उलूक टाइम्स: मंतरी
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गुरुवार, 18 जुलाई 2019

सच की जरूरत है भी नहीं वैसे भी वो अब कहीं भी दूर दूर तक नजर भी नहीं आता है


एक भी
नहीं
छिपता है
ना
मुँह छिपाता है

सामने से
आकर
गर्व के साथ
खड़ा
हो कर
मुस्कुराता है

मुखौटा
लगाने की
जरूरत भी
नहीं समझता है

पकड़ा
गया होता है
फिर भी
नहीं
घबराता है

सफेद
कागज के ऊपर
इफरात से
फैला हुआ
काला
बहुत कुछ

कितनी कितनी
कहानियाँ
बना बना कर

तालियाँ
बटोरता हुआ

इधर से उधर
यूँ ही
मौज में
आता है
और
चला जाता है

किसे
समझाये
और
कैसे
समझाये कोई
उस बात को

जिसे
एक
नासमझ

नहीं
समझने
के कारण ही
लिख लिखा कर यहाँ

जैसे
पूछने
चला आता है

किसी का
दोष नहीं है

सबको
अपनी अपनी
आँखों से
अपने आसपास
अपने अपने
हिसाब का ही
जब
साफ साफ
दिखायी
दे जाता है

और
उसी के पीछे
सारा
सब कुछ
उनके ही
हिसाब का
बेमतलब

धुँधला कर
धूँऐं के बादल
की तरह
उड़ उड़ा कर
उड़न छू
हो जाता है

रहने दे
‘उलूक’

तेरी
रोज की
बकबक से
उकता कर

देखता
क्यों नहीं है
ऐलेक्सा रैंक भी

शर्मा शर्मी से
ऊपर की ओर
उखड़ कर
चला जाता है

समझ में
नहीं आता है

जमाने के
हिसाब से
बहुसंख्यक

तू
क्यों नहीं
हो पाता है

शहर की
छोटी सी खबर

जोरों से
उड़ रही होती है

और
तू खार खाया
अपने ही बालों को

खुजला खुजला कर
नोच खाता है

चश्मा
लगा कर देख
और
सोच

भगवान शिव
आज ही
धन्य हो गये
यूँ ही

काफिले में
मंतरी और संतरी
के
पीछे पीछे
खिंची फोटुकों
के आगे

सोशियल मीडिया भी

जब
हर हर महादेव
कह कह कर

मान्यवरों
के गले में

मालायें

और
चरणों में
उनके

फूल
चढ़ाता है

इसी से
बात शुरु हुई थी

इसे
‘झूठ जी’
कहा जाता है

और
बस यही है
जो
बहुत आगे
पहुँच कर
चला आता है

 और
सच की
जरूरत

है भी
नहीं
वैसे भी

वो
अब
कहीं भी
दूर दूर तक

नजर 
भी 
नहीं
आता है ।

चित्र साभार: wwyeshua.wordpress.com