्या गम
हो गया है
पीना
पिलाना
बहकना
बहकाना
दौड़ेगा
अब तो
चुनावी
मौसम
हो गया है ।
चित्र साभार: https://miifotos.com
खुद में ही
जब
आदमी
कुछ कम
हो गया है
किसलिये
कहना है
रंग
इस बार
कहीं गुम
हो गया है
खुदाओं
में से
किसी
एक का
घरती
पर जनम
हो गया है
तो
कौन सा
किस पर
बड़ा
भारी
जुलम
हो गया है
मन्दिर
जरूरी नहीं
अब
वो भी
तुम
और हम
हो गया है
समझो
भगवान
तक को
इन्सान
होने का
भ्रम
हो गया है
झूठ
खरपतवार
खेतों में
सच के
सनम
हो गया है
काटना
मुश्किल
नहीं है
रक्तबीज
होने का
उसके
वहम
हो गया है
होली
के जाने का
क्यों रे
‘उलूक’
तुझे
क्या गम
हो गया है
पीना
पिलाना
बहकना
बहकाना
दौड़ेगा
अब तो
चुनावी
मौसम
हो गया है ।
चित्र साभार: https://miifotos.com