उलूक टाइम्स: परेशानी
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शनिवार, 21 दिसंबर 2019

जरूरी है जिंदा ना रहे बौद्धिकता


क्या
परेशानी है
किसी को

अगर
कोई

अपने
हिसाब
का
सवेरा

अपने
समय
के
हिसाब से

करवाने
का

दुस्साहस
करता है

उनींदे
सूरज को

गिरेबान खींच

ला
कर
रख देना

अपनी
सोच की
दिशा के
छोर पर

और
थमा देना

उसके
हाथ में

अपने
बहुमत से
निर्धारित
किया गया

उसके
समय का
सरकारी आदेश

उसके
चमकने का कोण

और
ताकत

उसे बता कर

समय से पहले
पौंधे
पर

पैदा हो गयी
कली की
पंखुड़ियों
को

आदेशित
कर
खुल लेने
का

और

तुरंत
बन जाने
के लिये

एक फूल

किसी के
हिसाब
का

समय से पहले
पैदा
हुऐ बच्चे
को

मैराथन
में दौड़ लेने

या
उनके

उड़ने
की
कल्पना
 बेचने की

बिना पंखों के

सब संभव है

बस
बैठा दीजिये

हर
सुखा दिये गये
जवान पेड़
की
फुनगी पर

एक कबूतर

एक निशान
लगा हुआ
एक रंग
की
एक या दो लाईन का

जरूरी है
कबूतर ने
उजाड़ी हो
कोई एक
फलती फूलती डाल

जिसके हों
 कहीं ना कहीं
उसके चेहरे पे
निशान
बौद्धिकता 
जिंदा
ना रहे

ठानकर

मरे
ना भी

तो 
भी
घिसटती रहे

ताउम्र

जिसे
देखते रहें

लाईन पड़े
कबूतर

अट्टहास
करते हुऐ

‘उलूक’
जरूरी है

अंधों
का
रजिस्टर
बनना भी

जो
रात में
देख लेते हैं
ऊल जलूल

तेरी तरह।

चित्र साभार: 

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

बहकता तो बहुत कुछ है बहुत लोगों का बताते कितने हैं ज्यादा जरूरी है


परेशानी तो है 
आँख नाक दिमाग सब खोल के चलने में 
आजकल के जमाने के हिसाब से 

किस समय
क्या खोलना है कितना खोलना है किस के लिये खोलना है 
अगर नहीं जानता है कोई
तो पागल तो होना ही होना है 

पागल हो जाना भी एक कलाकारी है समय के हिसाब से 
बिना डाक्टर को कुछ भी बताये कुछ भी दिखाये 

बिना दवाई खाये बने रहना पागल सीख लेने के बाद 
फिर कहाँ कुछ किसी के लिये बचता है 

सारा सभी कुछ 
पैंट की नहीं तो कमीज की ही किसी दायीं या बायीं जेब में 
खुद बा खुद जा घुसता है 

घुसता ही नहीं है 
घुसने के बाद भी जरा जरा सा थोड़े थोड़े से समय के बाद 
सिर निकाल निकाल कर सूंघता है 
खुश्बू के मजे लेता है 

पता भी नहीं चलता है 
एक तरह के सारे पागल एक साथ ही
पता नहीं क्यों 
हमेशा एक साथ ही नजर आते हैं 

समय के हिसाब से समय भी बदलता है 
पागल बदल लेते हैं साथ अपना अपना भी 

नजर आते हैं फिर भी 
कोई इधर इसके साथ कोई उसके साथ उधर 

बस एक ऊपर वाला
नोचता है एक गाय की पूँछ या सूँअर की मूँछ कहीं 
गुनगुनाते हुऐ राम नाम सत्य है 
हार्मोनियम और तबले की थाप के साथ 

‘उलूक’ पागल होना नहीं होता है कभी भी 
पागल होना दिखाना होता है दुनियाँ को 
चलाने के लिये बहुत सारे नाटक 

जरूरी है अभी भी समझ ले
कुछ साल बचे हैं पागल हो जाने वालों के लिये अभी भी 

पागल पागल खेलने वालों से 
कुछ तो सीख लिया कर कभी पागल ।

चित्र साभार: dir.coolclips.com

गुरुवार, 21 मई 2015

होती है बहुत होती है अंदर ही अंदर किसी को बहुत ही परेशानी होती है


सार्थक लेखन की खोज में
निरर्थक भटकने चले जाना भी 
शायद बुद्धिमानी होती है

बकवास कर रहा होता है बेवकूफ कोई कहीं
पीछा करते हुऐ आदतन खोजना अर्थ उसमें भी 
फिर भी कई सूरमाओं की कहानी होती है

टटोलते हुऐ बिना देखे 
खाली फटेटाट के झोले में हाथ डालकर
हाथ में आई हवा को बाहर निकाल कर
देखने की आदत बहुत पुरानी होती है

पता होता है खिसियाने की जगह समझाने की
कलाकारी उसके बाद ही दिखानी होती है

लिख रहा होता है बकवास 
कह रहा होता है है बकवास 
अपने दिन के हिसाब किताब को 
शाम होते डायरी में छिपाने की बेताबी
‘उलूक’ को इसी तरह बतानी होती है

बैचेनी का आलम इधर हो ना हो 
पता चल जाता है
किसी के लिखने की आदत से 
उस पर ऊपर से अपना दर्द

होती है अंदर ही अंदर 
किसी को बहुत ही परेशानी होती है ।

चित्र साभार: etc.usf.edu

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

अकेले अपनी बातें अपने मुँह के अंदर ही बड़बड़ाते रह जाते हैं

परेशानी खुद
को भी होती है
परेशानी सब
को भी होती है
जब कोई खुद
अपने जैसा
होने की ही
कोशिश करता है
और सबका
जैसा होने से
बचता रहता है
बकरी की माँ
बहुत ज्यादा दिन
खैर नहीं मना पाती है
खुद के द्वारा
खुद ही हलाल
कर दी जाती है
सब के द्वारा
तैयार किया गया
रास्ता हमेशा ही
सीधा होता है
कोई खड़पेंच
उसमें कहीं भी
नहीं होता है
सब एक दूसरे के
सहारे पार हो जाते हैं
गँगा नहाये बिना ही
बैकुँठ पहुँचा
दिये जाते है
अपनी मर्जी से
अपने टेढ़े मेढ़े
रास्ते में जाने वाले
बस चलते ही
रह जाते हैं
रास्ता होता है
बस उनके साथ
रास्ते के साथ
ही रह जाते हैं
चलना शुरु
जरूर करते हैं
लेकिन पहुँच
कहीं भी
नहीं पाते हैं
‘उलूक’ किसी को
कहीं भी पहुँचाने
के लिये अकेले
चलने वाले
कभी भी
काम में नहीं
लाये जाते हैं
सब के साथ
सब की
मर्जी के बिना
ईश्वर भी मंदिर
में बैठे रह जाते हैं ।

बुधवार, 25 सितंबर 2013

अपने कैलेंडर में देख अपनी तारीख उसके कैलेंडर में कुछ नया नहीं होने वाला है

रोज एक कैलेंडर
नई तारीख का
ला कर यहां लटका
देने से क्या कुछ
नया होने वाला है
सब अपने अपने
कैलेंडर और तारीख
लेकर अपने साथ
चलने लगे हैं आजकल
उस जगह पर तेरे
कैलेंडर को कौन देखेने
आने वाला है
अब तू कहेगा तुझे
एक आदत हो गई है
अच्छी हो या खराब
किसी को इससे
कौन सा फर्क जो
पड़ने वाला है
परेशानी इस बात
की भी नहीं है
कहीं कोई कह रहा हो
दीवार पर नये साल पर
नया रंग होने वाला है
जगह खाली पड़ी है
और बहुत पड़ी है
इधर से लेकर उधर तक
जहां जो मन करे जब करे
लटकाता कोई दूर तक
अगर चले भी जाने वाला है
सबके पास हैं बहुत हैं
हर कोई कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं पर
ला ला कर
लटकाने वाला है
फुरसत नहीं है किसी को
जब जरा सा भी कहीं
देखने कोई किसी और का
कैलेंडर फिर क्यों कहीं
को जाने वाला है
अपनी तारीख भी तो
उसी दिन की होती है
जिस दिन का वो एक
कैलेंडर ला कर यहां
लटकाने वाला है
मुझे है मतलब पर
बस उसी से है जो
मेरे कैलेंडर की तारीख
देख कर अपना दिन
शुरु करने वाला है |

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

बक बक संख्या तीन सौ

ये भी क्या बात है
उसको देख कर ही
खौरा तू जाता है

सोचता भी नहीं
क्यों जमाने के साथ
नहीं चल पाता है

अब इसमें उसकी
क्या गलती है
अगर वो रोज तेरे
को दिख जाता है
जिसे तू जरा सा भी
नहीं देखना चाहता है

तुझे पता है उसे देख
लेना दिन में एक बार
मुसीबत कम कर जाता है
भागने की कोशिश जिस
दिन भी की है तूने कभी
वो रात को तेरे सपने में
ही चला आता है

जानता है वो तुझे बस
लिखना ही आता है
इसलिये वो कुछ ऎसा
जरूर कर ले जाता है
जिसपर तू कुछ ना कुछ
लिखना शुरू हो जाता है

वैसे तेरी परेशानी का
एक ही इलाज अपनी
छोटी समझ में आता है

ऊपर वाले को ही देख
उसे उसके किसी काम पर
गुस्सा नहीं आता है

सब कुछ छोड़ कर तू
उसको ही खुदा अपना
क्यों नहीं बनाता है

खुदा का तुझे पता है
दिन में दिखना छोड़
वो किसी के सपने में
भी कभी कहाँ आता है ।