उलूक टाइम्स: शिक्षक दिवस
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शनिवार, 5 सितंबर 2020

उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था बस लिखने चला आया था

 


कल दूरभाष पर
बात हुई थी
उसने बताया था वो बहुत रोया था
क्या करूँ
समझ नहीं बस पाया था
घर के लोगों से साझा करने का साहस नहीं कर पाया था

दिया मानता रहा था हमेशा
बस लौ की रोशनी ही समझ पाया था

सकारात्मक रहने फैलाने बाँटने दिखाने के दिन के पहले दिन
वो अपनी सारी यँत्रणाये सुनाने के लिये कुछ सोच कर यूँ ही चला आया था

बहुत सारा अँधेरा दिये के नीचे का
दिया भी कहाँ किसी से कभी बाँट पाया था
वो जो कह रहा था सारा सब तो बहुत ही साफ और खुला था
पहले से पता था
जमाना और जमाने के आज का शिक्षक
बहुत कुछ नया सीख चुका था
धोती झोले की सोच बहुत पीछे कहीं छोड़ आया था

शोध करने की प्रबल इच्छा और मेहनत से प्राप्त कर चुका उपाधियाँ निर्धारित
एक छोटे से गाँव से निकल कर बहुत दूर चकाचौँध भरे शहर तक पहुँच पाया था
उसे कहाँ पता था पहला मील का पत्थर
शिक्षक की महत्वाकाँक्षाओं ने ही
किसी एक दल की सदस्यता की पर्ची को उसके हाथ में थमाया था

बहुत कुछ जरूरत से ज्यादा मिलने के बावजूद भी
पैसे की भूख की बीमारी से ग्रसित हो जाना भी
वो नहीं देख और समझ पाया था

दिया लेकिन देखना शुरु कर चुका था
रोशनी अपने सामने के दिये की
और उसके नीचे के अंधेरे में
एक एक करके जाते कई दिये भविष्य के
यंत्रणायें झेलने के लिये बस सालों साल

उलझते निपटते लगते निखर कर निकलते
कोई भी कहाँ समझ पाया था

तेरे ही एक दिन के पहले दिन ‘उलूक’
तेरा ही प्रिय तेरी ही एक दास्ताँ लेकर तेरे पास आया था

पुरुस्कारों की बारिशों के मेले के बीच उसके रोने को सुनकर
तू भी कहाँ जरा सा भी रो पाया था

उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था
बस लिखने चला आया था।

चित्र साभार: https://www.thestatesman.com/

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शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

शिक्षक दिवस इस बार राधा के साथ कृष्ण और राधाकृष्णन साथ मनाते होंगे

कम नहीं हैं बहुत हैं
होने वाले कुछ
कृष्ण हो जायेंगे
कुछ बांसुरी भी छेड़ेंगे
कुछ अपनी कुछ
राधाओं के संग
कुछ रास रचायेंगे
कुछ अर्जुन भी होंगे
कुछ दुर्योधनों के
साथ चले जायेंगे
कुछ कहीं गीता
व्यास की बाँचेंगे
कुछ गुरु ध्यान
करना शुरु हो जायेंगे
शिक्षा की कुछ बातें
कुछ की कुछ बातों
में से ही निकल
कर बाहर
कुछ आयेंगी
कुछ शिक्षा
और कुछ
शिक्षकों के
संदर्भ की
नई कहानियाँ
बन जायेंगी
कुछ गीत होंगे
कुछ कविताऐं भी
सुनाई जायेंगी
कुछ शिक्षक होंगे
कुछ फूल होंगे
कुछ शाल होंगे
कुछ मालायें होंगी
कुछ चेहरे होंगे
कुछ मोहरे होंगें
कुछ खबरों में होंगे
कुछ तस्वीरों में होंगे
बनेगा अवश्य ही
कुछ अद्भुत संयोग
कुछ इस बार के
शिक्षक दिवस पर
कुछ ना कुछ तो
बन ही रहा है योग
शिक्षा के पीले वृक्ष
को जड़ उखाड़ कर
कुछ परखा जायेगा
मिट्टी पानी
हवा हटा कर
कंकरीट डाल फिर
मजबूत किया जायेगा
हर बार की तरह नहीं
इस बार कुछ अलग
कुछ नये इरादे होंगे
राधाकृष्णन
की यादें होंगी और
वहीं साथ में राधा के
कृष्ण के साथ किये
कुछ पुराने वादे होंगे
‘उलूक’ पता नहीं
कौन सा दिन मनायेगा
कुछ तो करेगा ही
हेड टेल करने के लिये
एक सिक्का पुराना
ढूँढ कर कहीं से
जरूर ले कर आयेगा।

चित्र साभार:
www.pinterest.com
livechennai.com

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

एक दिन शिक्षक होने का अहसास कुछ सवाल और कुछ जवाब हो जाते हैं

तीन सौ पैंसठ
दिनों में
वैसे देखें तो
गिनती से ज्यादा
दिन भी हो जाते हैं
हर नये दिन
सूरज उगने के साथ
दिन को एक नाम
देने के बहाने
कई मिल जाते हैं
रोज ही आते जाते हैं
जिन रास्तों पर
उन्हीं रास्तों के लोग
किसी दिन कुछ
अलग तरीके से
पेश आते हैं
दो एक बच्चे
मोहल्ले के
सुबह सुबह
शुभकामनाऐं
किसी रोज जब
दे के जाते हैं
याद आता है
एक दिन के
लिये ही सही
और मास्साब की
कमीज के कॉलर
खड़े हो जाते है
शुरु होता है
आकलन खुद का
खुद ही के
अंदर से कहीं
पर्दे गिरना
उसी समय
नाटक के शुरु
होने से पहले
ही शुरु हो जाते हैं
याद आती है
प्रथम गुरु 'माँ'
पहली सोच में
शीश झुकाना और
नमन करने का
खयाल ही बस
सोच में ला पाते हैं
नौ महीने पेट में
रहने के बाद भी उसके
अभिमन्यु की छाया
भी तो हो नहीं पाते हैं
बाद उसके
याद करते हैं
गुरुओं की जगाई
चेतना को
जमाना हो गया
उठे हुऐ कब से
चलते फिरते
देखते हैं लोग
लेकिन जानते हैं
अच्छी तरह
खुली आँखो
की नीँद में
क्या देखा क्या नहीं
बताना दूर की बात है
रात के देखे
सपने की तरह
भूल जाते हैं
शाम होते
डूबते सूरज के साथ
अगले किसी दिन
के आने की बाट
जोहने की
आदत के साथ
हम ‘शिक्षक दिवस’
पर कुछ सुनने
के लिये ‘दूरदर्शन’
के रिमोट का
बटन इस बार
पहली बार
जोर से दबाते हैं ।

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

आइये आज कुछ अच्छा किया जाये !


शिक्षक दिवस पर
सोच रहा हूँ आज
थोड़ा सा संजीदा
हो लिया जाये
किसी तरह  से
की जा रही
बकवास से
कुछ देर के
लिये ही सही
किनारा कर
लिया जाये
पहुँचा हूँ आज
जिस मुकाम पर
उसपर कुछ मनन 
कर लिया जाये
ईश्वर तुल्य गुरु
मिले हों जिन्हें
ऎसे  कुछ भाग्यशाली
शिष्यों  पर गर्व 
कर लिया जाये
दिशा दी थी कभी
जिन्होंने समझ
बूझ कर कुछ हमें
अपने उन सभी
गुरूओं को एक दिन
के लिये ही सही
याद तो कर लिया जाये
भटकना उबड़ खाबड़
रास्तों में चलते चलते
लाजमी होना कुछ देर के
लिये मान भी लिया जाये
कोशिश एक बार कर के
अपने दिशा यंत्रों को
ठीक कर लिया जाये
क्या पता किसी की
समझ में सही समय पर
ये बात आ ही जाये
रास्ते पर चलते चलते
चलने वाले से सही
रास्ते का पता ही
पूछ लिया जाये
किताबों को खा रहे
कीडो़ को अल्विदा
कह दिया जाये
धूल कपडे़ से झाड़ कर
पुराने जिल्द को
बदल ही दिया जाये
क्या पता कोई
भूला भटका कभी
कुछ पूछने के
लिये ही चला आये
निराशा हो सकती है
किसी को भी
कभी भी कहीं भी
उसी में से खींच कर
आशा का संचार
कर लिया जाये
सबकुछ ऎसे ही
नहीं चलेगा
हमेशा के लिये
फूटेंगी कोपलें
नये फूलों के लिये
पुराने सूखे हुऎ
फूलों की पत्तियों
का आसवन ही
कर लिया जाये
आज शिक्षक दिवस पर
क्यों ना पुनर्जीवित
होने के सपने देखने
का एक प्रण ही
कर लिया जाये ।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

शिक्षक दिवस

माता पिता
समाज
परिवेश
घर गाँव
शहर देश

पता नहीं

यहाँ तक
आते आते
किसने क्या
क्या
पढ़ाया 

शिक्षक दिवस
पर आज
अपने गुरुजनों
के साथ साथ

हर वो शख्स
मुझे याद आया

जिसने
कुछ ना कुछ
अच्छा बुरा
मुझे
सिखाया 

कोशिश
भी की
सीखने की
कुछ कुछ
हमेशा

पर
रास्ता
अपने
गुरु का
दिया हुआ
ही अपनाया

यहाँ तक
बेरोकटोक

शायद
इसी लिये
चल के
आराम से
आ पाया

आसपास
अपने

बोली भाषा
और
पहनावे
को
आज जब

मैं
खुद नहीं
समझ पाया

प्रश्न उठना
ही था
मन के कोने
में कहीं

पूछ बैठा
उसी समय
अपने आप से
वहीं के वहीं

शिक्षा
दी हो
शायद यही
मैंने ही
सब कुछ इन्हें

वही इन
सब के
व्यवहारों में
परिलक्षित हो
सामने से
है आया ।