पौंधे पर खिला हुआ नहीं था
पुरानी
एक किताब के
एक किताब के
किसी फटे हुऐ अपने ही एक
पुराने पेज पर चिपका हुआ पड़ा था
खुश्बू वैसे भी
पुराने फूलों से आती है कुछ
पुराने फूलों से आती है कुछ
कहीं भी किसी फूल वाले से नहीं सुना था
कुछ कुछ बेरंंगा कुछ दाग दाग
कुछ किताबी कीड़ोंं का नोचा खाया हुआ
बहुत कुछ
ऐसे ही कह दे रहा था
ऐसे ही कह दे रहा था
फूल के पीछे
कागज में कुछ भी
लिखा हुआ नहीं दिख रहा था
कागज में कुछ भी
लिखा हुआ नहीं दिख रहा था
ना जाने फिर भी
सब कुछ एक आइने में जैसा ही हो रहा था
बहुत सी
आड़ी तिरछी शक्लों से भरा पड़ा था
आड़ी तिरछी शक्लों से भरा पड़ा था
खुद को भी
पहचानना उन सब के बीच में कहीं
पहचानना उन सब के बीच में कहीं
बहुत मुश्किल हो रहा था
कारवाँ चला था
दिख भी रहा था कुछ धुंंधला सा
दिख भी रहा था कुछ धुंंधला सा
रास्ते में ही कहीं बहुत शोर हो रहा था
बहुत कुछ था
इतना कुछ कि पन्ना अपने ही बोझ से
जैसे
इतना कुछ कि पन्ना अपने ही बोझ से
जैसे
बहुत बोझिल हो रहा था
कहाँ से चलकर
कहाँ पहुंंच गया था ‘उलूक’
कहाँ पहुंंच गया था ‘उलूक’
बिना पंखों के धीरे धीरे
पुराने एक सूखे हुऐ
गुलाब के काँटो को चुभोने से भी
दर्द
थोड़ा सा भी नहीं हो रहा था
दर्द
थोड़ा सा भी नहीं हो रहा था
कारवाँ भी पहुँचा होगा
कहीं और
किसी दूसरे पन्ने में किताब के
किसी दूसरे पन्ने में किताब के
कहाँ तक पहुँचा
कहाँ
जा कर रुक गया
जा कर रुक गया
बस इतना ही पता नहीं हो रहा था ।
चित्र साभार: https://in.pinterest.com/
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