उलूक टाइम्स: चिट्ठाकारी
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सोमवार, 30 नवंबर 2020

कुछ भी कभी भी कहीं भी सबके लिये नहीं चिट्ठे जिंदा रहें सभी हमेशा ही टिप्पणी जरूरी नहीं रहें कहीं भी

 



लगातार
एक लम्बे समय तक
एक जैसी ही बकवास
करते चले जाने के अनुभव
के प्रयोग
किसी प्रयोगशाला में
परखनली के अन्दर से
निकलते फूटते बुलबुले नहीं हो पाते हैं

ना ही कहीं
कोई रंग बदलता हुआ
नजर आता है
स्याही का पन्ने से लिपटते समय

कागजों के अनुभवों के
हिसाब से
कागज और कलम हैं कहीं
सोये हुऐ भी अगर

सपने
उतर कर चले आते हैं
उनके भी अब
यहीं स्क्रीन पर
सामने से टिमटिमाते से
उभरते शब्दों के साथ
टंकण के लिये
उंगलियों को भी आदत हो गयी हो
जिस मैदान पर नाचने की
यूँ ही बेमतलब

जहाँ
निरंतरता बनाये रखने के
जुगाड़ पर लगे हुऐ
लिखने वाले लेखकों कवियों से इतर
कुछ कथित
खुद को स्थापित करने में लगे हुऐ
रात के अंधेरे के सिपाही जाने जाने वाले

ठूँठ पर
समय बिता बिता कर
समय की भी ऐसी की तैसी
करने में लगे हुऐ
पक्षियों को
बदनाम
करने में लगे हुओं को
किस ने
क्या कहना है
और
कौन सा
उन के कहे लिखे से
सुबह होनी है
लिखने लिखाने की

बहुत जरूरी है
जिंदा रहना बकवास का
ताकि असल जिंदा रहे
कहीं
और किसी पन्ने में

पता तो चले लिखना इतना आसान नहीं है

कुछ भी कभी भी कहीं भी
लिख लिखा कर
दो चार दिन की छुट्टी कर लेने वाले को भी
सब पता होता है
रोज स्कूल खोलने
और कभी कभी खोल देने में
बहुत ज्यादा अन्तर नहीं होता है
कौन सा कर्ता पढ़ा करता है कुछ
कहीं अपने किये कराये के ऊपर लिखे को
और
कौन सा लिखे लिखाये से होता है
कहीं उजाला

लिखने वाला सोच ले
वो दिया है
उसी दिन से
हितैशी शुरु कर देंगे
दिखाना उसके नीचे की जमीन
अंधेरे वाली
समाज को बता कर
उसे चीनी माओ का रिश्तेदार
माओवादी मिआउँ मिआउँ

रहने दीजिये
धन्यवाद आपको आपने पूरा पढ़ा

फिर से धन्यवाद
उनको
जिनको समझ में आ पाया

बाकी
कुछ लिखना जरूरी है
जिंदा रहने के लिये
और
जिंदा रखने के लिये एक पन्ना

नहीं तो कई आये हैं
कई आ कर चले गये
ज्ञान देकर
चिट्ठाकारी के ऊपर

टिप्पणी
मत दीजिये
टिप्पणी गुनाह है
टिप्पणी का प्रचार नहीं।

 चित्र साभार: https://www.thebookdesigner.com/2013/08/3-blogging-mistakes/

शनिवार, 14 मार्च 2020

लगी आग लगाई आग कुछ राख कुछ बकवास कुछ चिट्ठाकारी




समझ में
जब

खुद के
ही
नहीं आती है

लगाई गयी आग
और
लगी आग
से
बनी राख

तो
किस लिये
भटकता है
औघड़

ढूँढने
के लिये
लकड़ियाँ
माचिस का डब्बा
और
गंधक लगी
छोटी छोटी
तीलियाँ

हुँकार कर
आँखें
लाल रक्त
से भर
और
फूँक दे
शँख

रक्तबीज
अंकुरित हैं
हर समय
हर दिशा में

विषाणु
को
कोई भी
नाम दे दो
अच्छा है

कत्ल
करने का
शरीर के साथ
आत्मा
का

के 
विश्वास
के
दंभ के आगे
कुछ नहीं
दंभ के पीछे
कुछ नहीं

दंभ
बनेगा राम
बना
करता होगा
रावण
कहानियों का

कई किस्म के
 बीमार हैं
बीमारियाँ भी
कम नहीं हैं

शरीर
कई मिटते हैं
मिटते रहेंगे

आत्मा
सड़ी
सबसे
खतरनाक है

तैर लेती है
समय के साथ
फाँद लेती है
मीनारें

बहुत
कठिन समय है
विषाणु
बैठ चुका है
कई साल पहले
सिंहासन पर

सम्मोहित
करता है
लोग
होते भी हैं
सम्मोहित

मर भी जाते हैं
बस
जलाये
या
दफनाये
नहीं जाते हैं

तैरते हैं
अभी भी
समय के साथ

आदमी
भ्रम से पार
नहीं पायेगा
जरूरत भी नहीं है

संपेरों
के
देश के साँप
और
बीन लिये
सपेरे
काफी हैं
संभालने के लिये
देश

साँप फुफकारे

जय हिन्द
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
इस से बड़ा
 आठवाँ आश्चर्य
बताइये कोई

‘उलूक’
तेरी तरह का
कोई
पढ़ेगा जरूर

अच्छा होता है
लिख कर
कुछ बकवास

फिर
सो जाना
सूखे पेड़ की ठूँठ पर

आँख
खोल कर
हमेशा की तरह ।

 चित्र साभार: https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/badaun/story-snake-punished-snake-charmer-called-snake-2769083.html

सोमवार, 16 सितंबर 2019

अपनी गाय अपना गोबर अपने कंडे खुद ही ढोकर जला कुछ आग बना कुछ राख




कुछ
हंसते हंसते 

कुछ
रो धो कर 

अपना घर 
अपनी दीवार 

रहने दे
सर मत मार 

अपनी गाय 

अपनी गाय
का 
अपना गोबर

गोबर के कंडे 
खुद ही बनाये गये 
अपने ही हाथों से 
हाथ साफ धोकर

अपना 

ही घर 
अपने ही 
घर की दीवार

कंडे ही कंडे

अपना सूरज 
अपनी ही धूप 
अपने कंडे
कुरकुरे
खुद रहे सूख 

अपने कंडे

अपनी आग 
अपना जलना
अपनी फाग 
अपने राग
अपने साग 

आग पर लिख ना
साग पर लिख ना 
राग बे राग पर लिख ना 

जल से दूर
कहीं 
पर जाकर
कुछ कुछ जल जाने 
पर लिख ना 

अपना अपना 
होना खाक 
थोड़ा पानी
थोड़ी राख 

अपनी किताब
अपने पन्ने
अपनी अपनी
कुछ बकवास 

अपना उल्लू
अपनी सीध

बेवकूफ 
‘उलूक’

थोड़ा सा 
कुछ 
अब 
तो सीख 

अपनी गाय 
अपना गोबर 
अपने कंडे
अपनी दीवार
अपनी आग 
अपनी राख 
अपने अपने
राग बे राग 
अपने कंडे
खुद ही थाप 
रोज सुखा
जला कुछ आग। 

वैधानिक चेतावनी: 
कृपया इस बकवास को ब्लॉगिंग यानि चिट्ठाकारी से ना जोड़ें

चित्र साभार: https://timesofindia.indiatimes.com