उलूक टाइम्स: मरने
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सोमवार, 23 मई 2016

लिखना हवा से हवा में हवा भी कभी सीख ही लेना

कफन
मरने के
बाद ही
खरीदे
कोई

मरने
वाले के लिये
अच्छा है

सिला सिलाया
मलमल का
खूबसूरत सा
खुद पहले से
खरीद लेना

जरूरी है
थोड़ा सा कुछ
सम्भाल कर
जेब में उधर
ऊपर के लिये
भी रख लेना

सब कुछ इधर
का इधर ही
निगल लेने से
भी कुछ नहीं होना

अंदाज आ ही
जाना है तब तक
पूरा नहीं भी तो
कुछ कुछ ही सही
यहाँ कितना कुछ
क्या क्या
और किसका
सभी कुछ
है हो लेना

रेवड़ियाँ होती
ही हैं हमेशा से
बटने के लिये
हर जगह ही

अंधों के
बीच में ही
खबर होती
ही है

अंधों के
अखबारों में
अंधों के लिये ही

आँख वालों
को इसमें
भी आता है
ना जाने
किसलिये इतना
बिलखना रोना

लिखने वाले
लिख गये हैं
टुकडे‌ टुकड़े में
पूरा का पूरा
आधे आधे का
अधूरा भी
हिसाब सारा
सब कुछ कबीर
के जमाने से ही

कभी तो माना
कर जमाने के
उसूलों को
‘उलूक’

किसी एक
पन्ने में पूरा
ताड़ का पेड़
लिख लेने से
सब कुछ
हरा हरा
नहीं होना ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

शनिवार, 12 मई 2012

जा एक करोड़ का होजा

बीबी बच्चों का
भविष्य बना
एक करोड़ का
तू बीमा करा

इधर अफसर
तीन सौ करोड़
घर के अन्दर
छिपा रहा है

उधर उसका
अर्दली
दस करोड़
के साथ
पकड़ा
जा रहा है

तू कभी
कुछ नहीं
खा पायेगा

बस सपने
ही देखता
रह जायेगा

अपने पास
ना सही
किसी के पास
एक करोड़
इस तरह तो ला
एक करोड़ का
सपना तू होजा

चल सोच मत
किश्त जमा
कर के आ

अभी करायेगा
कम किश्त में
हो जायेगा

बूढ़ा हो जायेगा
किश्त देने में
ही मर जायेगा

आज करा
अभी करा
एक करोड़
की पेटी होजा

दो रोटी
कम खा
बीमा
जरूर करा

बीमा
करते ही
अनमोल
हो जायेगा
किसी के
चेहरे पर
रौनक
ले आयेगा

तेरे जीने
की ना सही
मरने की
दुआ करने
कोई ना कोई
अब मंदिर की
तरफ जायेगा

किसी की
मौत पर
रोना शुरु हो
जाते हैं लोग
तू पैदा हुआ
खुश हुवे
थे लोग

मरेगा
तब भी
हर कोई
मुस्कुरायेगा
चल सोचना
बंद कर

तीन सौ
का नहीं
बस एक
करोड़ का
ही सही

करा
जल्दी करा
साठ पर करा
और सत्तर पर
पार होजा पर
बीमा एक करोड़
का जरूर करा।