सम्पादक जी को
देखते ही साथ में किसी जगह कहीं
देखते ही साथ में किसी जगह कहीं
मित्र से
रहा नहीं गया
रहा नहीं गया
कह बैठे यूँ ही
भाई जी
ये भी लिख रहे हैं
कुछ कुछ आजकल
कुछ कीजिये इन पर भी कृपा
कहीं
पीछे पीछे के पृष्ठ पर ही सही
पीछे पीछे के पृष्ठ पर ही सही
थोड़ा सा
इनका कुछ छापकर
इनका कुछ छापकर
क्या पता किसी के
कुछ
समझ में भी आ जाये
समझ में भी आ जाये
ऎसे ही कभी
बड़ी ना सही
बड़ी ना सही
कोई छोटी सी दुकान
लिखने पढ़ने की
इनकी भी कहीं
इनकी भी कहीं
किसी कोने में एक खुल जाये
मित्रवर की
इस बात पर
इस बात पर
उमड़ आया बहुत प्यार
मन ही मन किया उनका आभार
फिर मित्र को
समझाने के लिये बताया
समझाने के लिये बताया
पत्रिका में
जो छपता है
जो छपता है
वो तो कविता या लेख होता है
विद्वानो के द्वारा
विद्वानो के लिये
विद्वानो के लिये
लिखा हुआ
एक संकेत होता है
एक संकेत होता है
आप मेरे को
वहाँ कहाँ अढ़ा रहे हो
वहाँ कहाँ अढ़ा रहे हो
शनील के कपडे़ में
टाट का टल्ला
टाट का टल्ला
क्यों लगा रहे हो
मेरा लिखना
कभी भी
कभी भी
कविता या लेख नहीं होता है
वो तो बस
मेरे द्वारा
अपने ही आस पास
देखी समझी गयी
मेरे द्वारा
अपने ही आस पास
देखी समझी गयी
कहानी का
एक पेज होता है
एक पेज होता है
और आस पास
इतना कुछ होता है
इतना कुछ होता है
जैसे
खाद बनाने के लिये
खाद बनाने के लिये
कूडे़ का
एक ढेर होता है
एक ढेर होता है
रोज
अपने पास इसलिये
अपने पास इसलिये
लिखने के लिये
कुछ ना कुछ
जरूर होता है
जरूर होता है
यहाँ आ कर
लिख लेता हूँ
लिख लेता हूँ
क्योंकि
यहाँ लिखने के लिये ही
बस एक विद्वान होना
जरूरी नहीं होता है
खुद की
समझ में भी
नहीं आती हैंं
कई बार कई बात
समझ में भी
नहीं आती हैंं
कई बार कई बात
उसको भी
कह देने से
कह देने से
किसी को कोई भी
कहाँ यहाँ
परहेज होता है
परहेज होता है
विद्वान लोग
कुछ भी
नहीं लिख देते हैं
नहीं लिख देते हैं
'उलूक'
कुछ भी
लिख देता है
लिख देता है
और
उसका
कुछ मतलब
निकल ही आये
निकल ही आये
ये जरूरी भी
नहीं होता है ।
नहीं होता है ।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com/