उलूक टाइम्स: बैकुँठ
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शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

अकेले अपनी बातें अपने मुँह के अंदर ही बड़बड़ाते रह जाते हैं

परेशानी खुद
को भी होती है
परेशानी सब
को भी होती है
जब कोई खुद
अपने जैसा
होने की ही
कोशिश करता है
और सबका
जैसा होने से
बचता रहता है
बकरी की माँ
बहुत ज्यादा दिन
खैर नहीं मना पाती है
खुद के द्वारा
खुद ही हलाल
कर दी जाती है
सब के द्वारा
तैयार किया गया
रास्ता हमेशा ही
सीधा होता है
कोई खड़पेंच
उसमें कहीं भी
नहीं होता है
सब एक दूसरे के
सहारे पार हो जाते हैं
गँगा नहाये बिना ही
बैकुँठ पहुँचा
दिये जाते है
अपनी मर्जी से
अपने टेढ़े मेढ़े
रास्ते में जाने वाले
बस चलते ही
रह जाते हैं
रास्ता होता है
बस उनके साथ
रास्ते के साथ
ही रह जाते हैं
चलना शुरु
जरूर करते हैं
लेकिन पहुँच
कहीं भी
नहीं पाते हैं
‘उलूक’ किसी को
कहीं भी पहुँचाने
के लिये अकेले
चलने वाले
कभी भी
काम में नहीं
लाये जाते हैं
सब के साथ
सब की
मर्जी के बिना
ईश्वर भी मंदिर
में बैठे रह जाते हैं ।