बंदर बाँट
काट छाँट
साँठ गाँठ
सभी कुछ
काम में जब
लाना ही
पड़ता है
बाद में भी
तो
पहले इतने
झंडे वंडे
पोस्टर वोस्टर
टिकट विकट
के झगड़े वगड़े
एक बार के लिये
करना जरूरी
नहीं होना चाहिये
आपस में ही
पक्ष और विपक्ष
को बैठ कर
फैसला एक ठोस
देश के हितार्थ
ले लेना चाहिये
बारी बारी से
हैड और टेल
करते हुऐ
अपनी अपनी
पारियों को खेल
लेना चाहिये
टीमें तो बननी
घर से ही
शुरु हो जाती है
सूक्ष्म रूप में
अगर दूरदृष्टी
किसी के पास
थोड़ी सी भी
पाई जाती है
किसी भी टीम
को बनाने और
बैठाने में
अक्ल ही तो
काम में शायद
लाई जाती है
सामन्जस्य
बिठा कर काले
पीले नीले को
उसके ही रंग की
सारी जिम्मेदारी
सौंप दी जाती है
किसी भी तरह की
मुद्रा कहीं भी
इन कामों के लिये
बरबाद नहीं जब
की जाती है
फिर इतने बड़े
देश के चुनावों
के लिये क्यों
खजाने की
ऐसी तैसी
बार बार
हर बार
की जाती है
जनता के हाथ
में आता कभी
कुछ भी नहीं है
चुनाव के बाद भी
उसकी ही खाल
खींच ली जाती है
संशोधनों पर
विचार कर लेने से
कई परेशानियाँ
चुटकी में ही
हल की जाती हैं
बहुत अच्छा
आईडिया आया है
खाली दिमाग में
“उलूक” के
चुनाव
करने की जगह
कुछ लोगों के बीच
बारी बारी से
क्यों नहीं बारी
लगा दी जाती है
पैसा देश का
बचा कर अपने
अपने लिये
इंतजाम
कर लेने से
देश के
साथ साथ
जनता की जेब
कितनी आसानी से
कटने से ऐसे में
बच जाती है
टीमें हर जगह
बनती आई हैं
अपने अपने
हिसाब से
छोटी हो या
बड़ी संस्था में
जब बिना किसी
लफड़े झगड़े के
तो सबसे
बड़ी टीम भी
पहली बार में
आपस में ही
मिल बैठ कर
क्यों नहीं बना
ली जाती हैं ।
काट छाँट
साँठ गाँठ
सभी कुछ
काम में जब
लाना ही
पड़ता है
बाद में भी
तो
पहले इतने
झंडे वंडे
पोस्टर वोस्टर
टिकट विकट
के झगड़े वगड़े
एक बार के लिये
करना जरूरी
नहीं होना चाहिये
आपस में ही
पक्ष और विपक्ष
को बैठ कर
फैसला एक ठोस
देश के हितार्थ
ले लेना चाहिये
बारी बारी से
हैड और टेल
करते हुऐ
अपनी अपनी
पारियों को खेल
लेना चाहिये
टीमें तो बननी
घर से ही
शुरु हो जाती है
सूक्ष्म रूप में
अगर दूरदृष्टी
किसी के पास
थोड़ी सी भी
पाई जाती है
किसी भी टीम
को बनाने और
बैठाने में
अक्ल ही तो
काम में शायद
लाई जाती है
सामन्जस्य
बिठा कर काले
पीले नीले को
उसके ही रंग की
सारी जिम्मेदारी
सौंप दी जाती है
किसी भी तरह की
मुद्रा कहीं भी
इन कामों के लिये
बरबाद नहीं जब
की जाती है
फिर इतने बड़े
देश के चुनावों
के लिये क्यों
खजाने की
ऐसी तैसी
बार बार
हर बार
की जाती है
जनता के हाथ
में आता कभी
कुछ भी नहीं है
चुनाव के बाद भी
उसकी ही खाल
खींच ली जाती है
संशोधनों पर
विचार कर लेने से
कई परेशानियाँ
चुटकी में ही
हल की जाती हैं
बहुत अच्छा
आईडिया आया है
खाली दिमाग में
“उलूक” के
चुनाव
करने की जगह
कुछ लोगों के बीच
बारी बारी से
क्यों नहीं बारी
लगा दी जाती है
पैसा देश का
बचा कर अपने
अपने लिये
इंतजाम
कर लेने से
देश के
साथ साथ
जनता की जेब
कितनी आसानी से
कटने से ऐसे में
बच जाती है
टीमें हर जगह
बनती आई हैं
अपने अपने
हिसाब से
छोटी हो या
बड़ी संस्था में
जब बिना किसी
लफड़े झगड़े के
तो सबसे
बड़ी टीम भी
पहली बार में
आपस में ही
मिल बैठ कर
क्यों नहीं बना
ली जाती हैं ।