उलूक टाइम्स: वजीर
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रविवार, 6 सितंबर 2020

कभी यूँ ही कुछ भी लिख दिया भी जरूरी है सामने रखना अपने ही आइने के : मुआफ़ी के साथ कि कूड़ेदान का ढक्कन बंद रखना चाहिये लेखकों ने अपने घर का

 

सारे मोहरे शतरंज के
चौसठ खानों से बाहर निकल कर
सड़क पर आ गये हैं 

और
एक हम हैं

खुद ही कभी एक घर चल रहे हैं
और कभी
ढाई घर फादने के लिये
उँट के लिबास
शतरंज खेलने वाले के लिये ही
उसके घर तक
सड़क सड़क बिना जूते बिना चप्पल
यूँ ही कोने कोने कील ठोक कर बिछा गये हैं

शतरंज की बिसात की सीढ़ी
बनाने की सोच लिया एक प्यादा साथ का
एक पायदान ऊपर कूद कर

कब वजीर हो गये पूछने पर
कह लिये

सुबह के अखबार के समाचार देखते क्यों नहीं
ब्यूरो चीफ को सलाम कर लिया करो
कई बार कहा सुना नहीं तुमने

पता चलना जरूरी है
देख लो
अपनी औकात में आये की नहीं
बस सुनाने आ गये

लिखने वाले लिखते रहे हैं
लिखेंगे भी औने पौने कहीं किसी कोने में
किसे देखना है किसे पढ़ना है

दीवारों पर लिखी बातों के जमाने गये
बहुत खूबसूरत से स्क्रीन बिस्तरों के पास
बहुत नजदीकियाँ लिये छा गये

 ‘उलूक’
लिख लिया करना चाहिये रोज का रोज
कम से कम एक दिन छोड़ कर

पता नहीं चल रहा हो जब
घर के लोग ही
कब पाकिस्तानी हुऐ

और
कब किस घड़ी
पब जी का चेहरा ओढ़े हुऐ

तिरंगे झंडे पर बैठे हुऐ
महाभारत के हनुमान बन कर जैसे
हवा पानी मिट्टी में जमीन के तक छा गये।

चित्र साभार: https://www.presentermedia.com/
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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

घोड़ा ऐनक या होर्स ब्लाइंडर किस किस को समझ आ जाता है?

कैसे
पता करे
कोई खुद

कि


वो होश में है
या बेहोश है

वहाँ जहाँ


बेहोश रहने को
होश का पैमाना
माना जाता है

आँख में
चश्में लगे हो भी
और 

नहीं भी हों

दिखायी
दे जाता है
साफ साफ

बहुत दूर से
नजर भी
आ जाता है

सोच
के चश्में
किसी की
सोच में

शायद कोई
दूर वाला
बहुत दूर से
बैठ कर भी
लगा ले जाता है

एक जैसी
लकीर को
खींचते हुऐ
एक दो नहीं

एक
बहुत
बड़ी भीड़
का स्वभाव
एक सा
हो जाता है

जहाँ

बस लकीर
खींचनी ही
नहीं होती है

खींचने के बाद
एक ही तरीके से
उसे पीटना
आना भी
बहुत जरूरी
माना जाता है

बस

इसी
तस्वीर के
अन्दर
झांंकने पर

आदमी का
घोड़ा हो जाना

और
घोड़े का
ऐनक लगाकर
सीधी
एक लकीर
पर चलते चलते

एक शतरंज
की बिसात में
खड़े वजीर के लिये
फकीर हो जाना

समझ में आना
शुरु हो जाता है

घो‌ड़े
की आँखों में
ऐनक लगाना तो

जरूरी
हो जाता है
उसे रास्ते से
भटकने से
बचाने के लिये

सामने
देखने के लिये
इसी तरह मजबूर
किया जाता है

घोड़े
वफादार भी होते हैं
ऐनक लगी रहती है
दिखायी देती है

वफादारी
देखने के लिये
चश्मा
बना बनाया
बाजार में
नहीं पाया जाता है
जरूरी भी नहीं होता है

खबर में
घोड़ों का
आदमी को काट
खाने का वाकया

छपा हुआ
नजर में नहीं
ही आता है

अजीब बात है
कब आदमी
आदमियों की
भीड़ के बीच में

आँख में
ऐनक लगे घोड़ों से
अपने को
घिरा हुआ होना
महसूस करना
शुरु हो जाता है

कौन होश में है
कौन बेहोश है

कैसे समझ में आये
किस से पूछा जाये

ऐसी बात
कोई सीधे सीधे
जो क्या बताता है

और  ‘उलूक’ भी

पता नहीं

आदमी और
घोडों के बीच
एक ऐनक
को लेकर

होश और बेहोश
के पैमाने लेकर

क्या किसलिये
और क्यों नापना
शुरु हो जाता है ?

चित्र साभार: http://lakhtakiyabol.com