जब
लगाये गये
गुरु कुछ
गुरु छाँटने
के काम पर
किसी गुरुकुल
के लिये
दो चार और
गुरुओं के साथ
एक ऐ श्रेणी के
गुरुकुल के
महागुरु
के द्वारा
पता चला
बाद में
अर्जुन पर नहीं
एकलव्य पर
रखकर
आ चुके हैं
गुरु अपना हाथ
विश्वास में लेकर
सारे गुरुओं की
समिति को
अपने साथ
अब जमाना
बदल रहा
हो जब
गुरु भी
बदल जाये
तो कौन सी
है इसमें
नयी बात
एक ही
अगर होता
तो कुछ
नहीं कहता
पर एक
अनार के
लिये सौ
बीमार हो
जाते हों जहाँ
वहाँ यही तो
है होना होता
समस्या बस
यही समझने
की बची
इस सब के बाद
एक लव्य ने
किसे दे दिया
होगा अँगूठा
अपना काट
फिर समझ
में आया
फर्जी गुरु
‘उलूक’ के
भी कुछ
कुछ कुछ
सब कुछ में
से देख कर
जब देख बैठा
एक सफेद
लिफाफा मोटा
भरा भरा
हर गुरु
के हाथ
वाह
एकलव्य
मान गये
तुझे भी
निभाया
तूने इतने
गुरुओं को
अँगूठा काटे
बिना अपना
किस तरह
एक साथ ।
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ये तय है
जो भी
करेगा कोशिश
लिखने की
समय को
समय पर
देखते सुनते
समय के साथ
चलते हुए
समय से ही
मात खायेगा
लिखते ही हैं
लिखने वाले
समझाने के
लिये मायने
किसी और
की लिखी
हुई पुरानी
किताब में
किसी समय
उस समय के
उसके लिखे
लिखाये के
समझते हैं
करेंगे कोशिश
उलझने की
समय से
समय पर
ही आमने
सामने अगर
समय की
सच्चाइयों से
उसी समय की
समय के साथ
ही उलझ जाने
का डर
दिन की रोशनी
से भी उलझेगा
और
रात के सपनों
की उलझनों
को भी
उलझायेगा
अच्छा है बहुत
छोड़ देना
समय को
समझने
के लिये
समय के
साथ ही
एक लम्बे
समय के लिये
जितना पुराना
हो सकेगा समय
एक मायने के
अनेकों मायने
बनाने के नये
रास्ते बनाता
चला जायेगा
कोई नहीं
देखता है
सुनता है
समय की
आवाज को
समय के साथ
समय पर
ये मानकर
किसी का
देखा सुना
किसी को
बताया गया
किसी और
का लिखा
या किसी से
लिखवाया गया
बहुत आसान
होगा समझाना
बाद में कभी
समय लम्बा
एक बीत
जाने के बाद
उस समय
का समय
इस समय
लौट कर भी
नहीं आ पायेगा
कुछ का कुछ
या कुछ भी
कभी भी
किसी को भी
उस समय के
हिसाब से
समझा ही
दिया जायेगा ।
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कलाम तू
आदमी से
पहले एक
मुसलमान था
तूने ही सुना है
मिसाइल बनाई
तू ही तो बस
इन्सानो के बीच
एक इन्सान था
तेरी मिसाइल
को भी ये
पता था
या नहीं था
किसे पता था
मिसाइल थी
नहीं जानती थी
आदमी को
ना हीं
पहचानती थी
आदमी और
मिसाइल
का अन्तर
पर तू मिसाइल
मैन हो गया
इतिहास बना कर
मिसाइल का
इस देश के लिये
खुद भी एक
इतिहास हो गया
देख बहुत
अच्छा है
आज का
हर आदमी
एक मिसाइल
मैन है
और उसकी
मिसाइल भी
एक मैन है
आदमी
बना रहा है
एक आदमी
को मिसाइल
एक आदमी
को बरबाद
करने के लिये
ऐसी एक
मिसाइल
जिसका
ईंधन
धर्म है
क्षेत्र है
जाति है
शहर के
गली मोहल्ले
बाजार में
इफरात से
घूम रहें हैं
आज के सारे
मिसाईल मैन
और
बड़ी बात है
कि सारे
मिसाईल मैन
पढ़े लिखे हैं
सौ में से
निन्यानबें
पीएच डी
कर चुके हैं
मिसाईलें भी
बहुत ज्यादा
पढ़ चुकी हैं
दिमाग को
अपने खाली
कर चुकी हैं
वो आदमी
नहीं बस
एक जाति
क्षेत्र या धर्म
हो चुकी हैं
चल रही हैं
किसी के
बटन
दबाने से
सारी
मिसाईलें
आज
समाज
हो
चुकी हैं
किस की
मौत हो
रही है
इन
मिसाइलों से
बस ये
ही खबर
किसी को
नहीं हो
रही है
रुकिये
तो सही
कुछ दिन
जनाब
'उलूक'
आप को
किसलिये
इतनी
जल्दी
किसी के
मरने की
खबर
पाने
की हो
रही है
जब
मिसाइलें
ही अपनी
मिसाइलों
को
उनके ही
खून से
धो रही हैं ।
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अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
दिख रही थी
घिरी हुई
राष्ट्रीय
खबरों से
सुन्दरी का
ताज पहने हुऐ
मेरे ही घर की
मेरी ही
एक खबर
हंस रही थी
बहुत ही
बेशरम होकर
जैसे मुझे
देख कर
पूरा जोर
लगा कर
खिलखिलाकर
कहीं पीछे के
पन्ने के कोने में
छुप रही थी
बलात्कार की
एक खबर
इसी खबर
को सामने
से देख कर
घबराकर
शरमाकर
घर के लोग सभी
घुसे हुऐ थे घर में
अपने अपने
कमरों के अन्दर
हमेशा की तरह
आदतन
इरादातन
कुंडी बाहर से
बंद करवाकर
चहल पहल
रोज की तरह
थी आँगन में
खिलखिलाते
हुऐ खिल रहे
थे घरेलू फूल
खेल रहे थे
खेलने वाले
कबड्डी
जैसे खेलते
आ रहे थे
कई जमाने से
चड्डी चड़ाये हुए
पायजामों के
ऊपर से
जोर लगाकर
हैयशा हैयशा
चिल्ला चिल्ला कर
खबर के
बलात्कार
की खबर
वो भी जिसे
अपने ही घर
के आदमियों
ने अपने
हिसाब से
किया गया
हो कवर
को भी कौन सा
लेना देना था
किसी से घर पर
‘उलूक’
खबर की भी
होती हैं लाशें
कुछ नहीं
बताती हैं
घर की घर में
ही छोड़ जाती हैं
मरी हुई खबर
को देखकर
इतना तो
समझ ही
लिया कर ।
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हर किसी
को दिखाई
देती है
अपने
सामने वाले
इन्सान में
इशारों इशारों
में चल देने
वाली एक
आधुनिक कार
जिसके
गियर
स्टेरिंग
क्लच
और
ब्रेक
उसे
साफ साफ
नजर आते हैं
वो बात
अलग है
बारीक
इन्सान
जानते हैं
सारी
बारीकियाँ
किसके
हाथ से
बहुत दूर से
बिना चश्मा
लगाये भी
क्या क्या
चल पाता है
और
किस आदमी
से कौन सा
आदमी
रिमोट
से ही
घर बैठे
बैठे कैसे
चलाया
जाता है
समाज की
मुख्य धाराओं
में बह रहे
इन्सानो को
जरा सा भी
पसन्द नहीं
आते हैं
अपनी
मर्जी से
धाराओं के
किनारे खड़े
हुऐ दो चार
प्रतिशत
इन्सान
जो मौज में
मुस्कुराते हैं
जिस समाज
की धाराओं
के पोस्टर
गंगा के
दिखाई
देते हैं
भगीरथ के
जमाने के
होते हैं
मगर
आज के
और
अभी के
बताये
जाते हैं
और
तब से
अब तक
के सफर
में
जब
गंगा घूम
घाम कर
जा भी
चुकी
होती है
बस रह
गई होती हैं
धारायें
इन्सानी
सीवर की
जिसकी
खुश्बू को
भी सूँघने
से लोग
कतराते हैं
सीवर
नीचे से
निकलने
वाले मल
का होता
तब भी
अच्छा होता
उसमें बहने
से कुछ
तो मिलता
इन्सान को
ना सही
उसके
आस पास
की मिट्टी
को ही सही
पर
सीवर
और गंगा
नंगे इन्सानों
के ऊपर
के हिस्से
में बह रही
गंदगी का
होता है
नजर वाले
ही
देखने में
सोचने में
धोखा
खाते हैं
हर कोई
डुबकी
लगा रहा
होता है
मजबूरी
होती है
लगानी
पड़ती है
नहीं लगाने
वाले किनारे
फेंक दिये
जाते हैं
करम में
भागीदारी
कर नहीं
तो मर
करमकोढ़ियों
को जरा
सा भी
पसन्द नहीं
आते हैं
वो इन्सान
जो धाराओं
से दूर
रहते हैं
किनारे
खड़े हुए
होते हैं
इसीलिये
उनको
सुझाव
दिया
जाता है
समाज में
रहना
होता है
तो किसी
ना किसी
धारा में
बहना
होता है
‘उलूक’
तुझे क्या
परेशानी है
तू तो
जन्मजात
नंगा है
छोटी सी
बात है
तेरी छोटी
सी ही तो
समझदानी है
जहाँ सारे
कपड़े
पहने हुए
धारा में
तैरते नजर
आ रहे
होते हैं
हिम्मत
करके
थोड़ा सा
सीवर में
कूदने में
क्या जाता है
क्यों नहीं
कुछ
थोड़ा सा
सामाजिक
तू भी
नहीं हो
जाता है ?
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