कुछ था
जरूर
उन सब
जगहों पर
जहाँ से
गुजरा
था मैं
एक नहीं
हजार बार
जमाने के
साथ साथ
और
कुछ नहीं
दिखा था
कभी भी
ना मुझे
ना ही
जमाने को
कुछ दिखा
हो किसी को
ऐसा
जैसा ही
कुछ लगा
भी नहीं था
अचानक
जैसे बहुत
सारी आँखे
उग आई थी
शरीर में
और
बहुत कुछ
दिखना शुरु
हो गया था
जैसे
कई बार
पढ़ी गई
किताब के
एक खाली
पड़े पन्ने को
कुछ नहीं
लिखे होने
के बावजूद
कोई पढ़ना
शुरु
हो गया था
आदमी
वही था
कई कई
बार पढ़ा
भी गया था
समझ में
हर बार
कुछ
आया था
और
जो आया था
उसमें
कभी कुछ
नया भी
नहीं था
फिर
अचानक
ऐसा
क्या कुछ
हो गया था
सफेद पन्ना
छूटा हुआ
एक पुरानी
किताब का
बहुत कुछ
कह गया था
एक
जमाने से
जमाना भी
लगा था
पढ़ने
पढ़ाने में
लिखा
किताब का
और
एक खाली
सफेद पन्ना
किसी का
सफेद
साफ चेहरा
हो गया था
‘उलूक’
आँख
ठीक होने
से ही
खुश था
पता ही
नहीं चला
उसको
कि
सोच में
ही एक
मोतियाबिंद
हो गया था ।
चित्र साभार: http://www.presentermedia.com/
जरूर
उन सब
जगहों पर
जहाँ से
गुजरा
था मैं
एक नहीं
हजार बार
जमाने के
साथ साथ
और
कुछ नहीं
दिखा था
कभी भी
ना मुझे
ना ही
जमाने को
कुछ दिखा
हो किसी को
ऐसा
जैसा ही
कुछ लगा
भी नहीं था
अचानक
जैसे बहुत
सारी आँखे
उग आई थी
शरीर में
और
बहुत कुछ
दिखना शुरु
हो गया था
जैसे
कई बार
पढ़ी गई
किताब के
एक खाली
पड़े पन्ने को
कुछ नहीं
लिखे होने
के बावजूद
कोई पढ़ना
शुरु
हो गया था
आदमी
वही था
कई कई
बार पढ़ा
भी गया था
समझ में
हर बार
कुछ
आया था
और
जो आया था
उसमें
कभी कुछ
नया भी
नहीं था
फिर
अचानक
ऐसा
क्या कुछ
हो गया था
सफेद पन्ना
छूटा हुआ
एक पुरानी
किताब का
बहुत कुछ
कह गया था
एक
जमाने से
जमाना भी
लगा था
पढ़ने
पढ़ाने में
लिखा
किताब का
और
एक खाली
सफेद पन्ना
किसी का
सफेद
साफ चेहरा
हो गया था
‘उलूक’
आँख
ठीक होने
से ही
खुश था
पता ही
नहीं चला
उसको
कि
सोच में
ही एक
मोतियाबिंद
हो गया था ।
चित्र साभार: http://www.presentermedia.com/