अपनी अपनी
होती है सोच
सुबह होते
अंगडाई सी
लेती है सोच
सुबह की
चाय के कप
से निकलती
भाप होती
है सोच
दूध की
दुकान की
लाईन में
हो रही
भगदड़
से उलझ रही
होती है सोच
दैनिक
समाचार
पत्रों के प्रिय
हनुमानों की
हनुमान
चालीसा
पढ़ रही
होती
है सोच
काम पर
जाने के
उतावले पन
में कहीं
खो रही
होती है सोच
दिन
होते होते
पता नहीं क्यों
बावली हो रही
होती है सोच
कहां कहां
भटक रही
होती है
बताने
की बात
जैसी नहीं हो
रही होती है सोच
शाम
होते होते
जैसे कहीं
कुछ खुश
कहीं
कुछ उदास
कहीं
कुछ थकी
कहीं
कुछ निराश
हो रही
होती है सोच
जब घर
को वापस सी
लौट रही
होती है सोच
रात
होते होते
ये भी होता है
जैसे किसी की
किसी से
घबरा रही
होती है सोच
कौन
बताता है
अगर बौरा रही
होती है सोच
सुकून
का पल
बस वही होता है
जब यूं ही
उंघते उंघते
सो जा रही
होती है सोच
पता किसे
कहाँ होता है
सपनों में क्या
आज की रात
दिखा रही है सोच
मुझे
अपनी समझ
में कभी भी
नहीं आती
क्या
तुझे समझ
में कुछ आ
रही है सोच ।
होती है सोच
सुबह होते
अंगडाई सी
लेती है सोच
सुबह की
चाय के कप
से निकलती
भाप होती
है सोच
दूध की
दुकान की
लाईन में
हो रही
भगदड़
से उलझ रही
होती है सोच
दैनिक
समाचार
पत्रों के प्रिय
हनुमानों की
हनुमान
चालीसा
पढ़ रही
होती
है सोच
काम पर
जाने के
उतावले पन
में कहीं
खो रही
होती है सोच
दिन
होते होते
पता नहीं क्यों
बावली हो रही
होती है सोच
कहां कहां
भटक रही
होती है
बताने
की बात
जैसी नहीं हो
रही होती है सोच
शाम
होते होते
जैसे कहीं
कुछ खुश
कहीं
कुछ उदास
कहीं
कुछ थकी
कहीं
कुछ निराश
हो रही
होती है सोच
जब घर
को वापस सी
लौट रही
होती है सोच
रात
होते होते
ये भी होता है
जैसे किसी की
किसी से
घबरा रही
होती है सोच
कौन
बताता है
अगर बौरा रही
होती है सोच
सुकून
का पल
बस वही होता है
जब यूं ही
उंघते उंघते
सो जा रही
होती है सोच
पता किसे
कहाँ होता है
सपनों में क्या
आज की रात
दिखा रही है सोच
मुझे
अपनी समझ
में कभी भी
नहीं आती
क्या
तुझे समझ
में कुछ आ
रही है सोच ।