उलूक टाइम्स: ब्लॉगिंग
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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

चिट्ठे में चिपकाई जाने वाली पन्द्रह सौ पैंतीसवीं वर्ष दो हजार बीस की सैंतालिसवीं गद्य टाईप पद्य बकवास

 



लिखना
और
लिखे हुऐ पर
कभी किसी मनहूस घड़ी पर
किसी और दिन
दूसरी बार चिंतन करना
अदभुत होता है

लिखने वाले के लिये भी
और
लिखे हुऐ को दुबारा
पाठक के रूप में
पढ़े जाने के लिये भी

लिखते समय का
बेवकूफ
परिपक्व हो चुका होता है
जब पाठक हो कर
सामने आता है

अपना लिखा अपना पढ़ना
टिप्पणी भी
किसी की
मजबूरी में दी हुई

लेखक
टिप्पणी दे आया  
टिप्पणीकार की तरह
एक अनमोल रचना पर
बहुत सुन्दर की

सुन्दर से
बहुत सुन्दर होते हुऐ
लाजवाब से
गजब वाह से लेकर अदभुद

लिखना सफल

फिर
उसके बाद 
किसे कौन बताये कौन समझाये

लिखना पढ़ना छोड़
बातें करना इधर उधर की
लिखने को छोड़ कर बाकी सब

चिट्ठाकारी चिट्ठे ब्लागिंग में भी
चल रहा है
चलता रहा है
अंडरवर्ड
 
बहुत सारी कहानियाँ हैं

लेखन में भी हैं
दबँग
एक नहीं कई हैं ‘उलूक’

रात का प्राणी
दिन में भी देख लेता है

जय ब्लॉगिंग ।

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

सोमवार, 16 सितंबर 2019

अपनी गाय अपना गोबर अपने कंडे खुद ही ढोकर जला कुछ आग बना कुछ राख




कुछ
हंसते हंसते 

कुछ
रो धो कर 

अपना घर 
अपनी दीवार 

रहने दे
सर मत मार 

अपनी गाय 

अपनी गाय
का 
अपना गोबर

गोबर के कंडे 
खुद ही बनाये गये 
अपने ही हाथों से 
हाथ साफ धोकर

अपना 

ही घर 
अपने ही 
घर की दीवार

कंडे ही कंडे

अपना सूरज 
अपनी ही धूप 
अपने कंडे
कुरकुरे
खुद रहे सूख 

अपने कंडे

अपनी आग 
अपना जलना
अपनी फाग 
अपने राग
अपने साग 

आग पर लिख ना
साग पर लिख ना 
राग बे राग पर लिख ना 

जल से दूर
कहीं 
पर जाकर
कुछ कुछ जल जाने 
पर लिख ना 

अपना अपना 
होना खाक 
थोड़ा पानी
थोड़ी राख 

अपनी किताब
अपने पन्ने
अपनी अपनी
कुछ बकवास 

अपना उल्लू
अपनी सीध

बेवकूफ 
‘उलूक’

थोड़ा सा 
कुछ 
अब 
तो सीख 

अपनी गाय 
अपना गोबर 
अपने कंडे
अपनी दीवार
अपनी आग 
अपनी राख 
अपने अपने
राग बे राग 
अपने कंडे
खुद ही थाप 
रोज सुखा
जला कुछ आग। 

वैधानिक चेतावनी: 
कृपया इस बकवास को ब्लॉगिंग यानि चिट्ठाकारी से ना जोड़ें

चित्र साभार: https://timesofindia.indiatimes.com