उलूक टाइम्स: मोतियाबिंद
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रविवार, 7 सितंबर 2014

लिखा हुआ पढ़ते पढ़ते नहीं लिखा पढ़ने से रह गया था

कुछ था
जरूर
उन सब
जगहों पर

जहाँ से
गुजरा
था मैं

एक नहीं
हजार बार
जमाने के
साथ साथ

और
कुछ नहीं
दिखा था
कभी भी

ना मुझे

ना ही
जमाने को

कुछ दिखा
हो किसी को

ऐसा
जैसा ही
कुछ लगा
भी नहीं था

अचानक
जैसे बहुत
सारी आँखे
उग आई थी
शरीर में

और
बहुत कुछ
दिखना शुरु
हो गया था

जैसे
कई बार
पढ़ी गई
किताब के

एक खाली
पड़े पन्ने को

कुछ नहीं
लिखे होने
के बावजूद

कोई पढ़ना
शुरु
हो गया था

आदमी
वही था

कई कई
बार पढ़ा
भी गया था

समझ में
हर बार
कुछ
आया था

और
जो आया था

उसमें
कभी कुछ
नया भी
नहीं था

फिर
अचानक

ऐसा
क्या कुछ
हो गया था

सफेद पन्ना
छूटा हुआ
एक पुरानी
किताब का

बहुत कुछ
कह गया था

एक
जमाने से

जमाना भी
लगा था
पढ़ने
पढ़ा‌ने में

लिखा
किताब का

और
एक खाली
सफेद पन्ना

किसी का
सफेद
साफ चेहरा
हो गया था

‘उलूक’
आँख
ठीक होने
से ही
खुश था

पता ही
नहीं चला
उसको

कि
सोच में
ही एक
मोतियाबिंद
हो गया था ।

चित्र साभार: http://www.presentermedia.com/