उलूक टाइम्स: फितरत
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शनिवार, 31 जुलाई 2021

लूट के रास्ते खुल गये बेहया करें पैसे वसूल ‘उलूक’ अपनी फितरत से लिखता चल महीने भर सारा ऊल जलूल



ना हिंदी आती है
ना उर्दू ही आती है
बात है
कि फिर भी
पेट से चढ़ कर
गले तक पहुँच जाती है

बाहर फेंकने का तजुर्बा
सब को नहीं होता है
निगल लेते हैं ज्यादातर
सभी मान कर
कि
पीने से
कौन सा जान चली जाती है

बेहयाई
कितनी करे कोई
शरीफों के बीच में रहकर
चिकनी मिट्टी ही जब
पानी पीना शुरु हो जाती है

घड़े भी हैं
सुराहियाँ भी दिखती हैं
सजी हुई दुकान दर दुकान
पीने वाले की नजर
काँच के गिलास पर ही जाती है

ये कोई नया तजुर्बा नहीं है
इतिहास में हैं
कई पन्नों की गवाहियाँ
लिखी दिखाई दे जाती हैं

बे‌ईमानों को जरूरी होता है
एक ईमानदार सिपाही रखना
गोलियों के खर्च के हिसाब की बही
सबके पास पाई जाती है

मौतें किसको गिननी होती है
अखबार की खबर
कुछ ले दे कर
सब का सब हिसाब लगा कर
सुबह ले ही आती है

‘उलूक’ अपने महीने का
खयाल रखता है
गालियों से शुरु करी कमाई
गालियों पे ही खर्च कर दी जाती है

समझ में आना
और समझ में नहीं आने में
किस लिये लगना हुआ
रोटियाँ सिकती रहती हैं
आग़ इधर भी और उधर भी
लगाई ही जाती है ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com
/

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

फुरसत की फितरत में ही नहीं होती है फुरसत फितरत और फुरसत से साहित्य भी नहीं बनता है

दिल होता है

किसी का भी हो
होना भी चाहिये

फुरसत से
कभी फुरसत
लिख लेने का

मगर
फुरसत है
कि मिलती
ही नहीं है कभी
फुरसत से

फुरसत की
फितरत में
नहीं होती है
फुरसत

फितरत
मतलब
सयानापन

फितरत
मतलब
मक्कारी

फितरत
मतलब
चतुराई भी
होता है

फुरसत
सयानी
कहाँ
हो पाती है

फुरसत
चतुर होती तो

फुरसत
ही फुरसत होती
कहा जा सकता है

मक्कारों
के कारण
फुरसत
नहीं होती है
माना
जा सकता है

कुछ नहीं

कुछ लोग

कुछ
नहीं होते हैं

कुछ नहीं
कर पाते हैं

अखबारों में
नहीं आ पाते हैं

बेकार
टाईप के
ऐसे लोग

लोगों को
फुरसत से

कुछ लोगों
के द्वारा
समझाये
जाते हैं

पूरा देश
चल रहा है
फुरसतियों से

वहाँ भी हैं
और
यहाँ भी हैं

सब
फुरसत से हैं

बस ‘उलूक’
बैठा रहता है
इन्तजार में

शायद कभी
फुरसत
हो जाये

और
फुरसत से
कुछ
फुरसत पर
कहा जाये

पर

पर फुरसत
ना अमिताभ
बच्चन है
ना करोड़पति
बनाने की मशीन

फुरसत
सपना है

एक
भिखारी का
बिना कटोरा

भरे
होने का

सपने
फुरसत के
बहते हुऐ ।

चित्र साभार: http://weclipart.com

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

फीड बैक का मतलब प्रतिक्रिया दिया जाता है जिसमें लेकिन मजा नहीं आता है फीड बैक से जैसे सब कुछ पता चल जाता है

ये
फीड बैक भी
एक
गजब का
काँसेप्ट होता है

अपने
बारे में
वैसे भी
कौन
किसी से
कुछ पूछता है

फीड बैक
का मतलब
प्रतिक्रिया
होता है

गूगल बाबा
आसानी से
समझा जाता है

पर
हिन्दी
रूपाँतरण में
मजा नहीं आता है

कहाँ
पता होता है
कौन क्या होता है

देखने से
कुछ
पता नहीं
चल पाता है

साथ
रहने पर
भी धोखा
खाया
जाता है

आदमी
की फितरत
होती है

आईना
हाथ में लेकर
वो अपनी
छोड़ कर

सामने
वाले की
फितरत
उसमें देखना
चाहता है

इसे
फीड बैक
कहा जाता है

फीड बैक

आप
के द्वारा
प्रयोग किये
जाने वाले
वाहन के
वाहन चालक
से भी
लिया जाता है

फीड बैक

आपके
घर के
सफाई
कर्मचारी
से उसकी
तबीयत
के बारे में
पूछ कर
पूछ लिया
जाता है

फीड बैक

आपकी
कामवाली
के काम की
प्रशंशा
कर के भी
खोद दिया
जाता है

ये
फीडबैक
गजब का
काँसेप्ट
हो जाता है

जब एक
फेसबुक
का मित्र
आपको

आपके
बारे में
आपकी ही
गली के
कुत्तों से
पूछ कर
कुछ आपके
भौंकने के
बारे में
आपको ही
बता ले जाता है

फीड बैक
हिन्दी नहीं है
लेकिन हिन्दी में
उसके अर्थ से
वो मजा नहीं
आ पाता है
जो फीड बैक
आपको समझा
ले जाता है

हर कोई
लगा होता है
फीड बैक लेने में
खुद का भी
अगर हो सके

लेकिन
अविश्वास का
कोई तोड़
अभी तक
बाजार में
बिकता नजर
नहीं आता है

‘उलूक’
फीड बैक लेना
तुझे नहीं आता है

तेरा
फीड बैक मगर

अगर
एक सम्मानित
लेना चाहता है

तो अपना कॉलर
तू क्यों नहीं उठाता है ?


चित्र साभार: www.dreamstime.com/

सोमवार, 11 नवंबर 2013

उलझन उलझी रहे अपने आप से तो आसानी हो जाती है

उलझाती है
इसीलिये तो
उलझन
कहलाती है

सुलझ गई
किसी तरह
किसी की तो
किसी और
के लिये यही
बात एक
उलझन
हो जाती है

अब उलझन का
क्या किया जाये
कुछ फितरत में
होता है किसी के
उलझना किसी से

कुछ के नहीं होती है
अगर कोई उलझन
पैदा कर दी जाती हैं
उलझने एक नहीं कई

कहीं एक सवाल
से उलझन
कहीं एक बबाल
से उलझन

किसी के लिये
आँखें किसी की
हो जाती हैं उलझन

किसी के लिये
जुल्फें ही बन
जाती हैं उलझन

सुलझा हुआ
है कोई कहीं
तो आँखिर है कैसे
बिना यहां
किसी उलझन

उलझनों का
ना होना किसी
के पास ही
एक आफत
हो जाती है

अपनो को तक पसंद
नहीं आती है ये बात

इसीलिये पैर
उलझाये जाते है
किसी के किसी से

घर ही के अपने
बनाते हैं कुछ
ऐसी उलझन

सबकी होती है
और जरूर होती है
कुछ ना कुछ उलझन

अपनी अपनी अलग
तरह की उलझन
देश की उलझन
राज्य की उलझन
शहर की उलझन
मौहल्ले घर
गली की उलझन

उलझन होती है
होने से भी
कुछ नहीं होता है
वो अपनी जगह
अपना काम करती है
उलझाने का

पर उलझने को कौन
कहाँ तैयार होता है
अपनी उलझन से
उसे तो किसी
और की उलझन
से प्यार होता है

सारी जिंदगी
उलझने यूं ही
उलझने रह जाती हैं

सबकी अपनी
अपनी होती हैं
कहाँ फंसा पाती हैं

अपनी जुल्फों को
देखने के लिये
आईना जरूरी होता है
सामने वाले की जुल्फ
साफ नजर आती है

आसानी से
सुलझाई जाती हैं
अपनी उलझन
अपने में ही
उलझी रह जाती है ।