उलूक टाइम्स

बुधवार, 12 मार्च 2014

तेरा जैसा उल्लू भी तो कोई कहीं नहीं होता

                                                                        
अब भी समय है
समझ क्यों नहीं लेता
रोज देखता रोज सुनता है
तुझे यकीं क्यों नहीं होता

ये जमाना
निकल गया है बहुत ही आगे
तुझे ही रहना था बेशरम इतने पीछे
कहीं पिछली गली से ही कभी चुपचाप
कहीं को भी
निकल लिया होता

बहुत बबाल करता है 
यहाँ भी और वहाँ भी
तरह तरह की
तेरी शिकायतों के पुलिंदे में 
कभी कोई छेद क्यों नहीं होता

सीखने वाले
हमेशा लगे होते हैं
सिखाने वालों के आगे पीछे
कभी तो सोचा कर
तेरे से सीखने वाला कोई भी
तेरे आस पास क्यों नहीं होता
  
बहुत से अपने को
 मानने लगे हैं अब सफेद कबूतर
सारे कौओं को पता है ये सब
काले कौओ के बीच में रहकर
काँव काँव करना
बस एक तुझसे ही क्यों नहीं होता

पूँछ उठा के
देखने का जमाना ही नहीं रहा अब तो
एक तू ही पूँछ की बात हमेशा पूछता रहता है
जान कर भी
पूँछ हिलाना अब सामने सामने कहीं नहीं होता

गालियाँ खा रहे हैं सरे आम सभी कुत्ते
सब को पता है
आदमी से बड़ा कुत्ता कहीं भी नहीं होता

कभी तो सुन लिया कर दिल की भी कुछ "उलूक"
दिमाग में बहुत कुछ होने से कुछ नहीं होता ।

चित्र साभार: https://vector.me/