उलूक टाइम्स: मोटी
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गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

राम तुलसी को कोस रहा होता अगर वो सब तब नहीं आज हो रहा होता



हुआ तो 
बहुत कुछ है 

एक
मोटी 
किताब में 
सब कुछ लिखा गया है

कुछ
समझ में 
आ जाता है
जो
नहीं आता है
सब समझ चुके विद्वानो से
पूछ 
लिया जाता है

मान
लिया 
जाता है
पढ़ा लिखा आदमी कभी भी
किसी को
बेवकूफ 
नहीं बनाता है

वही सब 
अगर आज हो रहा होता
तो राम 
तुलसी को बहुत कोस रहा होता

क्या कर रहा है 
पता नहीं इतने दिनो से

अभी तक 
तो
पूरी 
रामचरित मानस छपने  को दे चुका होता

प्रोजेक्ट 
इस पर भी भेजने के लिये बोला था
आवेदन तो कम से कम कर ही दिया होता

आपदा के फंड से
दीर्घकालीन अध्ययन के नाम पर
कुछ 
किसी से कहलवा कर
अब तक 
दे दिलवा भी दिया होता

हनुमान जी आये थे
खोद कर ले गये थे संजीवनी का पहाड़
केदारनाथ में जो हुआ 
उसी के कारण हुआ
इतना ही तो लिखना होता

लिख ही दिया होता
पर ये सब आज के दिन कैसे हो रहा होता

थोड़ा सा भी समझदार होता
तो तुलसीदास 
नहीं कुछ और हो रहा होता

बिना
कुछ 
लिये दिये
एक 
कालजयी ग्रन्थ
लिख लिखा कर ऐसे ही
बिना
कोई 
अ‍ॅवार्ड लिये
दुनिया से 
थोड़ा विदा हो गया होता ।

चित्र साभार: 
https://www.clipartkey.com/

शनिवार, 1 सितंबर 2012

तेरी रोटी रोटी थी पर खोटी थी

अपनी एक
रोटी बनाना
टेढ़ी मेढ़ी
मोटी सूखी
स्वाद के साथ
उसको खाना
खुशी मनाना
किसी का इसको
ना देख पाना
उसका घीं का
डब्बा एक लाना
ला लाकर
सबको दिखाना
एक दिन
एक जगह पर
खाने के लिये
सबको बुलाना
सारे सूखी रोटी
वालों का
इक्ट्ठा होकर
वहाँ जाना
घीं वाले का
अपनी रोटी के
साथ वहाँ आना
टेढ़ी मेढ़ी रोटी
वालों को
डब्बा दिखाना
घीं लेकिन
अपनी रोटी
पर लगाना
सूखी रोटी
वालों का
दुखी बहुत
हो जाना
अपनी रोटी
लेकर वापस
अपने घर
आ जाना
घीं के डब्बे
वाले का
जम कर
गाली खाना
जो नहीं
गया कहीं
उसका अपनी
रोटी पर
इतराना
रोटी थी पर
खोटी थी
मुहावरे का
जन्म कहीं
हो जाना ।