उलूक टाइम्स: परहेज
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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

जरूरी नहीं सब सबकुछ समझ ले जायें


विचारधाराऐं 
नदी के दो किनारों की धाराऐं 

किसी एक को अपनायें 

सोचें कुछ नहीं
बस आत्मसात करें और फैलायें 
लोगों को अनुयायी बनायें 

सबको बतायें 
किनारे कभी मिलते नहीं 
किनारे किनारे तैरें तो कभी डूबते नहीं 
संभव नहीं 
इस किनारे वाले उस किनारे पर चले जायें 

अवसर होती हैं 
नदी के बीच बह रही धाराऐं 
जब भी कभी नजर आयें किसी को ना बतायें 
खुद डुबकी लगायें 

बस ध्यान रहे इतना 
किसी भी अनुयायी को इसकी भनक ना हो पाये 
संगम होता दिखे किनारे किनारे चलते चलते
कभी दो नदियों का रुक जायें मनन करें 
खोज करने से पहले परहेज करना होता है
बेहतर के फलसफे को अपनायें 

इससे पहले अनुयायिओं को दिखे 
दो किनारों का जुड़ना 
और 
विचारधाराओं का मिलना 
सबका ध्यान बटायें 

एक महाकुंभ करवाने का जुगाड़ लगवायें 
अवसरों के संगम को जाने ना दें भुनायें 
खुद किनारे को छोड़ कर 
संगम करती नदियों के बीच में 
डुबकियां लगायें 

विचारधारायें 
नदी के दो किनारों की धारायें 
संभव नहीं होता है मिलन जिनका कभी 
अनुयायियों को समझाते 
यही बस चले जायें 

आ ही गया किसी के समझ में थोड़ा बहुत 
कभी ना घबरायें 
किनारे पर ना रहने दें 
अपने साथ डुबकी लगाने नदी के बीच 
उसे भी लेते चले जायें ।

चित्र साभार: 
https://mark-borg.github.io/blog/2016/river-crossing-puzzles/

शनिवार, 27 जुलाई 2013

लिखने से कोई विद्वान नहीं होता है


सम्पादक जी को
देखते ही 
साथ में किसी जगह कहीं 
मित्र से
रहा नहीं गया 
कह बैठे यूँ ही

भाई जी
ये भी लिख रहे हैं 
कुछ कुछ आजकल 

कुछ कीजिये इन पर भी कृपा 

कहीं
पीछे पीछे के पृष्ठ पर ही सही
थोड़ा सा
इनका कुछ छापकर 

क्या पता किसी के
कुछ
समझ में भी आ जाये

ऎसे ही कभी
बड़ी ना सही 
कोई छोटी सी दुकान 
लिखने पढ़ने की
इनकी भी कहीं
किसी कोने में एक खुल जाये 

मित्रवर की
इस बात पर 
उमड़ आया बहुत प्यार
मन ही मन किया उनका आभार 

फिर मित्र को
समझाने के लिये बताया 

पत्रिका में
जो छपता है 
वो तो कविता या लेख होता है 

विद्वानो के द्वारा
विद्वानो के लिये
लिखा हुआ
एक संकेत होता है 

आप मेरे को
वहाँ कहाँ अढ़ा रहे हो
शनील के कपडे़ में
टाट का टल्ला 
क्यों लगा रहे हो 

मेरा लिखना
कभी भी
कविता या लेख नहीं होता है 

वो तो बस
मेरे द्वारा
अपने ही 
आस पास
देखी समझी गयी
कहानी का
एक पेज होता है 

और आस पास
इतना कुछ होता है
जैसे
खाद बनाने के लिये 
कूडे़ का
एक ढेर होता है 

रोज
अपने पास इसलिये 
लिखने के लिये 
कुछ ना कुछ
जरूर होता है 

यहाँ आ कर
लिख लेता हूँ 

क्योंकि 
यहाँ लिखने के लिये ही
बस एक विद्वान होना
जरूरी नहीं होता है 

खुद की
समझ में भी
नहीं 
आती हैंं
कई बार कई बात 

उसको भी
कह देने से 
किसी को कोई भी 
कहाँ यहाँ
परहेज होता है 

विद्वान लोग
कुछ भी
नहीं लिख देते हैं

'उलूक'
कुछ भी
लिख देता है

और 
उसका
कुछ मतलब
निकल ही आये 
ये जरूरी भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com/