कभी कभी
सब कुछ
शून्य हो
जाता है
सामने से
खड़ा नजर
आता है
कुछ किया
नहीं जाता है
कुछ समझ
नहीं आता है
कुछ देर
के लिये
समय सो
जाता है
घड़ी की
सूंइयाँ
चल रही
होती है
दीवार पर
सामने की
हमेशा की तरह
जब कभी
डरा जाता है
उस डर से
जो हुआ ही
नहीं होता है
बस आभास
दे जाता है
कुछ देर
के लिये
ऐसे
समय में
बहुत कुछ
समझा
जाता है
समय
समझाता है
समझाता
चला जाता है
समय के साथ
सभी को
कौन याद
रख पाता है
कहाँ याद
रहती हैं
ठोकरें
किसी को
बहुत लम्बे
समय तक
हर किसी
की आदत
नहीं होती है
हर कोई
सड़क पर
पड़े पत्थर को
उठा कर
किनारे
कहाँ
लगाता है
कृष्ण भी
याद ऐसे ही
समय में
आता है
ऐसे ही समय
याद आती है
किताबें
किताबों में
लिखी इबारतें
नहीं समझी
गई कहावतें
जो हो रहा
होता है
सामने सामने
सत्य बस
वही होता है
पचता
नहीं भी है
फिर भी
निगलना
जरूरी
हो जाता है
‘उलूक’
चूहों की दौड़
देखते देखते
कब चूहा हो
लिया जाता है
उसी समय
पता समझ
में आता है
जब टूटती है
नींद अचानक
दौड़
खत्म होने
के शोर से
और कोई
खुद को
अपनी ही
डाल पर
चमगादड़ बना
उल्टा लटका
हुआ पाता है ।
चित्र साभार: www.gitadaily.com
सब कुछ
शून्य हो
जाता है
सामने से
खड़ा नजर
आता है
कुछ किया
नहीं जाता है
कुछ समझ
नहीं आता है
कुछ देर
के लिये
समय सो
जाता है
घड़ी की
सूंइयाँ
चल रही
होती है
दीवार पर
सामने की
हमेशा की तरह
जब कभी
डरा जाता है
उस डर से
जो हुआ ही
नहीं होता है
बस आभास
दे जाता है
कुछ देर
के लिये
ऐसे
समय में
बहुत कुछ
समझा
जाता है
समय
समझाता है
समझाता
चला जाता है
समय के साथ
सभी को
कौन याद
रख पाता है
कहाँ याद
रहती हैं
ठोकरें
किसी को
बहुत लम्बे
समय तक
हर किसी
की आदत
नहीं होती है
हर कोई
सड़क पर
पड़े पत्थर को
उठा कर
किनारे
कहाँ
लगाता है
कृष्ण भी
याद ऐसे ही
समय में
आता है
ऐसे ही समय
याद आती है
किताबें
किताबों में
लिखी इबारतें
नहीं समझी
गई कहावतें
जो हो रहा
होता है
सामने सामने
सत्य बस
वही होता है
पचता
नहीं भी है
फिर भी
निगलना
जरूरी
हो जाता है
‘उलूक’
चूहों की दौड़
देखते देखते
कब चूहा हो
लिया जाता है
उसी समय
पता समझ
में आता है
जब टूटती है
नींद अचानक
दौड़
खत्म होने
के शोर से
और कोई
खुद को
अपनी ही
डाल पर
चमगादड़ बना
उल्टा लटका
हुआ पाता है ।
चित्र साभार: www.gitadaily.com