भाटे के
इन्तजार में
कई पहर
शांत
बैठ जाता है
पानी
उतरता है
तुरन्त
रेत पर
सब कुछ
बहुत साफ
लिख ले जाता है
फिर
ज्वार को
उकसाने के लिये
चाँद को
पूरी चाँदनी के साथ
आने के लिये
गुहार लगाता है
बोझ सारा
मन का
रेत में फैला हुआ
पानी चढ़ते ही
जैसे
उसमें घुल कर
अनन्त में फैल जाता है
ना कागज ही
परेशान किया जाता है
ना कलम को
बाध्य किया जाता है
किसे
पढ़नी होती हैं
रेत में लिखी इबारतें
बस
कुछ देर में
लिखने से लेकर
मिटने तक का सफर
यूँ ही
मंजिल पा के जैसे
सुकून के साथ
जलमग्न हो जाता है
ना किताबें
सम्भालने का झंझट
ना पन्ने
पलटने का आलस
बासी पुरानी
कई साल की
बीत चुकी
उलझनों की
परतों पर पड़ी
धूल झाड़ने के लिये
रोज
पीछे लौटने
की
कसरतों से भी
बचा जाता है
‘उलूक’
रेत में दबी
कहानियों को
और
पानी में बह गयी
कविताओं को
ना बाँचने कोई आता है
ना टाँकने कोई आता है
कल का लिखा
आज नहीं रहता है
आज
फिर से
कुछ लिख देने के लिये
रास्ता भी
साफ हो जाता है
जब कहीं
कुछ नहीं बचता है
शून्य में ताकता
समझने की
कोशिश करता
एक समझदार
समझ में
नहीं आया
नहीं
कह पाता है।
चित्र साभार: https://www.bigstockphoto.com
इन्तजार में
कई पहर
शांत
बैठ जाता है
पानी
उतरता है
तुरन्त
रेत पर
सब कुछ
बहुत साफ
लिख ले जाता है
फिर
ज्वार को
उकसाने के लिये
चाँद को
पूरी चाँदनी के साथ
आने के लिये
गुहार लगाता है
बोझ सारा
मन का
रेत में फैला हुआ
पानी चढ़ते ही
जैसे
उसमें घुल कर
अनन्त में फैल जाता है
ना कागज ही
परेशान किया जाता है
ना कलम को
बाध्य किया जाता है
किसे
पढ़नी होती हैं
रेत में लिखी इबारतें
बस
कुछ देर में
लिखने से लेकर
मिटने तक का सफर
यूँ ही
मंजिल पा के जैसे
सुकून के साथ
जलमग्न हो जाता है
ना किताबें
सम्भालने का झंझट
ना पन्ने
पलटने का आलस
बासी पुरानी
कई साल की
बीत चुकी
उलझनों की
परतों पर पड़ी
धूल झाड़ने के लिये
रोज
पीछे लौटने
की
कसरतों से भी
बचा जाता है
‘उलूक’
रेत में दबी
कहानियों को
और
पानी में बह गयी
कविताओं को
ना बाँचने कोई आता है
ना टाँकने कोई आता है
कल का लिखा
आज नहीं रहता है
आज
फिर से
कुछ लिख देने के लिये
रास्ता भी
साफ हो जाता है
जब कहीं
कुछ नहीं बचता है
शून्य में ताकता
समझने की
कोशिश करता
एक समझदार
समझ में
नहीं आया
नहीं
कह पाता है।
चित्र साभार: https://www.bigstockphoto.com