उलूक टाइम्स

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

उलूक एक बस्ती उजाड़ने में बता तेरा क्या रोल होता है

परिपक्व यानी
पका हुआ फल
सुना है मीठा
बहुत होता है
सुनी सुनाई नहीं
परखी हुई बात है
हमेशा तो नहीं
पर कई बार
अपने लिये निर्णयों
पर ही शक बहुत
होने लगता है
मेरा निर्णय
उसका निर्णय
तेरा निर्णय
सब गडमगड
गलत और सही
कहीं किसी किताब
में लिखा ही
नहीं होता है
एक सूखी हुई
नदी के रास्ते के
पत्थरों को वाकई
बहुत घमंड होता है
अपनी मजबूती पर
आपदा के समय
ही पता लगता है
पेंदी और बेपेंदी
की चट्टाने कौन सी
पड़ी रहती है
और कौन सी
चल देती है
पानी के प्रवाह
के साथ बिना
शिकायत के
जीवन हर किसी
के लिये अलग 
पहलू एक होता है
किताबें सिद्धांत
समझने वालों
के लिये होती हैं
पर कोशिश
सब करते हैं
लागू करने की
किसी से हो
ही जाता है और
कोई ऐसी की
तैसी कर लेता है
“उलूक”
तुझे पता है
कितना गोबर
भरा है तेरे भेजे में
फिर भी नहीं
समझ में आता है
तू किस बात के
पंगे ले लेता है
ओलम्पियाड सारी
जिंदगी में दिखेंगे
तुझे हरे लाल
और पीले काले
क्यों फजीहत
करवाता है अपनी
हर बार फेल होता है
मकड़ी सात बार
में चढ़ गई थी
दीवार कभी एक
कहानी रही है
बहुत पुरानी
लोगों के लिये
पता कहाँ
चल पाता है
क्या रोजमर्रा
का जैसा काम
और क्या
कभी कभी का
एक खेल होता है ।