उलूक टाइम्स: समीकरण
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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

गणित की किताब और रोज रोज का रोज पढ़ा रोज का लिखा हिसाब

यूँ ही
पूछ बैठा

गणित
समझते हो

जवाब मिला

नहीं

कभी
पढ़ नहीं पाया

हिसाब
समझते हो

जवाब मिला

वो भी नहीं

गणित में
कमजोर
रहा हमेशा

दिमाग ही
नहीं लगाया

मुझे भी
समझ में
कहाँ
आ पाया

गणित भी
और
हिसाब भी

खुद
गिनता रहा
जिन्दगी भर

बच्चों को
घर पर
सिखाता रहा

पढ़ाना
शुरु किया

वहाँ भी
पीछा नहीं
छुड़ा पाया
गणित से

गजब का
विषय है
गणित

गजब
गणित है
जीवन
का भी

दोनो
गणित हैं
दोनों में
समीकरण हैं

फिर भी
अलग हैं
दोनों

हर तरफ
गणित है

चलने में गणित
भागने में गणित
सोने में गणित
और
जागने में गणित

पर
मजे की बात है
किताब का गणित
बस किताब तक है

हिसाब
का गणित
दिमाग में है

मजबूत गणित

लिखा
नहीं है
कहीं भी
किसी
किताब में

कापी
कलम की
जरूरत ही
नहीं पड़ती है
जरा भी

पर
दिख जाता है

साफ साफ
हर जगह का
हर रंग का

नशे का गणित
बेहोशी का गणित
होश का गणित

पढ़ने का गणित
पढ़ाने का गणित
पढ़वाने का गणित
लिखने का गणित
लिखवाने का गणित

आने का
और
जाने का गणित

बताने का
सिखाने का
समझाने
का गणित

कितना
कितना गणित
कर लेता है आदमी

हर कदम पर
गणित
आगे जाने पर
गणित
पीछे आने का
गणित

इतना गणित
कि पागल
हो जाये किताबें
और
फेल हो जायें
सारे हिसाब

फिर भी
विषय नहीं
लिया होता है
आदमी ने

पढ़ी नहीं
होती है किताब

बस यूँ ही
कर ले जाता है
कितना सारा
बिना
समीकरणों के
समीकरण से
जोड़ता घटाता
समीकरण

फिर भी
जवाब मिलता है

नहीं
कभी पढ़
नहीं पाया
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा

‘उलूक’
सुधर जा
अपने
खाली दिमाग
की हवा को
इस तरह
मत हिला

गरम हो
जायेगी तो

फट पड़ेगा

हर कोई
कहने लगेगा

गणित
पढ़ने लगा था

समझने लगा हूँ
समझने लगा था

हट के फितरत से
अपनी किया था

इसलिये फट गया था ।


चित्र साभार: https://drawception.com

बुधवार, 30 नवंबर 2016

समीकरण

गणित
नहीं पढ़ी है
के बहाने
नही चलेंगे
समीकरण
फिर भी
पीछा नहीं
छोड़ेंगे

समीकरण
नंगे होते हैं

अजीब
बात है
समीकरण
तक तो
ठीक था
ये नंगे होना
समीकरण का
समझ में
नहीं आया

आयेगा
भी नहीं
गणित के
समीकरण में
क या अ
का मान
हल करके
आ जाता है
हल एक भी
हो सकता है
कई बार
एक से
अधिक भी
हो जाता है

आम
जिंदगी के
समीकरण
आदमी के
चाल चलन
के साथ
चलते हैं

नंगे आदमी
एक साथ
कई समीकरण
रोज सुबह
उठते समय
साबुन के साथ
अपने चेहरे
पर मलते हैं

समीकरण
को संतुष्ठ
करता आदमी
भौंक भी
सकता है
उसे कोई
कुत्ता कहने
की हिम्मत
नहीं कर
सकता है

समीकरण
से अलग
बैठा दूर
से तमाशा
देखता
क या अ
पागल बता
दिया जाता है

आदमी
क्या है
कैसा है
उसे खुद
भी समझ
में नहीं
आता है

सारे
समीकरणों
के कर्णधार
तय करते हैं
किस कुत्ते
को आदमी
बनाना है
और
कौन सा
आदमी खुद
ही कुत्ता
हो जाता है

जय हो
सच की
जो दिखाया
जाता है

‘उलूक’
तू कुछ भी
नहीं उखाड़
सकता
किसी का
कभी भी
तेरे
किसी भी
समीकरण
में नहीं होने
से ही तेरा
सपाट चेहरा
किसी के
मुँह देखने
के काम
का भी
नहीं रह
जाता है ।

चित्र साभार: Drumcondra IWB - Drumcondra Education Centre