कैसे
पता करे
कोई खुद
कि
वो होश में है
या बेहोश है
वहाँ जहाँ
बेहोश रहने को
होश का पैमाना
माना जाता है
आँख में
चश्में लगे हो भी
और
नहीं भी हों
दिखायी
दे जाता है
साफ साफ
बहुत दूर से
नजर भी
आ जाता है
सोच
के चश्में
किसी की
सोच में
शायद कोई
दूर वाला
बहुत दूर से
बैठ कर भी
लगा ले जाता है
एक जैसी
लकीर को
खींचते हुऐ
एक दो नहीं
एक
बहुत
बड़ी भीड़
का स्वभाव
एक सा
हो जाता है
जहाँ
बस लकीर
खींचनी ही
नहीं होती है
खींचने के बाद
एक ही तरीके से
उसे पीटना
आना भी
बहुत जरूरी
माना जाता है
बस
इसी
तस्वीर के
अन्दर
झांंकने पर
आदमी का
घोड़ा हो जाना
और
घोड़े का
ऐनक लगाकर
सीधी
एक लकीर
पर चलते चलते
एक शतरंज
की बिसात में
खड़े वजीर के लिये
फकीर हो जाना
समझ में आना
शुरु हो जाता है
घोड़े
की आँखों में
ऐनक लगाना तो
जरूरी
हो जाता है
उसे रास्ते से
भटकने से
बचाने के लिये
सामने
देखने के लिये
इसी तरह मजबूर
किया जाता है
घोड़े
वफादार भी होते हैं
ऐनक लगी रहती है
दिखायी देती है
वफादारी
देखने के लिये
चश्मा
बना बनाया
बाजार में
नहीं पाया जाता है
जरूरी भी नहीं होता है
खबर में
घोड़ों का
आदमी को काट
खाने का वाकया
छपा हुआ
नजर में नहीं
ही आता है
अजीब बात है
कब आदमी
आदमियों की
भीड़ के बीच में
आँख में
ऐनक लगे घोड़ों से
अपने को
घिरा हुआ होना
महसूस करना
शुरु हो जाता है
कौन होश में है
कौन बेहोश है
कैसे समझ में आये
किस से पूछा जाये
ऐसी बात
कोई सीधे सीधे
जो क्या बताता है
और ‘उलूक’ भी
पता नहीं
आदमी और
घोडों के बीच
एक ऐनक
को लेकर
होश और बेहोश
के पैमाने लेकर
क्या किसलिये
और क्यों नापना
शुरु हो जाता है ?
चित्र साभार: http://lakhtakiyabol.com
पता करे
कोई खुद
कि
वो होश में है
या बेहोश है
वहाँ जहाँ
बेहोश रहने को
होश का पैमाना
माना जाता है
आँख में
चश्में लगे हो भी
और
नहीं भी हों
दिखायी
दे जाता है
साफ साफ
बहुत दूर से
नजर भी
आ जाता है
सोच
के चश्में
किसी की
सोच में
शायद कोई
दूर वाला
बहुत दूर से
बैठ कर भी
लगा ले जाता है
एक जैसी
लकीर को
खींचते हुऐ
एक दो नहीं
एक
बहुत
बड़ी भीड़
का स्वभाव
एक सा
हो जाता है
जहाँ
बस लकीर
खींचनी ही
नहीं होती है
खींचने के बाद
एक ही तरीके से
उसे पीटना
आना भी
बहुत जरूरी
माना जाता है
बस
इसी
तस्वीर के
अन्दर
झांंकने पर
आदमी का
घोड़ा हो जाना
और
घोड़े का
ऐनक लगाकर
सीधी
एक लकीर
पर चलते चलते
एक शतरंज
की बिसात में
खड़े वजीर के लिये
फकीर हो जाना
समझ में आना
शुरु हो जाता है
घोड़े
की आँखों में
ऐनक लगाना तो
जरूरी
हो जाता है
उसे रास्ते से
भटकने से
बचाने के लिये
सामने
देखने के लिये
इसी तरह मजबूर
किया जाता है
घोड़े
वफादार भी होते हैं
ऐनक लगी रहती है
दिखायी देती है
वफादारी
देखने के लिये
चश्मा
बना बनाया
बाजार में
नहीं पाया जाता है
जरूरी भी नहीं होता है
खबर में
घोड़ों का
आदमी को काट
खाने का वाकया
छपा हुआ
नजर में नहीं
ही आता है
अजीब बात है
कब आदमी
आदमियों की
भीड़ के बीच में
आँख में
ऐनक लगे घोड़ों से
अपने को
घिरा हुआ होना
महसूस करना
शुरु हो जाता है
कौन होश में है
कौन बेहोश है
कैसे समझ में आये
किस से पूछा जाये
ऐसी बात
कोई सीधे सीधे
जो क्या बताता है
और ‘उलूक’ भी
पता नहीं
आदमी और
घोडों के बीच
एक ऐनक
को लेकर
होश और बेहोश
के पैमाने लेकर
क्या किसलिये
और क्यों नापना
शुरु हो जाता है ?
चित्र साभार: http://lakhtakiyabol.com