उलूक टाइम्स

बुधवार, 18 जून 2014

पुरानी किताब का पन्ना सूखे हुऐ फूल से चिपक कर सो रहा था


वो गुलाब
पौंधे पर खिला हुआ नहीं था

पुरानी
एक 
किताब के
किसी फटे हुऐ अपने ही एक
पुराने पेज पर चिपका हुआ पड़ा था

खुश्बू वैसे भी
पुराने 
फूलों से आती है कुछ
कहीं भी किसी फूल वाले से नहीं सुना था

कुछ कुछ बेरंंगा कुछ दाग दाग
कुछ किताबी कीड़ोंं का नोचा खाया हुआ
बहुत कुछ
ऐसे ही 
कह दे रहा था

फूल के पीछे
कागज 
में कुछ भी
लिखा हुआ 
नहीं दिख रहा था 
ना जाने फिर भी
सब कुछ एक आइने में जैसा ही हो रहा था

बहुत सी
आड़ी तिरछी 
शक्लों से भरा पड़ा था

खुद को भी
पहचानना 
उन सब के बीच में कहीं
बहुत मुश्किल हो रहा था

कारवाँ चला था 
दिख भी रहा था कुछ धुंंधला सा 
रास्ते में ही कहीं बहुत शोर हो रहा था

बहुत कुछ था 
इतना कुछ कि पन्ना अपने ही बोझ से
जैसे
बहुत बोझिल हो रहा था

कहाँ से चलकर 
कहाँ पहुंंच गया था ‘उलूक’
बिना पंखों के धीरे धीरे

पुराने एक सूखे हुऐ
गुलाब के काँटो को चुभोने से भी
दर्द 
थोड़ा सा भी नहीं हो रहा था

कारवाँ भी पहुँचा होगा
कहीं और
किसी 
दूसरे पन्ने में किताब के

कहाँ तक पहुँचा
कहाँ
जा कर रुक गया
बस इतना ही पता नहीं हो रहा था ।

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/